स्वैच्छिक संगठनों को प्रोत्साहित करना जरूरी

लेखक : रामभरोस मीणा 

लेखक जाने माने पर्यावरणविद् व समाज विज्ञानी है।

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यदि देखा जाए तो सम्पूर्ण विश्व में "तीन प" (पानी, पेड़, पर्यावरण) को लेकर चर्चाएं तीन चार दशकों से चल रही है लेकिन कोरोना काल के बाद सभी देशों में चर्चाएं विशेष हो रही जो आवश्यक भी है। यह एक बड़ा विचारणीय मुद्दा होने के साथ आने वाले समय में जल थल नभ में विचरण करने वाले जीवों मानव के लिए विशेष संकट पैदा करेगा,यह "सत्य" है। पर्यावरण प्रदुषण, वनों की अंधाधुंध कटाई, जल दोहन के प्रारम्भिक प्रभाव, परिणाम सभी जगह देखने को मिलने प्रारंभ हो गये। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए तीनों का पर्याप्त संरक्षित होना भी अति आवश्यक है, क्योंकि तीनों एक दुसरे के पूरक हैं। जंगलों व जंगली जानवरों के अभाव में पर्यावरण सुरक्षित नहीं रह सकता और वातावरण में स्वच्छता, सुन्दरता, वनस्पतियों की पर्याप्तता एवं आर्द्रता के अभाव में वर्षा का होना सम्भव नहीं।  पिछले तीन दशक से प्राकृतिक संसाधनों (खनिज पदार्थ, वन सम्पदा,जल) के अत्यधिक दोहन, कल कारखानों के अपशिष्टों, कार्बनिक पदार्थों, आकाश में उड़ने वाले परिवहन के संसाधनों के साथ साथ रिजर्व क्षेत्रों में बढ़ते खनन, शहरीकरण के परिणामस्वरूप उत्पन्न इन परिस्थितियों के परिणाम बड़े दुखदाई होते जा रहे हैं जो आगामी समय में विनाश के कारण बनेंगे।

मानव पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों व मानव पर पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप से पड़ने वाले प्रभावों को लेकर सम्पूर्ण थलमणडल पर इसके संरक्षण संवर्धन के प्रयासों को लेकर  बड़े प्लेटफार्म तैयार  कर सभी देशों को एक साथ संरंक्षण, शोध, पुनः स्थापना, आवश्यकता व संतुलन को लेकर कार्य प्रारंभ हुए और यह आवश्यकता भी है, क्योंकि प्रकृति हमें जीवन की सभी मुलभूत आवश्यकताएं "जल खाद्य पदार्थ, ऊर्जा, स्वच्छ वायु, आवास के साथ जीवन जीने के अवसर" प्रदान करतीं हैं। इसलिए यह आवश्यक भी है कि न्यायसंगत विकासशील रणनीतियों को बढ़ावा मिले, जिससे बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सके, जलवायु परिवर्तन को रोका जा सके, जल थल नभ में विचरण करने वाली विभिन्न प्रजातियों के खत्म होते पक्षियों, वन्य जीवों, जलीय जीवों को बचाया जा सके। विश्व स्तर पर दर्जनों स्वैच्छिक, सरकारी, ग़ैर सरकारी संगठनों के साथ एन जी ओ इसे लेकर पिछले पांच दशकों से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जन जागृति, शोध, संरक्षण के कार्य करना प्रारंभ कर दिय, जिनमें IUCN, डब्ल्यू डब्ल्यू एफ, ग्रीन पीस,  TERI, सी एस ई, क्योटो प्रोटोकॉल, UNFCCC, कल्पवृक्ष, हेली, सीएसडी, युएनइपी, डब्ल्यू एच ओ, पर्यावरण शासन एव राज्य प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अपना कर्तव्य निभा रहे, इन से कहीं अधिक स्वैच्छिक संगठन, मंडल, प्रकृति प्रेमी स्थानीय ग्राम व समाज स्तर पर लोगों को सचेत करने का कार्य विशेष रूप से आज से दो से तीन सो वर्ष पुर्व कार्य प्रारंभ कर दिया गया था जिनका आज इतिहास गवाही दे रहा है।

अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे एन जी ओ का पर्यावरण संरक्षण में मात्र 30 प्रतिशत व स्थानीय संगठनों का 70 प्रतिशत पर्यावरणीय संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाने में सहयोग रहता है। भारत में आयोजित जी 20 सम्मेलन में यह मुद्दा उठना उढना बहुत आवश्यक होने के साथ इस पर अमल के लिए शर्तें रखना भी जरूरी है तब ही राहत मिलने की संभावनाएं बनेंगी, लेकिन दूसरी तरफ एल पी एस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद् राम भरोस मीणा का मानना है कि विश्व के जो देश व राष्ट्रीय संगठन, एन जी ओ इस सम्मेलन में मेजबानी कर रहे हैं उन्हें ग्राम स्तरीय स्वैच्छिक संगठन, नवयुवक मंडल, प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविदों, प्राकृतिक संसाधन बचाओं समितियों के लिए एक कार्य योजना तैयार करनी चाहिए जिससे उनका उत्साह वर्धन के साथ कार्य करने की उर्जा प्राप्त हो तथा इस राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निजात मिल सके, पुनः पर्यावरण स्वच्छ सुंदर बने, वनों का विकास हो, जीवन दायिनी प्राण वायु पर्याप्त मात्रा में मिल सकें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)