लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई. ए. एस. अधिकारी हैं)
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भारत के वरिष्ठ नेता भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने उनके स्वर्गवास पर कहा था ” भारत माता आज रोती होगी, उसका प्रिय राजकुमार आज चला गया। एक सपना था जो टूट गया लेकिन याद रखें नेता चला गया उसकी विचारधारा नहीं“। परन्तु वर्तमान मे भाजपा व उसके सहयोगी संगठन देष के अलग-अलग क्षेत्रों में वर्तमान में जो हालात हैं उनके लिए प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू को जिम्मेदार व दोषी ठहराने में कोई कसर नहीं रख रहें। उन्होने व्यक्तिगत आरोपों के साथ उनकी आर्थिक नीतियों, विशेषकर लोकतांत्रिक समाजवादी नीतियों के तिरस्कार करने का उद्देश्य बना लिया है। जो आरोप नेहरू के आगे जोडे़ जाते है उनमें विभाजन की जिम्मेदारी, भारत-चीन युद्ध में हार, हिन्दुत्व की खिलाफत भारतीय अर्थव्यवस्था को नष्ट कर, गांधी के अयोग्य उत्तराधिकारी साबित होने, वंशवाद को बढ़ावा देने, अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने, पटेल को निष्प्रभावी करने कि हैं। कहा जाता है उनके व्यक्तित्व में दोहरापन था, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ थे उस पर प्रतिबन्ध लगाया। संघ नेहरू के सामाजिक दर्शन और दृष्टिकोण को समकालीन भारत के भविष्य के लिए खतरनाक मानता था।
जब भी नेहरू की लोकतांत्रिक समाजवादी नीतियों नियोजित विकास धर्म निरपेक्षता व राष्ट्र के लिए उनके बलिदान, प्रयास व योगदान की बात आती है नये राष्ट्रवादी भाजपा नेता उन पर प्रमुख रूप से आरोप लगाते है कि नेहरू व पटेल ने केबिनेट मिशन प्लान पर लचीला रूख अपनाया होता तो भारत का विभाजन टाला जा सकता था। नेहरू शेख अब्दूला के भरोसे रहे। भारत का नेतिक पक्ष कमजोर रहा, कश्मीर की अर्न्तराष्ट्रीयकरण और अनुच्छेद 370 लागू करने पर राजी हो गया। कहा जाता है ”नेहरू के युग का अंत हो गया। क्या हम यह मानले नेहरू ने जो लक्ष्य भारत के सामने रखा था वह अब अप्रांसगिक हो गया। अतीत को पीछे छोड़कर आगे की सुध लेने वाले, उचित तरीकों से न्याय संगत राजतंत्र की स्थापना व देश मे जनतांत्रिक संसदीय प्रणाली, लोकतांत्रिक, कल्याणकारी व धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करने वाले अर्न्तराष्ट्रीय व्यक्तित्व के योगदान को संकीर्ण सोच व बेहद गैर जिम्मेदाराना व्यवहार से भूल जायें?
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से 1912 में वकालत पास कर स्वाधीनता आन्दोलन व कांग्रेस से जुडें। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी के चलते उन्हें 9 बार जेल भेजा गया। 3259 दिन लगभग 9 साल जेल में बिताये। समाजवाद, घर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र के मूल्यों के आधार पर आधुनिक भारत की नीव डाली। उन्होनें देश को क्या कुछ नहीं दिया। गांधी व नेहरू को तलाश एक ही थी। गांधी ने जब नेहरू को अपना उतराधिकारी घोषित किया, तो उनके दिमाग में यही था एक ऐसे राज्य का निमार्ण जो हर धर्म को समान आदर देता है।
भारतीय उप महाद्विप में जवाहरलाल नेहरू एक ऐसे नेता और दूरदर्शी राजनीति के रूप में आए जिन्होनें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में इस देश को एक संप्रभु लोकतांत्रिक, घर्म-निरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य के रूप में स्थापित करने में अहम भुमिका निभाई दुनियाभर में देश की प्रतिष्ठा बढ़ी और दुनियाभर में उन्हें स्टेटसमेेन माना जाने लगा। ना तो उनसे बेहतर पहला प्रधानमंत्री हो सकता था ना हीं उनसे बेहतर प्रधानमंत्री आज तक देश को मिला है। आजाद भारत के शिल्पी ने ना सिर्फ भारत को भारत बनाया बल्कि उनकी वजह से भारत के प्रधानमंत्री पद की गरिमा इतनी ऊंची बनी कि प्रधानमंत्री पद का रेफरेन्स नेहरू ही होंगे।
नेहरू ने वैज्ञानिक सोच व तार्किक दृष्टिकोण से आर्थिक नीतियों में अपनी छाप छोड़ी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को आगे बढ़ाया, नियोजित विकास हेतु योजना आयोग बनाया, पंचवर्षीय योजनाओं को आधार बनाकर आर्थिक मजबूती प्रधान की, रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण, रेल्वे व शस्त्रों का निर्माण करने वाले कारखाने, जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, पंचायती राज की स्थापना, कृृृृृषि सुधार कार्यक्रम, औद्योगिक विकास, ग्रामीण विकास, सिंचाई व बिजली के लिए वृहद बहुउद्देशीय परियोजनायें, बांध, वृहत लोह-उद्योग, अणु शक्ति का विकास, बडे़ कल-कारखाने, इन्जिनियरिंग व वैज्ञानिक रिसर्च, तकनीकी विकास, शिक्षा के क्षेत्र में आई. आई. टी., आई. आई. एम., इसरो जैसे अतुलनीय संस्थानों की स्थापना।
अन्तराष्ट्रीय राजनीति में विश्व बन्धुत्व, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, गुट-निरपेक्षता जैसे मूल्यों के पक्षकार, जिन्होंने गुट-निरपेक्षता का सिद्धान्त को विश्व राजनीति में स्थापित किया। सैन्य दौड़ से दूर सामाजिक आर्थिक विकास व पंचशील के सिद्धान्त को दुनिया के सामने रखा। देश के संसाधनों को युद्ध सामग्री के लिए खर्च नहीं कर आर्थिक व सामाजिक विकास में लगाया। चीन के नापाक इरादों के कारण 1962 के युद्ध में भारत की हार से आहत हुए।
नेहरू ने आलोचनाओं को स्वाभिमान पर चोट की तरह नहीं लिया। मजबूत विपक्ष में विश्वास रखने वाले थे। कांग्रेस व विपक्षी सांसदों का आलोचना करने को प्रेरित करते थे। उन्होंने धार्मिक गतिविधियों व कर्म काण्डों से अपने आप को दूर रखा। नेहरू के व्यक्तित्व में यूरोपिय व गांधीवाद का मिश्रित रूप दिखाई पड़ता है। वे अच्छे वक्ता, लूभावने व्यक्तित्व, उदारमन के लोकप्रिय नेता थे। आग से तपकर देश की आजादी में शामिल हुए स्वतंत्रता सेनानी थे, देश के प्रति उनकी अपनी दृष्टि थी, एक सशक्त प्रधानमंत्री थें। उन्होनें देश की राजनीति, सामाजिक सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित किया।
पश्चिमी दर्शन, संस्थाओं और दृष्टिकोण का उनके वैश्विक दर्शन पर प्रभाव था। गांधी ने नेहरू के व्यक्तित्व को जमीनी बनाने में अनेक बार हस्तक्षेप किया और नेहरू ने गांधी के प्रयासों को एक आज्ञाकारी शिष्य के नाते अपनाने की भरपूर कौशिश की। वे देश की नीति को नेहरू नीति नहीं कहते थे, अपने को देश की नीति का प्रवक्ता कहते थे। उन्होंने कहा था ”मैं भारतीय राष्ट्रवाद और भारतीय स्वतंत्रता के लिए खड़ा हूॅ और मे यह एक सच्चे अर्न्तराष्ट्रीयवादी के आधार पर कह रहा हूॅ“। नेहरू देश के लिए बुनियादी महत्व रखने वाले सवालों पर अकेले निर्णय नहीं करते थे उनका श्रेय खुद को नहीं देते थे। उन पर वंषवाद का आरोप वे लोग लगाते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन से दूरी रखी।
महात्मा गांधी ने कहा था ”जहां जवाहर लाल है एक योद्धा के समान साहस और सफलता है“। वहीं एक राजनीतिज्ञ की बुद्धिमता और दूरदृष्टि भी है। वे निडर व निर्दाेष सरदार है, राष्ट्र उनके हाथों में सुरक्षित है“। राष्ट्रकवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था ”राजनीतिक संघर्ष के क्षेत्र में जहां बहुत छल व प्रवंचना चरित्र को विकृत कर देती है शुद्ध आचरण के आदर्श का निर्माण किया“। उन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में जो कुछ दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्ण ने नेहरू की श्रेठता के सम्बन्ध में कहा था ”जवाहरलाल ने साहस व निर्भीकता का पाठ पढ़ाता जो भविष्य के लिए जमानत है। गरीबी, अज्ञानता, सेवा और अवसर की असमानता को समानता में बदलना, उनकी सेवा का संकल्प है। उनका सिद्धान्त था राज्य व्यक्ति के लिए है न की व्यक्ति राज्य के लिए“। उनकी नीतियों व उनके कामों को आज भ्रामक प्रचार और प्रोपेगन्डा का शिकार बनाया जा रहा है। भारतीय सियासत में अमिट छाप छोड़ने वाले इस व्यक्तित्व के खिलाफ आज दुष्प्रचार चरम पर है।
उनकी विदेषी नीतियों से प्रभावित रूस के राष्ट्रपति ब्रजनेव ने कहा है ”जवाहर लाल नेहरू भारत की जनता की मेघाविता, उदारहृदयता, और महानता की जीती जागती मूर्ति थे“। उन्होने देश की स्वाधीनता व प्रगति के लिए सारा जीवन संर्पित कर दिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)