निशांत की रिपोर्ट
लखनऊ (यूपी) से
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साल 2022 ख़त्म होने को आ गया मगर अब भी वैश्विक स्तर पर कार्बन एमिशन रिकॉर्ड लेवेल पर है। इस बात की जानकारी मिलती है ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट साइंस टीम से, जिसका कहना है कि वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर कार्बन का एमिशन रिकॉर्ड ऊंचाई पर बना रहा। इसमें गिरावट के कोई निशान नहीं हैं जबकि वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए कार्बन एमिशन में गिरावट लाना अनिवार्य है।
अगर एमिशन के मौजूदा स्तर बने रहे तो अगले नौ वर्षों के दौरान ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाने की आशंका 50% तक बढ़ जाएगी।
इस नई रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर कुल 40.6 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का एमिशन होगा। ऐसा जीवाश्म ईंधन के कारण उत्पन्न होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड के एमिशन के कारण हो रहा है, जिसके वर्ष 2022 के मुकाबले 1% बढ़ने का अनुमान है और यह 36.6 गीगा टन तक पहुंच जाएगा। यह वर्ष 2019 में कोविड-19 महामारी से पहले के स्तर से कुछ ज्यादा होगा। वर्ष 2022 में भूमि उपयोग में बदलाव, जैसे कि वनों के कटान से 3.9 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होने का अनुमान है।
कोयला और तेल से होने वाले एमिशन की मात्रा वर्ष 2021 के स्तरों से अधिक होने का अनुमान है। एमिशन में होने वाली कुल बढ़ोत्तरी में तेल सबसे बड़ा योगदान साबित हो रहा है। तेल से होने वाले एमिशन में वृद्धि को अधिकतर कोविड-19 महामारी के कारण लागू प्रतिबंधों के बाद अंतरराष्ट्रीय विमानन के विलंबित प्रतिक्षेप के जरिए समझाया जा सकता है।
दुनिया के प्रमुख एमिशन करने वाले देशों में वर्ष 2022 की तस्वीर मिली जुली है। जहां चीन में एमिशन की दर में 0.9% और यूरोपीय यूनियन में 0.8% की गिरावट की संभावना है। वहीं, अमेरिका (1.50) प्रतिशत, भारत (6%) तथा दुनिया के बाकी अन्य देशों में (कुल मिलाकर 1.7%) वृद्धि होने का अनुमान है।
ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की 50% संभावनाओं को जिंदा रखने के लिए शेष कार्बन बजट को घटाकर 380 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड (अगर 9 साल बाद एमिशन वर्ष 2022 के स्तर पर रहता है) और 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए 1230 गीगा टन सीओ2 कर दिया गया है।
वर्ष 2050 तक कार्बन एमिशन को शून्य करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए अब हर साल कार्बन एमिशन में 1.4 गीगा टन की गिरावट लाने की जरूरत होगी। इससे जाहिर होता है कि दुनिया को कितने बड़े पैमाने पर काम करना होगा।
कार्बन को सोखने और उसे जमा करने का काम करने वाले महासागर और जमीन कुल कार्बन डाइऑक्साइड एमिशन का लगभग आधा हिस्सा खुद में समाहित करने का सिलसिला जारी रखे हुए हैं। हालांकि वर्ष 2012 से 2021 के बीच जलवायु परिवर्तन की वजह से महासागरों और लैंड सिंक द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता में क्रमशः 4% और 17% की अनुमानित गिरावट आई है।
इस साल के कार्बन बजट से जाहिर होता है कि जीवाश्म ईंधन से होने वाले एमिशन में दीर्घकालिक बढ़ोत्तरी की दर अब कम हो चुकी है। जहां 2000 के दशक के दौरान इसमें अधिकतम औसत वृद्धि 3% प्रतिवर्ष थी, वहीं पिछले दशक में यह घटकर करीब 0.5% प्रतिवर्ष हो गई।
रिसर्च टीम में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सीटर, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया (यूएई), सिसरो और लुडविग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी म्युनिख ने एमिशन में दीर्घकालिक बढ़ोत्तरी की दर में गिरावट का स्वागत किया है लेकिन यह भी कहा है कि यह गिरावट मौजूदा जरूरत के मुकाबले काफी कम है।
यह तथ्य ऐसे समय सामने आए हैं जब दुनिया भर के नेता मिस्र के शर्म अल शेख में हो रही सीओपी27 में जलवायु परिवर्तन के संकट पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।
एक्सीटर के ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर पियरे फ्रीडलिंगस्टीन ने कहा "जब हमें तेजी से कमी लाने की जरूरत है, तब इस साल हम वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड के एमिशन में एक बार फिर वृद्धि देख रहे हैं।"
दुनिया के 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा तैयार की गई 'ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट' कार्बन के स्रोतों और सिंक दोनों ही का परीक्षण करती है। यह रिपोर्ट पूरी तरह से पारदर्शी ढंग से स्थापित कार्यप्रणाली के आधार पर एक वार्षिक और सहकर्मियों द्वारा समीक्षित अपडेट प्रदान करता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)