लेखक : डॉ.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी एवं पूर्व प्रबन्ध निदेशक, राजसिको हैं)
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भारत हाथ-करघों एवं हस्तशिल्प का देश है। देश की विशिष्ट सांस्कृतिक छबि की समृद्ध विरासत में इनका बड़ा योगदान है भारत में अनुमानतः 2600 से अधिक हस्तशिल्प और 500 हाथ करघा संकुल है। इनमें अधिकांश ऐसे परिवार रहते हैं जो अपना कारोबार चलाते हैं अथवा पारिश्रमिक पर काम करने वाले श्रमिक हैं।
राजस्थान की हस्तकलाओं का इतिहास यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा है। राजस्थान में सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि से लोगों में कलात्मक अभिरूची है। यहां का वातावरण कुशल हस्तशिल्प व शिल्पकार को सामाजिक दृष्टि से प्रोत्साहित करता है। कहा जा सकता है कि-‘‘राजस्थान हस्तशिल्प के मामले में सिरमौर है’’ शतकों से सभ्यता के विकास के साथ साथ यहां हस्तकालाऐं विविध रूपों में निखरती गई। अलग अलग रियासतों में प्राकृतिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यक्तिगत हालात व रूची के अनुसार पृथक पृथक शिल्प पनपा। जयपुर के मूल्यवान रत्न, मीनाकारी, नक्काशी, पत्थर की प्रतिमाएं (मूर्तिकला), ब्लू पाटरी, लाख की चूड़ियां, बंधेज, सांगानेरी-बगरू की हाथ की छपाई, गलीचे जोधपुर की कढ़ाईदार जूतियां, बंधेज ओढ़नी, उदयपुर के चन्दन की लकड़ी के खिलांेने, हाथी दांत की बनी वस्तुऐं, खस के बने पान दान, कोटा की डोरिया साड़ियां भारत में ही नहीं पूरी दुनियां में विख्यात हैं। मिट्टी के कलात्मक बर्तन, मूर्तियां हस्तकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। इन हस्तशिल्पिों ने विश्व में पहचान बनाई है।
डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, उदयपुर मंें लकडी के खिलोने के साथ छतों में भी लकड़ी के काम किये जाते हैं। उदयपुर ,सवाई माधोपुर और करौली में बनने वाले लकड़ी के खिलोने बहुत प्रसिद्ध हैं। उदयपुर पाली की हाथीदांत की चूडियाँ विश्व प्रसिद्ध हैं। राजस्थानी कपड़ों पर रंगाई, बुनाई और छपाई, कसीदाकारी का काम बड़े पैमाने पर होता है, जयपुर (सांगानेर, बगरू) पाली, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर रंगाई छपाई वाले शहरों के रूप में प्रसिद्ध हैं तो बीकानेर का लहरिया, किशनगढ, चित्तोडगढ़, कोटा की सुनहरी छपाई, विश्व प्रसिद्ध हैं। राजस्थानी बंधेज, चुनड़ी व लहरिया पर गोटे का काम किया जाता है। राजस्थान ऊन उत्पादन में प्रमुख है, गलीचे, दरिया, ऊनी सर्ज प्रसिद्ध हैं। राजस्थानी टेराकोटा कला, बीकानेरी उस्ता कला, नाथद्वारा की मीनाकारी, जयपुर जोधपुर की लाख की चूड़ियाँ, संगमरमर की व लाल व बादामी पत्थरों की मूर्तियां व खिलोने पूरे देश में पहुंचते हैं। पशुओं की अधिकता की बजह से चर्म कला का भी विकास हुआ है। नक्काशीदार जूते व जूतियां निर्मित की जाती हैं ।
आजादी के बाद सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत राज्य के लघु व कुटीर उद्योगों पर विशेष ध्यान दिया। राजस्थान के गठन के समय राज्य के औद्योगिक विकास की गति कमजोर थी। लघु उद्योग निगम, हस्तशिल्प बोर्ड, हाथ करघा व खादी बोर्ड सहित विभिन्न संस्थाओं की स्थापना कर विभिन्न योजनाऐं, कच्चे माल, प्रशिक्षण, वित्त, प्रचार प्रसार व विपणन के क्षेत्र में चलाई गईं जिनसे हस्तशिल्प को पुनः प्रोत्साहन मिला। जयपुर व उदयपुर में शिल्प ग्राम की स्थापना की गई। बुनकरों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास की सुविधायें दी जा रही हैं। कला को विश्वमंच पर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। ऊनी खादी का उत्पादन विपणन लक्ष्य बढ़ाया है।
वर्तमान अशोक गहलोत सरकार द्वारा सूती, ऊनी खादी पर भी विशेष छूट आदि के कारण उत्पादन विपणन में इजाफा हुआ है। स्मार्ट केन्द्रो की स्थापना द्वारा वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में रोजगार मुहैया कराने की योजना है। नगरीय व गा्रम हाटों का विकास, शिल्प व माटी कला बोर्ड की स्थापना की गई है। राजस्थान स्टेट हैंडलूम डबलपमेंट कारपोरेशन, राजस्थान बुनकर सहकारी संघ, राजस्थान खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, राजस्थान लघु उद्योग निगम, हस्तशिल्पियों, बुनकरों व हाथकरघा से जुड़े व्यक्तियों को प्रशिक्षण, वित्त प्रबन्धन, विपणन प्रबन्धन, प्रचार प्रसार द्वारा प्रमोट कर रहा है।
हाथ करघा व हस्तशिल्प उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी उत्पादों, सेवाओं और संस्थानों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। सुनियोजित ढ़ंग से इसे प्रोत्साहित किया जाय तो न केवल बड़ी संख्या में रोजगार उत्पन्न होगा बल्कि देश के आर्थिक विकास व निर्यात में इसकी खास भूमिका होगी। वर्तमान में शिल्पकारों और शिल्पियों के संकुलों को अनेक प्रकार की चुनौतियोें का सामना करना पड़ता है मशीनीकरण ने हाथ से काम करने वाले कारीगरों की जगह ले ली है। बुनियादी ढ़ांचागत सुविधाओं का अभाव है। शिल्पकार आपूर्तिकर्ताओं के हाथ के मोहरे बन कर रह गये। खादी भी देश में हस्तशिल्प व हाथकरघा उद्योग की प्रतीक बन गयी।
खादी व हाथकरघा जहां भारतीय संस्कृति का तानाबाना बुनते हैं वहीं हस्तशिल्प उसमें रंग भरता है। लगभग डेढ़ करोड से भी ऊपर बुनकरों व शिल्पियों को रोजगार हांसिल होता है। जिसमें बड़ा प्रतिशत समाज के कमजोर वर्गों के लोगों का है। उद्योग पर्यावरण हितैषी है, बिजली की बहुत कम खपत होती है।
वर्तमान अशोक गहलोत सरकार का विपणन प्रोत्साहन कार्यक्रम एक एकीकृत योजना है, जिसमें प्रचार प्रसार व जागरूकता के घटक बाजार परिसरों की स्थापना और देश में हस्तशिल्प के विपणन को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न एजेंसियां के माध्यम से प्रदर्शिनी व मेलों का आयोजन शामिल है। गैर सरकारी संगठनों स्वायत्तशासी समूहों को शामिल किया जाना योजनाओं की सफलता के लिए यह आवश्यक है। शिल्पियों के लिए सस्ते व सुलभ वित्त सुनिश्चित करना, मूल्य श्रृंखला तय करना, कौशल प्रौन्नयन तथा रूपांकन में नवीन व उपयोगी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने, विपणन क्षेत्र तैयार करना आवश्यक हैं तथा उचित एवं सामाजिक रूप से मूल्य दिलाना, विपणन कौशल दिलाना, उत्पादों का प्रचार प्रसार आवश्यक है, उनको संकुलों और सहकारिताओं के द्वारा संगठित करने की आवश्यकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)