देश को आवश्यकता है एक नई कांग्रेस की

28 दिसम्बर कांग्रेस स्थापना दिवस

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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लोकतंत्र व राष्ट्रीय एकता के लिए देश में 2 अथवा 3 ऐसे राष्ट्रीय दलों का होना जरूरी है जिनका आधार पूरे देश में हो और जो लोकसभा की अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़े। देश की सबसे बड़ी व पुरानी पार्टी कांग्रेस को मिली पराजय के बाद कांग्रेस राज्यों में लगातार कमजोर हुई है। कांग्रेस का राष्ट्रीय स्वरूप खतरे में पड़ रहा है, देश में क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के विकल्प के रूप में पहचान बनाई है, भाजपा ने राज्यो में मजबूती से पांव जमाये है। जहां कुछ साल पहले तक उसे पूछते नहीं थे वहां वह प्रभावशाली बनी है, और उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। भाजपा पूरी शक्ति के साथ कांग्रेस मुक्त भारत की चर्चा कर उसे ओर कमजोर करना चाहती है।

वर्ष 2014 के आम चुनावों से शुरू हुई पराजय के सिलसिले को समाप्त करने के लिए कांग्रेस को पार्टी संगठन की पुनः संरचना कर उसको पुनर्जीवन देना आवश्यक है जो कई जगह पंगु हो गया है। राज्य में दो या दो से अधिक पावर सेन्टर हो गये है। कांग्रेस को न केवल अपनी व्यवस्था को ठीक करने की है पूरी तरह से संगठन, कार्यक्रम, नीतियों में बदलाव लाने की जरूरत है। कांग्रेस को प्रादेशिक, क्षेत्रीय, स्थानीय नेताओं को प्रोत्साहित कर, बिना भेदभाव संगठन से जोड़ना होगा और संतुलन बनाना होगा।

दुर्भाग्य से कांग्रेस नेताओं और सदस्यों ने कांग्रेस का इतिहास, देश में हुए परिवर्तन संबंधी रिपोर्ट व नेहरू-गांधी को पढ़ना और समझना बंद कर दिया है। कांग्रेसजन महात्मा गांधी के आदर्शो और दायित्वों को भूल गये है। सोनिया गांधी ने अपने भाषण में स्वीकार किया था कि कांग्रेस खुद यदि अपने को पाखंडों से मुक्त करा पाये, कांग्रेसी नेता यदि सादगी दिखाये और सेवा का नियम अपनायें तो कांग्रेस सुदृढ़ होगी। जनता का विश्वास प्राप्त कर सकेगी।

कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए तीन प्रमुख चीजों का ध्यान रखना आवश्यक है। पहला, पार्टी में व्यापक सुधार किया जावे। पार्टी के भीतर पूर्णतया लोकतंत्र लाया जावे। योग्यता की पहचान की नई व्यवस्था विकसित की जावे। निरन्तरता सुनिश्चित करने के लिए देश के हर कौने में राष्ट्रीय व क्षेत्रीय नेताओं की जिम्मेदारी सुनिश्चित हो। दूसरा, कांग्रेस पार्टी गठबंधन दलों जिनको वह साथ ले, के साथ ऐसा भीतरी सिस्टम तैयार करें जिसमें पूर्व की तरह की घटनाएं नहीं हो। यूपीए द्वितीय कार्यकाल में सहयोगी दलोंके प्रतिनिधियों के  तथाकथित फैसलों ने ही सबसे ज्यादा बदनाम किया है। तीसरा, कांग्रेस समावेशी विकास एजेन्डे को हाथ में ले। समाज के सभी वर्गो में सक्रिय हो। आज लोगों में यह भावना है कि विशेष वर्ग को ही विकास का फायदा मिला है। सबको साथ ले जाने वाले विकास की बात बड़ी महत्वपूर्ण व प्रभावी होगी। पार्टी में ईमानदार, अनुभवी व नये चेहरे, नये विचार और नीचे तक जमीनी ऊर्जा लानी होगी जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास जागृत हो।

भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई केवल सत्ता की लड़ाई नहीं है अपितु एक विचारों की लड़ाई है। जहां कांग्रेस का राष्ट्रवाद, सद्भावना और भाईचारे पर आधारित है वहीं भाजपा का राष्ट्रवाद हिन्दुवाद, वर्ग भेद पर आधारित है। कांग्रेस का इतिहास त्याग, बलिदान, सेवा और ईमानदारी का रहा है जिसे आज के नेताओं ने छोड़ दिया है। अब गांधी टोपी और खादी भी अधिवेशन में ही पहनते है। आज चुनावी लोकतंत्र में जातीय राजनीति हावी हो गई है। जाति व समुदाय चुनावी दृष्टिकोण का एक अभिन्न हिस्सा बन गये है। जाति आधारित चुनावी राजनीति ने बहुजातिय राजनैतिक दलों के सामने विवशता पैदा कर दी है। कांग्रेस संगठन में ईमानदार कार्यकर्ताओं को सदस्य बनाने की आवष्यकता है, आज महात्मा गांधी, नेहरू, अम्बेडकर, मौलाना आजाद, सरदार पटेल के विचारों व आदर्शो पर कांग्रेसी नहीं चलते। उनके लिए इस विचारधारा पर संघर्ष करने की अपेक्षा व्यक्तिपूजा से स्थान पाना आसान हो गया।

कांग्रेस को पंचायत, स्थानीय चुनावों में अधिक व सक्षम जुड़ाव करना होगा। छोटी-छोटी समस्याओं व भ्रष्टाचार उन्मूलन पर अधिक ध्यान देना होगा जिससे आम लोग ज्यादातर परेशान है, पुलिस और असंवेदनशील नौकरशाही से संबंधित कामों में आम जनता की मदद करनी होगी। पार्टी को राजनैतिक और सामाजिक कार्य रूप देना आवश्यक है। कांग्रेस का मूल संदेश खासतौर से सर्वसमावेशी वृहद सामाजिक न्याय, गरीबी उन्मूलन, अल्पसंख्यक, महिला, दलित, किसान, आदिवासियों सहित हाशिए पर पड़े वर्गो को संरक्षण का रहा है, इन पर सर्वाधिक जोर देने की आवश्यकता है। कांग्रेस को गंभीरता से अपनाये गये मुद्दे व दृढ़ विश्वास से कार्य कर आम जनता को पुनः विश्वास में लेने की जरूरत हैं, काग्रेंस को सभी स्तर पर अधिक गंभीरता व दृढ़ता से संगठन को मजबूत करना होगा। 

स्थानीय और राज्यस्तरीय चुनावों में सारी राजनीति प्रादेशिक मुद्दों के आसपास घूमती है। स्थानीय मुद्दे मतदाताओं में सरकार के प्रति भावना पैदा करते है। कांग्रेस को गांव, ब्लाक, राज्यों के साथ-साथ राष्ट्रीयस्तर पर अनुभवी व जनता से जुड़े वफादार अनुभवी चेहरों और युवा वर्ग को साथ लेकर खुद को नया बनाना चाहिए। किसान, मजदूर, दलित, अल्पसंख्यकों, युवाओं को भरोसा हो कि कांग्रेस उनकी आकांक्षाओं व आवश्यकताओं को समझती है। पार्टी को कसौटी पर खरे, दशकों तक पार्टी को जमीनी व वफादारी से सेवाएं देने वालों को जोड़कर समझधारी भरा संतुलन कायम करना होगा।

क्षेत्रीय दल मिलकर भाजपा के विरू़द्ध चुनाव लड़े, इसकी अभी कोई संभावना नहीं है। ऐसे में कांग्रेस का जीवित और सफल रहना जरूरी है। कांग्रेस में जो लोग विचारवान है, जिनका अपने-अपने राज्यों में जमीनी आधार है, उन सबको मिलकर कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाना चाहिए जिससे पार्टी सत्ता में या विपक्ष में हो, जो पूरे देश की सच्ची प्रतिनिधि हो। केन्द्र व राज्यों में वर्तमान नेतृत्व के प्रति नकारात्मक रूप से सत्तारूढ़ दल ने भ्रान्तियां फैलाई है परन्तु अब चाहे खेती के संकट से गुजर रहे किसानों की बात हो या परेशान स्वच्छताकर्मियों की परेशानी की बात हो, चाहे दलितों पर अत्याचार की, कांग्रेस संगठन को जनता के निकट पहुंचने का प्रयत्न करना होगा। बहुत सोच समझकर लोगों में पहचान बनाने के लिए सही पहल की आवश्यक है। वैचारिक स्वतंत्रता पर भी जोर देने की आवश्यकता है।

कांग्रेस के कुछ स्वघोषित बड़े नेताओं ने सत्ता की राजनीति के नशे में चूर होकर दो दशक से गांवों में जाना बंद कर दिया था। कांग्रेस को अधिक क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने पर जोर देने के साथ रोजगार सृजन और समाज के पिछड़े व वंचित तबके के लिए ठोस कल्याणकारी योजनाओं पर जोर देना होगा। कांग्रेस को ऐसे राजनेताओं के साथ राष्ट्रीय धर्म निभाने पर जोर देना होगा।

कांग्रेस भारत में बहुजनवाद का राजनैतिक रूप है और वह धर्मनिरपेक्षता को कायम रखने की महत्वपूर्ण व प्रतिपादित आवाज रही है। कांग्रेस को इन मूल्यों पर डटे रहना चाहिए। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को चुप्पी छोड़कर अपने-अपने क्षेत्र में सामाजिक मीडिया सहित सभी जगहों पर जनता के बीच जाना चाहिए जिससे उसके मूल्यों, क्रियाकलापों, इरादों में पारदर्शिता व विश्वास कायम हो। लोगों को अपनी सोच में साझा बनाने से उनको अपने पक्ष में लाना आसान होगा। अब तक 21 वीं सदी में मीडिया संचालित राजनीति से कांग्रेस वर्षो से दूर रही है, उसे समझना आवश्यक है। वर्तमान वातावरण से लगता है कि कांग्रेस इस संकट से उभरने में सक्षम है।

नेहरू-गांधी परिवार का देश के प्रति उनके लगाव, आजादी व उसके बाद संघर्ष एवं बलिदान, उच्च कोटि का सूझबूझ वाला दमदार नेतृत्व उनका आधार रहा है। कांग्रेस ने दबे कुचले वर्ग के लिए कार्य किया है। विकासशील देशों में पहली बार भोजन, काम, शिक्षा का अधिकार कानून जैसे दूरगामी कदम उठाये है। सूचना का अधिकार लोकतंत्र के प्रति उसके समर्पण का परिणाम है जिसने शासन में अप्रत्याशित पारदर्शिता ला दी है। कांग्रेस के नेतृत्व ने आर्थिक वृद्धि और सामाजिक न्याय दोनों के लिए काम किया है और देश समावेशी तरक्की की ओर बढ़ रहा है।

प्रधानमंत्री विधानसभा चुनाव के लिए लगातार दौड़-धूप कर रहे हैं। कांग्रेस एक संघीय मोर्चा बना सकती है। जिसका मुख्य एजेन्डा विकास हो। इस बात पर जोर दिया जावे कि कांग्रेस ही केन्द्र व राज्यों में सहमति कराने में सबसे ज्यादा सक्षम है। यदि सब कुछ पारदर्शिता से किया जावे तो आम लोग सही इरादा देखकर बनाये गये संगठन के प्रति अनुकूल रवैया अपनायेंगे। 

कांग्रेस सदैव हिन्दु-मुस्लिम एकता की अपनी नीति रखती रही है। स्वतंत्रता संग्राम के समय थी, हिन्दु-मुस्लिम के अलावा पिछड़ी जाति के लोग जाति और धर्म से उपर उठकर कांग्रेस में एकजुट हुए थे, कांग्रेस ने सदैव लोगों से धर्म और जाति के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठने का आव्हान किया था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)