तनावमुक्ति कारण, निवारण

तनाव के कारण अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियां हो सकती है 

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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आधुनिक युग की प्रमुख समस्याओं में तनाव भी एक प्रमुख समस्या है। तनाव किसे कहते है? मानसिक पीड़ा, अस्त व्यस्त हो जाना या इच्छानुसार परिणाम न प्राप्त होना तनाव है। तनाव के कारण अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियां हो जाती है। किसी कार्य में मन न लगना, थकान आ जाना, अनमनस्क रहना, चिड़चिड़ापन आदि तनाव के लक्षण है। आज का आदमी तनाव का शिकार हैं। उसे शांति का अनुभव नहीं होता है। वह निरंतर बैचेन रहता है। तनाव के कारणों में दंपति में से किसी एक की मृत्यु, तलाक, चोट या बीमारी, विवाह, कार्य से निष्कासन, सेवा निवृत्ति, लैंगिक समस्याएं, कार्य या व्यवसाय में परिवर्तन, जीवन की स्थितियों में परिवर्तन, सोने या आहार संबंधी आदतों का परिवर्तन प्रमुख है। तनाव को दूर करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि यह क्यों पैदा होता है? शारीरिक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव व्यक्ति तीनों तनावों से घिरा है। जब व्यक्ति अत्यधिक शारीरिक श्रम करता है तो थक जाता है तब उसके शरीर में तनाव निर्मित हो जाता है। 

मांसपेशियों में तत्कालित खिंचाव व कड़ापन आ जाता है जो बाद में विश्राम करने पर दूर हो जाता है पर दो घंटे सोने से जितना विश्राम मांसपेशियों को नहीं मिलता उतना आधे घंटे तक विधिवत कायोत्सर्ग करने से मिल जाता है। हम मन का श्रम तो करते हैं किन्तु उसको विश्राम देना नहीं जानते हैं। हम चिन्तन करना जानते हैं किन्तु अचिन्तन की बात नहीं जानते, चिन्तन से मुक्त होना नहीं जानते। मानसिक तनाव का मुख्य कारण है- अधिक सोचना। सोचने की भी एक बीमारी है। कुछ लोग इस बीमारी से इतने ग्रस्त हैं कि प्रयोजन हो या न हो, वे निरंतर कुछ न कुछ सोचते रहते हैं। मन को विश्राम देना भी संभव है जब हम वर्तमान में रहना सीख जायें। आज के युग में शारीरिक तनाव एक समस्या है, मानसिक तनाव उससे उग्र समस्या है और भावनात्मक तनाव सबसे विकट समस्यां है। मानसिक तनाव से भी भावनात्मक तनाव के परिणाम भयंकर होते हैं। 

इस समस्या से निपटने के लिए ध्यान का सहारा लिया जाता है। ध्यान के अभ्यास से तनाव घट जाता है। तनाव के कारण माइग्रेन के दौरे पड़ते हैं। ये सिर में रह रह के होने वाला दर्द है, जो सिर के एक तरफ ही होता है। इसके साथ ही रोशनी और आवाज के प्रति संवेदनशीलता, उल्टी और मतली होती है। अगर माइग्रेन का दर्द बार बार सता रहा है तो इसके कारणों की जांच करते हुये  पीने के पानी के इस्तेमाल पर भी ध्यान दें। कई बार कम पानी पीना भी माइग्रेन अटैक का कारण होता है। अधिक से अधिक मात्रा में पानी पिये। इसके अलावा फलों का जूस आदि भी दर्द के दौरान लिया जाना बेहतर होता है। तनाव दूर करने के लिए एक्यूपंक्चर का प्रभाव दवाइयों के जैसा ही होता है। लेकिन जब एक्यूपंक्चर का प्रयोग माइग्रेन का दर्द दूर करने के लिए करते हैं तो इसके लम्बे समय तक चलने वाले साइड इफेक्ट्स का सामना नहीं करना पड़ता है। अनिद्रा, तनाव, माइग्रेन आदि रोजमर्रा के अंग बन गये है ये सब देखते हुए वैज्ञानिक, डॉक्टर, अनुसंधानकर्ता आदि मनीषी पुनः अध्यात्म योग की तरफ आकृष्ट हुये हैं। 

तनाव को दूर करने के लिए कायोत्सर्ग एक अचूक विधि है। यदि हमे अपने स्थूल चेतना की बात को भीतर से सूक्ष्म तक पहुंचाना है तो कायोत्सर्ग करना आवश्यक है। यदि शरीर की प्रवृत्तियों और स्नायविक प्रवृत्तियों का शिथिलीकरण नहीं है तो बात भीतर तक नहीं पहुंच सकती। कायोत्सर्ग दोनों और से किया जाता है बाहर से करने पर सबसे पहले हाथों, पैरों, वाणी और इन्द्रियों का संयम करना होगा। जब हम भीतर से चलेंगे तब उस मुद्रा में बैठना होगा जिसमें मन की दिशा और प्राण की धारा बदल जाये। मन और प्राण की सारी ऊर्जा भीतर की ओर बहने लग जाये तो शरीर के समस्त अवयव अपने आप शांत हो जायेंगे। जब हाथ, पैर और वाणी संयम घटित होता है तब इन्द्रियों के तनाव कम हो जाते है और उनमें उठने वाली आकांक्षाओं की तरंग कम हो जाती है। तब अध्यात्म की यात्रा शुरू होती है। अध्यात्म की यात्रा करने के लिए हमें कायोत्सर्ग का सहारा लेना होगा। साधना में कायोत्सर्ग का महत्वपूर्ण स्थान है। 

कायोत्सर्ग करने का उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य है कि शक्ति का जो व्यर्थ की व्यय हो रहा है, उसे रोका जाये। मांसपेशियों के तनाव में रहने से शरीर के द्वारा जो शक्ति खर्च हो रही है उसे बचाया जा सके। हम कायोत्सर्ग करंे और शिथिलता का अनुभव करें। अध्यात्म ने मनुष्य को बदलने की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया दी है। उसका पहला चरण कायोत्सर्ग है। इससे पुरानी आदतों में परिवर्तन आता है। मन का शोधन होता है। कायोत्सर्ग बुरे स्वभावों को बदलने वाला है। चाहे स्वभाव को बदलना हो, चाहे किसी बीमारी की चिकित्सा करनी हो तो सबसे पहले कायोत्सर्ग करना होगा। मानसिक शांति का सबसे बड़ा उपाय है चित्त-समाधि। चित्त-समाधि के लिए आवश्यक है चित्त की शुद्धि। 

चित्त की शुद्धि का सबसे बड़ा सूत्र है शरीर की स्थिरता। शरीर जितना स्थिर होता है, उतना ही चित्त शुद्ध होता है। चित्त की अशुद्धि का सबसे  बड़ा कारण है- चित्त की चंचलता। शरीर की स्थिरता हुए बिना चित्त की स्थिरता नहीं होती है। शरीर की स्थिरता हुए बिना श्वास शांत नहीं होता है, मन शांत नहीं होता है, स्मृतियां शांत नहीं होती है, कल्पनाएं शांत नहीं होती हैं, विचार का चक्र रुकता नहीं है। कायोत्सर्ग तनाव विसर्जन की प्रक्रिया है। इसके द्वारा मन को शांत, स्थिर और चंचलता का निरोध होता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)