हुबली का ईदगाह मैदान फिर सुर्ख़ियों में

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक) 

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अगर कर्नाटक हाईकोर्ट ने अंतिम क्षण हुबली के ईदगाह मैदान में गणेशोत्सव मनाये जाने की अनुमति न दी होती तो यह एक बड़ा मुद्दा बना सकता था। लगभग तीन दशक पूर्व, जब राज्य में कांग्रेस सरकार थी, तब पार्टी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की भारत एकता यात्रा के दौरान यहाँ राष्ट्रीय झंडा  फहराने की अनुमति नहीं दी गयी थी, तो यह एक बड़ा मुद्दा बन गया था।  ऐसा माना जाता है कि तब बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और आन्दोलन शुरू किया, उसी को लेकर दक्षिण के इस राज्य में बीजेपी की जड़ें  मजबूत होनी शुरू गयी। उस समय यहाँ विधानसभा में बीजेपी के चार सदस्य थे जबकि अगले चुनाव में इसके 40 सदस्य चुने गए। यह कहा गया था कि उत्तर भारत में बीजेपी की ताकत बधाने में जिस प्रकार राम जन्म भूमि आन्दोलन ने सहायता की थी ठीक उसी प्रकार दक्षिण में इस मैदान में जब राष्ट्रीय झंडा फहराने के मुद्दे ने बीजेपी की जड़ें यहाँ मजबूत करने करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।  1994 में जब बीजेपी की बड़ी नेता उमा भारती ने इस मैदान गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय झंडा फहराने की कोशिश की तो इसका बड़ा विरोध हुआ था हालत इतने ख़राब हो गए कि पुलिस को गोली चलानी पड़ी जिसमें चार लोग मारे गए। 

इस बार समय रहते यह स्थिति आने से बच गयी। महाराष्ट्र तथा दक्षिण ने अन्य राज्यों में गणेशोत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। सार्वजानिक स्थलों पर बड़े-बड़े पंडाल लगा कर गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती है यह उत्सव दस दिन तक चलता है। इस बार कुछ हिन्दू संगठनों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में यह याचिका दाखिल की कि बंगलुरु में चामराजपेट के ईदगाह मैदान में सार्वजानिक गणपति पूजा की अनुमति दी जाये। उनका कहना था कि यह मैदान सरकार के सम्पति है तथा वर्ष में दो बार, ईद और बकरीद, पर मुस्लिम समुदाय को नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी गयी है। इससे पहले इस मैदान में सार्वजनिक गणपति पूजा कभी नहीं हुई थी। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए यहाँ गणपति पूजा की अनुमति दे दी। 

इस निर्णय को मुस्लिम संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। न्यायालय इस मैदान को विवादित सम्पति मानते हुए यहाँ गणपति पूजा की अनुमति नहीं दी। यह निर्णय गणेशोत्सव शुरू होने से एक दिन पहले सुनाया गया। उसी दिन देर रात कुछ मुस्लिम संगठनो ने हाईकोर्ट में याचिका दी कि हुबली के ईदगाह मैदान में भी गणेशोत्सव नहीं मनाने दिया जाये, जबकि वहां वर्षो से वर्षो से वहां सार्वजानिक पूजा होती आ रही है। कोर्ट ने उसी रात इस पर सुनवाई कर याचिका को ख़ारिज कर दिया। हिन्दू संगठन पहले से ही तैयार बैठे थे कि सार्वजानिक गणपति यहाँ पहले की भांति होगी। अगर कोर्ट का निर्णय मुस्लिम संगठनो के पक्ष में जाता तो बीजेपी इसे बड़ा मुद्दा बना लेती। राज्य में लगभग 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले है इसलिए यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन जाता। 

अब फिर लौटते है हुबली ईदगाह मैदान की ओर जिसका अधिकारिका नाम रानी चेन्नमा खेल मैदान है। लगभग एक सौ साल पहले यहाँ के मुस्लिम संगठनों और शहर की नगर निगम  के बीच एक लम्बी अवधि का समझौता हुआ था। उसके अनुसार मुस्लिम समुदाय को ईद और बकरीद पर यहाँ नवाज़ पढ़ने  की अनुमति थी। शेष दिन मैदान खेलों और सार्वजनिक सभाओं के लिए खुला रहेगा। 1994 में  मुस्लिम समुदाय ने यहाँ एक मस्जिद का निर्माण कर लिया। इसके लिए उसे तत्कालीन कांग्रेस सरकार की अनुमति मिली बताते है। इसको लेकर बड़ा विवाद हुआ तथा मस्जिद निर्माण को सर्वोच्च नयायालय में चुनौती  दी गयी। 

कोर्ट ने इसे अवैध बताते हुए इसे गिराए जाने का जाने का आदेश दिया। लेकिन इसके बाबजूद मुस्लिम संगठन यहाँ गणेशोत्सव मनाये जाने और   राष्ट्रीय झंडा फहराए जाने का विरोध करते रहे। जब राज्य में एच डी देवेगौडा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार थी तो उन्होंने प्रयास कर मुस्लिम संगठनो को इस बात के लिए सहमत किया था कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहाँ राष्ट्रीय झंडा फहराने का विरोध नहीं करेंगे। मस्जिद की  इंतजामिया  कमेटी यह दावा करती आ रही है कि यह एक निजी सम्पति है तथा इसका उपयोग किसी को अन्य कार्यों के लिए नहीं करने दिया जाना चाहिए। मालिकाना  हक़ का मामला सर्वोच्च नयायालय तक गया। इस पर फैसले में कहा गया कि यह मैदान हुबली नगर निगम की सम्पति है तथा यह निर्णय निगम ही करेगी की इसका उपयोग किस प्रकार हो और किसे करने दिया जाये। (लेखक का अपना अध्ययन, लेखन एवं अपने विचार हैं)