लेखक : लोकपाल सेठी
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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मोटे तौर पर देश में दो राष्ट्रीय दल, बीजेपी और कांग्रेस, ही है। शेष राजनीतिक दल अपने को कितना ही बड़ा और प्रभावी होने का दावा करें लेकिन उनका रुतबा क्षेत्रीय दल से अधिक नहीं है। ऐसे क्षेत्रीय दलों की संख्या एक दर्ज़न से अधिक है। इन दलों के नेता लगातार प्रयास करते आ रहे उनके दल विस्तार अन्य राज्यों में या राष्ट्रीय स्तर पर हो लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो पाए। जैसे समाजवादी पार्टी दावा तो करती है कि वह राष्ट्रीय दल है लेकिन इसका प्रभाव उत्तर प्रदेश से आगे नहीं है। इसी प्रकार ममता बैनर्जी पिछले 15 सालों से इस बात का प्रयास करती आ रही है कि उनकी पार्टी तृणमूल का विस्तार अन्य राज्यों में हो लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाई।
इसी प्रकार तमिलनाडु में द्रमुक, जो राज्य में कई बार सत्ता में रहा है, अपना विस्तार अन्य राज्यों में नहीं कर पाया। यही हाल राज्य के अन्य बड़े राजनीतिक दल अन्नाद्रमुक का है। बहुजन समाज पार्टी कहने को तो राष्ट्रीय दल होने का दावा करती है लेकिन इस प्रभाव उत्तर प्रदेश तक ही समिति है। पंजाब में वर्षों तक सत्ता में रही अकाली पार्टी अपना विस्तार पड़ोसी राज्य हरियाणा तक में नहीं कर पाई।
पिछले चुनावों में सत्ता में आने का बाद ममता बैनर्जी ने बड़े जोर शोर से यह कहा कि उनका दल अब राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभाने को तैयार है। उन्होंने अन्य कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं से संपर्क किया लेकिन उन्हें जल्दी ही समझ आ गया कि उनकी स्वीकार्यता पश्चिम बंगाल से आगे नहीं है। बीजेपी इस अलग हो कर जनता दल (यूनाइटेड) के सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार भी कांग्रेस को आगे रखा कर कोई राष्ट्रीय मोर्चा बनाने के प्रयास में जुटे है। वर्षो तक राज्य के मुख्यमत्री रहने के बाद अब उनकी महत्वकांक्षा बढ़ गई है तथा वे अपने अपने को 2024 के लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में पेश करना चाहते है।
पिछले कुछ महीनो से तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, जो के.सी.आर. के नाम से लोकप्रिय है, इस कोशिश में लगे है कि वे अपनी पार्टी को आगे रख कर कई अन्य पार्टियों को मिला राष्ट्रीय मोर्चा बना ले। राज्य में लगातार दो बार सत्ता में आने के बाद उनको लगता है कि वे देश के अगले प्रधानमंत्री भी हो सकते है। कुछ महीने पहले वे बंगलुरु में जाकर पूर्व प्रधानमंत्री तथा जनता दल (स) के सुप्रीमो एच डी देवेगौडा से मिले थे। दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर मोर्चा बनाने में बात की थी।
तेलंगाना में सत्तारूढ़ पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति है। इसका नाम ही बताता है कि यह एक क्षेत्रीय दल है। आंध्र प्रदेश को काट कर बने इस सत्तारूढ़ दल ने पडोसी राज्य में भी चुनावों में हाथ अजमाने की कोशिश की लेकिन इसेमुंह की खानी पडी। लेकिन इस बावजूद के. सी. आर इसमें लगे है कि अगले लोकसभा चुनावों में वे इस दल के नेता के नाते प्रधानमंत्री के रूप में उतरें।
इस दिशा में उन्होंने पहला कदम दशहरे के दिन उठाया। अपनी पार्टी के कार्यकारणी में एक प्रस्ताव पारित कर पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदल भारत राष्ट्र समिति कर दिया गया ताकि कम से कम यह आभास हो कि यह भी कोई राष्ट्रीय दल है। नई पार्टी का आगाज़ करने के लिए किये गए समारोह में अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया था लेकिन दो का छोड़ कोई इसमें नहीं आया। इसमें एक देवेगौडा का दल था दूसरा असदुद्दीन ओवैसी एआईएमआई एम था। देवेगौडा का दल जनता दल (स) केवल कर्नाटक तक सीमित है जबकि ओवैसी की पार्टी का वजूद मोटे तौर पर तेलंगाना तक ही है। पिछले दिनों के.सी. आर जब पटना जा कर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले थे तो उन्हें यह आश्वासन दिया गया था की उनका दल जनता दल (यूनाइटेड) उनके साथ रहेगा।
भारत राष्ट्र समिति की सरकार पिछले कुछ महीनों से राष्ट्रीय स्तर पर बड़े बड़े विज्ञापन देख कर सरकार की उपलब्धियों का बड़े जोर शोर से प्रचार कर रही है, सबसे अधिक प्रचार रायथू बंधू (किसान मित्र) योजना का किया जा रहा है। के. सी. आर. यह दावा कर रहे है कि इस योजना से लाखों की संख्या में किसानो को आर्थिक सहायता मिली है। अगर उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता में आती है तो इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जायेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)