लेखक : लोकपाल सेठी
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक मामलों के विश्लेषक)
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बीजेपी के रणनीतिकारों द्वारा दक्षिण के राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक करने का निर्णय बहुत सोच समझ और एक बड़े उद्देश्य को मद्दे नज़र रख कर किया गया था। यह माना जा रहा है कि दक्षिण के एक अन्य राज्य कर्नाटक में सत्ता पर काबिज़ होने के बाद अब दक्षिण के इस दूसरे राज्य पर पार्टी के नेताओं की नज़र टिक्की हुई है। पार्टी पिछले दो साल से यहाँ अपने पैर फ़ैलाने में लगी है और उसे कुछ सफलता भी मिल रही है।
इस बैठक का आयोजन विशाल स्तर पर किया गया तथा इसका प्रचार इससे भी अधिक जोर से किया गया ताकि पार्टी की आवाज़ सभी इलाकों में पहुंच सके। कहने को तो यह बैठक दो दिन की थी लेकिन केन्द्रीय मंत्रियों सहित पार्टी के सभी बड़े नेता यहाँ चार दिन तक रहे। राज्य में कुल 119 विधान सभा क्षेत्र है। पार्टी ने अपने 119 बड़े नेताओं का चयन किया और उन्हें एक-एक विधान सभा क्षेत्र आवंटित किया गया। इन नेताओं को यह निदेश दिया गया कि बैठक में भाग लेने से पूर्व प्रत्येक नेता उसका आवंटित विधान सभा क्षेत्र में दो दिन बितायेगा।
पार्टी के स्थानीय नेताओं से मिलकर उनसे फीड बेक लेगा जिससे यह अंदाज़ लगाया जा सके कि जमीनी स्तर पर पार्टी का विस्तार करने और मजबूत कैसे किया जा सकता हैं। इसके अलावा पार्टी के ऐसे नेताओं को यह भी चिन्हित करना था की अगले साल के अंत में होने वाले विधान सभा चुनावों में इनमें से किस को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। पार्टी के नेताओं का दावा है कि राज्य के इन विधान सभा क्षेत्रों में कुल 35,000 पोलिंग बूथ स्तर की समितियों का गठन हो चुका है। तीन जुलाई को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकारणी की बैठक के बाद परेड ग्राउंड में जिस सार्वजानिक सभा को संबोधित किया उनमें इन बूथ स्तर की पोलिंग समितियों के सदस्य उपस्थित रहे, इस बात को भी पुख्ता किया।
पार्टी के नेताओं ने दावा किया था कि सभा में दस लाख लोगों के उपस्थित रहने की उम्मीद है। भीड़ इतनी तो नहीं जुटी लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि हाल ही के वर्षों में इस मैदान में हुई सभाओं से यह सभा भीड़ के नजरिये से यह एक बड़ी सभा थी। चूँकि राज्य में कांग्रेस पार्टी अब नहीं केबराबर है इसलिए पार्टी अगले वर्ष के अंत में होने वाले विधान सभा चुनावों में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति को सीधे टक्कर देना चाहती है। समिति 2014 से यहाँ सत्ता में है और इसके पास राज्य विधान सभा में दो तिहाई से भी अधिक बहुमत है। पार्टी के सुप्रीमो और राज्य के मुख्यमंत्री के. सी. राव भी इस स्थिति को समझते है, तथा बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की तैयारी में जुटे है।
एक समय था जब उनकी पार्टी एनडीए के साथ थी लेकिन अब इससे दूर हो गयी है। राव राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति बनाने के लिए गैर कांग्रेस और गौर बीजेपी मोर्च बनाने में जुटे है। कभी वे मोदी से मिला करते थे अब हर संभव दूरी बनाने में लगे है। इसके लिए उन्होंने प्रोटोकॉल कोभी दर किनार कर दिया। कम से कम तीन अवसर ऐसे आये जब वे प्रधानमंत्री की अगवानी करने के लिए हवाई अड्डे पर नहीं जाकर केवल अपने एक मंत्री को भेज दिया। जिस दिन नरेंद्र मोदी बैठक में भाग लेने के लिए हैदराबाद पहुंचे उसी दिन राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा भी वहां आये थे। प्रोटोकॉल के नजर से उन्हें प्रधानमंत्री की अगवानी के लिए हवाई अड्डे पर जाना अपेक्षित था। लेकिन वे नहीं गए। लेकिन सिन्हा की अगवानी के लिए वे न केवल खुद गए बल्कि अपने सारे मंत्रिमडल को लेकर गए। यहाँ तक की सिन्हा के लिए उन्होंने एक बड़े रोड शो का आयोजन भी किया। सारे शहर को उनके पोस्टरों से पाट दिया गया।
पिछले विधान सभा के चुनावों में बीजेपी केवल एक सीट पर ही जीती थी। लेकिन 2020 में हैदराबाद महानगर निगम का चुनाव इसने पूरे जोर से लड़ा। कुल 150 सीटों में से 48 सीटें जीती। पहले बीजेपी के पास मात्र 4 सीटें थी। पिछले चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति के पास 99 थी जो घट कर 56 रह गयी। निगम के चुनावों के मिली इस बड़ी जीत के बाद ही बीजेपी ने विधान सभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी। सार्वजनिक सभा में प्रधान मंत्री ने राव परिवारवाद को लेकर सीधा हमला किया। राव का बेटा के टी रामाराव और भान्जा हरीश राव मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री है। उनकी बेटी कविता लोकसभा की सदस्य है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)