सपने में भी धर्मयुग : नवीन जैन

लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)

www.daylife.page 

आ. देवप्रिय अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार और संपादक) के इस कथन से कुल मिलाकर सहमत ही हुआ जा सकता है कि डॉक्टर स्व.धर्मवीर भारती ने संपादकों  की तीन पीढियां सृजित की। ठीक उसी तरह से जैसे उन्होंने गुनाहों का देवता ,अंधा युग ,एक गली का आख़िरी मकान जैसा साहित्य सौंदर्य बिखेरा। ठीक है कि टाइम्स बिल्डिंग, मुंबई में उन्हें तानाशाह संपादक तक कहा जाता था। यह भी कहा जाता रहा कि उन्हीं की वजह से स्व. नंदकिशोर भट्ट, स्व. रवींद्र कालिया जैसे पत्रकारों का करियर आधे रास्ते में ही दफ्न हो गया, लेकिन कोई सहयोगी काम के दौरान बार-बार गुटखा थूकने उठे, चाय की चुस्कियां ले, सिगरेट के छल्ले उड़ाए या टल्ली होकर कहीं गोते खाता रहे, तो संपादक को भी ऊपर जवाब देना होता है। 

कभी भी किसी भी पत्र-पत्रिका में अन्तिम निर्णय संपादक का ही होता है। वर्ना, तो उक्त दफ्तर में मन मानी से उपजी अराजकता फैल सकती है, जिसके बुरे परिणाम समाज को भुगतने पड सकते हैं। इसीलिए, डॉ. भारती फोटो कैप्शन भी खुद देखते थे। आज, तो खैर शिक्षा का प्रतिशत लगातार ऊंचाई की ओर जा रहा है, लेकिन उस युग में भारती जी ने साप्ताहिक धर्मयुग को लगभग साढ़े चार लाख साप्ताहिक बिक्री तक पहुंचा दिया था। इसीलिए विज्ञापन भी उनकी अन्तिम नजर से गुजरता ही था, और अगली दीपावली के विज्ञापन इस दीपावली को ही बुक हो जाया करते थे।

आज जिस स्वतंत्र संपादक संस्था को हम खोने की बात करते रहते हैं उसकी रीढ़ की हड्डी पहल-पहल डॉ. भारती ने ही सीधी की थी। यही कारण है कि टाइम्स के मालिक, जो उस वक्त मीडिया मुगल कहलाते थे, डॉ. भारती से पहले समय लेते, और फिर मिलने आते। जब भारतीजी को पहला सीवियर हार्ट अटैक आया, तो कंपनी के उपाध्यक्ष डॉ.राम तनरेजा नई दिल्ली से पहली फ्लाइट पकड़कर मुंबई आ गए थे।कितने संपादकों को यह सम्मान हासिल हुआ है? भारती जी ने ही स्व. सुरेंद्र प्रताप सिंह, स्व. उदयन शर्मा जैसे संपादक-पत्रकार तैयार किए, जिन्होंने खासकर खोजी रिपोर्टिग और भंडाफोड़ पत्रकारिता से हिंदी की ढुलमुल तथा लिजलिजी पत्रकारिता का व्याकरण ही बदल दिया। 

कहा जाता है कि जेपी के आपातकाल विरोधी आंदोलन के सफल होने में भी धर्मयुग की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बस, भारती जी से यह गलती जरूर हो गई थी कि जेपी के निधन होने की पुष्टि हुए बिना ही उन्होंने उनके लिए श्रृद्धांजलि लिख दी थी।इतने बड़े आदमी होने के बावजूद वे घर से ऑफिस, और ऑफिस से घर तक ही सालों सीमित रहे। उन्हें धर्मयुग के ही सपने आते थे। उन्होंने ही अपनी पत्रिका में विचार, व्यंग्य, खेल, व्यापार, कार्टून, किस्से, आदि के अलग पन्ने स्थापित किए। कहा तो यहां तक जाता है कि यदि डॉक्टर भारती नहीं होते तो, कदाचित व्यंग्यकार और स्क्रिप्ट राइटर स्वर्गीय शरद जोशी इतने बड़े नहीं होते। यही बात गीतकार और कवि स्वर्गीय नीरज, स्वर्गीय रामावतार त्यागी, स्वर्गीय भारत भूषण, स्वर्गीय रमानाथ अवस्थी, स्वर्गीय देवराज दिनेश, स्वर्गीय वीरेंद्र मिश्र, मलय श्रीवास्तव और स्वर्गीय माणिक वर्मा जैसों पर लागू होती है। 

भारती जी ने एक संपादक होते हुए सन 1965 का भारत पाक युद्ध कवर किया था जिसमें उनकी जान जाते जाते बची थी। बाद में इस युद्ध का वृतांत किताब के रूप में आया था। भारतीजी ने दो शादियां की थी। उनकी पहली पत्नी का नाम कांता था जिन्होंने, रेत की मछली नाम से उपन्यास भी लिखा था। उनकी दूसरी पत्नी पुष्पा भारती कभी इलाहबाद विश्व विद्यालय में उनकी शिष्या थी। कहा जाता है कि डॉक्टर भारती एक बार जब इलाहबाद से मुंबई आए, तो उसके बाद उनकी अस्थियां ही प्रयागराज में  विसर्जित होने के लिए गई। गुनाहों का देवता उपन्यास पर अमिताभ और रेखा को लेकर एक फिल्म भी बननी शुरू हुई थी जिसका एक गाना मोहम्मद रफी की आवाज में कंपोज भी हो गया था, लेकिन फिल्म किन्ही कारणों से रुक गई। ऐसे हर युग के संपादक की स्मृति को बार बार नमन !!! (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)