जनसंख्या नियंत्रण की नीति : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

विश्व जनसंख्या दिवस

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

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वर्तमान में करीब 141 करोड़ की आबादी वाला चीन, दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबित वर्ष 2020 में भारत की आबादी 138 करोड़ पहुंच गयी है। तथा 2027 तक भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा। चीन से आगे निकल जाएगा। दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी करीब 17.5 फीसदी है जबकि धरातल का मात्र 2.4 फीसदी हिस्सा भारत के पास है। यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित मानव विकास सूचकांक 2020 में 189 देशों की सूची में भारत 131 वे पायदान पर है। यूएनडीपी ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य, शिक्षा व जीवनस्तर के महत्वपूर्ण मुद्धो पर सूचकांक प्रकाशित किया है। वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों में भारत 94 स्थान पर है। विश्व बैंक के मानव पूंजी सूचकांक 2020 में भारत का स्थान 116 वां है। यह सूचंकाक स्वास्थ्य, जीवन, स्कूल नामांकन, कुपोषण आदि पर आधारित है।

कोविड-19 की दूसरी लहर ने देश का स्वास्थ्य ढांचा बड़ी संख्या को कोरोना से बचाने में असफल रहा। देश में हर 3 सेकण्ड में एक व्यक्ति की मृत्यु होती है जबकि देश में हर एक सेकण्ड में एक बच्चा जन्म लेता है। भारत में बढ़ती जनसंख्या से सामाजिक आर्थिक चुनौतिया बढ़ रही है। संसाधानों का विदोहन मुश्किल में पड़ रहा हैं। देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन, कृषि भूमि, पेयजल गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए कम होते जा रहे है। जनसंख्या वृद्धि की दर संसाधनों को विकसित करने की रफ्तार से ज्यादा है। आर्थिक सामाजिक समस्यायें बढ़ रही है। देश में गरीबी, शिक्षा स्वास्थ्य, कौशल, सार्वजनिक सेवायें मापदण्डो से बहुत कम है।

1947 में आजादी के समय जनसंख्या महज 34 करोड़ थी। आजाद भारत की पहली जनगणना 1951 के अनुसार आबादी 36 करोड़ हो गई, गत 70 साल की अवधि में 139 करोड़ हो गई और कुछ वर्षो में 142 करोड़ से अधिक होगी। रहने की जगह कम पड़ेगी, व्यवस्था चरमरा जायेगी। 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने लाल किले की प्राचीन से जनसंख्या नियंत्रण को लेकर घोषणा की थी।

1975 में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी के सुपुत्र कांग्रेस नेता संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण अभियान चलाया था। लाखों लोगों की नसबंदी हुई थी। लेकिन इस पहल का नतीजा था कि 1977 के लोकसभा चुनावों में उत्तर भारत में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा उसके बाद किसी सरकार व नेता की जनसंख्या नियंत्रण की हिम्मत नहीं हुई, बात करने से भी डरने लगे। परिवार नियोजन विभाग का ही नाम बदलकर परिवार कल्याण विभाग कर दिया गया।

विकसित देशों ने अपनी आबादी को नियंत्रित कर लिया है। अमेरिका मे चालीस साल से जनसंख्या स्थिर हैं। चीन ने अपनी अपनी आबादी पर नियंत्रण कर लिया है। सम्पन्न कौमे व परिवार बच्चे कम पैदा करती है। गरीब कौमें व परिवार ज्यादा बच्चे पैदा करती है। जाति व सम्प्रदाय भी कही-कही जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार होते है।

जनसंख्या विस्फोट राष्ट्रीय समस्या है। भारत में हिन्दुओं और मुस्लिमो दोनों समुदाय के टीएफआर में तेजी से हो रही गिरावट यह इशारा करती है कि दोनों समाज के शिक्षित लोग अब परिवार को सीमित रखने की शिक्षा दे रहे है। 2001 में हिन्दुओं का टोटल फर्टीलिटी रेट 4.4 था। 2011 में घटकर 2.6 रह गया। मुस्लिमों का टीएफआर 4.8 था जो गिरकर 2.9 रह गया। अशिक्षा व बेरोजगारी ही अधिक बच्चे पैदा करने की वजह बन रही है। इसलिए शिक्षा व गरीबी निवारण के साथ जनसंख्या के लिए कानून की आवश्यकता है। राष्ट्रीय प्रजनन की औसत दर 2.2 है परन्तु अनेक प्रान्तों में प्रजनन दर ज्यादा है। बिहार में 2.9 है, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश में 2.3 है। कई प्रान्तों में जनसंख्या घनत्व राष्ट्रीय औसत से बहुत अधिक है।

राजस्थान अपने जनसंख्या नियंत्रण के प्रावधानों के लिए एक प्रगतिशील राज्य के तौर पर जाना है। 1992 में पंचायत व नगरपालिका कानून में प्रतिनिधि चुने जाने के लिए प्रावधान किया गया कि दो से ज्यादा बच्चे वाले चुनाव नहीं लड़ सकतें। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस कानून को और कठोर करते हुए दो बच्चे से ज्यादा बच्चों के पिता को सरकारी नौकरी में रोक का कानून बनाया, उसके बाद 2002 में सरकारी नौकरी में रहते हुए दो से ज्यादा बच्चों पर प्रमोशन व इन्क्रीमेन्ट रोकने का कानून बना फिर तीन बच्चों से ज्यादा पर निलम्बन का। उत्तरप्रदेश व उत्तराखण्ड में जनसंख्या नियंत्रण कानून का में सविदा जारी किया है। इसका उद्देश्य राजनीतिक है राजनीतिक उद्देश्य से मतों का धुव्रीकरण करने के लिए कानून लाने का प्रयास कर रही है। अधिक है जुलाई 2018 में बीजेपी सरकार में जनसंख्या नियंत्रण के सरकारी नौकरी से जुड़े प्रावधानों को खत्म कर दिया। वर्तमान केन्द्रिय भाजपा सरकार ने लोकसभा में घोषणा की है जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं जाया जा रहा। राजस्थान में भाजपा सरकार ने कानून में ढील दी। अब केवल चुनावों के मद्धेनजर। सामाजिक व जनसंख्या वृद्धि के मूल कारणो पर चैट नहीं है। जनसंख्या वृद्धि सरकारी नौकरी या पंचायत/नगरपालिका चुनाव में प्रतिबन्ध से भी नहीं रोकी जा सकती।

भारतीय संविधान की समवर्ती सूची के आइटम नम्बर 20-ए में पापुलेशन कन्ट्रोल और फैमिली प्लानिंग को जगह दी गई है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई कानून नहीं है। प्रदेशों में अपने-अपने तरीके से कानून बनाने की बजाए केन्द्रिय सरकार को आगे आना चाहिए। दुर्भाग्य से मोदी सरकार इससे पीछे हट रही है। सीएमआई के अनुसार आर्थिक गतिविधियों मे गिरावट से है। भारत की बेरोजगारी दर 7.14 प्रतिशत है। शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी दर बढ रही है। जून में 10 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। अर्थशास्त्रीयों के अनुसार आर्थिक गतिविधियों की गति धीमी रहेगी, जनसंख्या वृद्धि के साथ बेरोजगारी बढे़गी।

यदि सरकार की मंशा जनसंख्या में तेजी से हो रही बढ़ोतरी को रोकने की है तो सभी दलों व सामाजिक धार्मिक संगठनों से चर्चा कर एक सर्वमान्य कानून बनाना चाहिए। पर्सनल कानूनों मे हस्तक्षेप करने की बजाए जनसंख्या नियंत्रण के लिए, अशिक्षा और बेरोजगारी दूर करने के लिए कड़े कानून व कदम उठाने की आवश्यकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)