लेखक : प्रशांत सिन्हा
(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं।)
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प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु " मस्तिष्क " प्रदान किया है जिसका उसने दुरुपयोग ही किया है। उसने भौतिकवाद कहें या भौतिक सुख-संसाधनों के मोहपाश में पड़कर स्वार्थ और लोलुपतावश सम्पूर्ण प्रकृति और पर्यावरण को क्षत- विक्षत कर दिया है। मानव के भौतिकवाद के वशीभूत होने और उसके कभी न खत्म होने वाले लोभ ने पॉलिथीन का अंधाधुंध प्रयोग कर पर्यावरण को तेजी से नष्ट करना शुरू कर दिया है और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। जिस एकल उपयोग प्लास्टिक का प्रतिदिन तेजी से इस्तेमाल हो रहा है,वह पृथ्वी पर जन - जीवन के लिए एक गंभीर संकट बन गया है। दुख तो इस बात का है कि इससे समाज अनभिज्ञ है और वह इसके भयावह दुष्परिणामों को पहचान नहीं रहा है।
इसे देखते हुए ही भारत सरकार द्वारा 1जुलाई 2022 से एकल उपयोग प्लास्टिक और पॉलिथीन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसकी मांग पर्यावरणविदों द्वारा वर्षो से की जा रही थी। यह स्वागत योग्य कदम है। इसकी प्रशंसा की ही जानी चाहिए। यह एक कड़वा सच है कि दुनिया का दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत प्लास्टिक कचरा प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। इसलिए इससे निपटने के लिए स्ट्रॉ से लेकर सिगरेट के पैकेट तक आदि वस्तुओं पर एकल उपयोग प्लास्टिक पर रोक लगाना बहुत ही आवश्यक हो गया था।
दरअसल इसने हमारी अधिकांश भूमि पर ही कब्जा कर लिया है। गांव, कस्बों और शहरों की जमीन इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक के सामानों से पटी पड़ी हैं । गौरतलब है कि यह मिट्टी में बरसों तक नहीं घुलता है और धीरे - धीरे पानी में जा मिलता है और कुछ दिनों के बाद विभिन्न तरीकों से यह समुद्र में चला जाता है जिससे समुद्री जीव- जंतुओं के जीवन के लिए नुकसान पहुंचा रहा है। वह चाहे पक्षी हों, मछलियां हों या फिर अन्य समुद्री जीव तक हर साल प्लास्टिक से लाखों की तादाद में अनचाहे मौत के मुंह में चले जाते हैं।
ज्ञातव्य है कि लुप्तप्राय प्रजातियों सहित लगभग 700 प्रजातियां प्लास्टिक से प्रभावित हैं। समुद्री पक्षियों की लगभग हर प्रजाति प्लास्टिक खाती है। नतीजन उनका जीवन संकट में पड़ जाता है और अधिकांश जानवरों की मौत उलझाव या भुखमरी के कारण हो जाती है। यह प्लास्टिक मिट्टी और जल निकायों में प्रवेश कर छोटे छोटे कणों में टूट जाते हैं लेकिन विडम्बना यह कि विघटित नही होते। ये उस क्षेत्र की भूमि को क्षीण ही नहीं करता है बल्कि विषाक्त बनाने में अहम भूमिका अदा करता है। एकल उपयोग प्लास्टिक सौ से अधिक वर्षो तक मिट्टी और पानी में रहता है और विषाक्त रसायनों को छोडकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में प्लास्टिक से पैदा होने वाले प्रदूषण को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। यही नहीं पर्यावरण के अलावा ऐसे प्लास्टिक से इंसान के स्वास्थ पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
डॉक्टरों के मुताबिक प्लास्टिक के ये छोटे-छोटे कण हमारे शरीर में प्रवेश करने के बाद हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। प्लास्टिक उत्पादों में रासायनिक योजक होते हैं। इन रसायनों में से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे हार्मोन से संबंधित कैंसर, बांझपन और एडीएचडी और ऑटिज़्म जैसे न्यूरोडेवलपमेंट विकारों से जुड़े हुयी पैदा होती हैं। कई बार खानेे पीने की चीजों की पैकिंग में कैमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से लोगों की इम्यूनिटी पर भी बुरा असर पड़ता है। जरूरी है कि सभी लोगों को प्लास्टिक के कंटेनर्स में खाने पीने के सामान की पैकिंग करने से बचना चाहिए और प्लास्टिक की बोतल के बजाय पानी के लिए बांस या कांच की बोतल का इस्तेमाल करना चाहिए।
विश्व स्तर पर भी यह स्वीकार किया गया है कि एकल उपयोग प्लास्टिक समुद्री वातावरण के साथ स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 80 देशों ने प्लास्टिक के एकल उपयोग पर पूरी तरह या आंशिक तौर पर प्रतिबंध लगा रखा है। अफ्रीका के तीस देशों में पूरी तरह से यह प्रतिबंधित है। वहीं यूरोप में इसके इस्तेमाल पर कहीं अतिरिक्त कर लगा दिया गया है या फिर कही अलग से इस पर शुल्क लगाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार करीब 100 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में जाता है जिसके कारण व्हेल जैसे गहरे समुद्र में रहने वाले स्तनधारियों की आंत में बड़ी मात्रा में माइक्रो प्लास्टिक पाया गया है। दुनिया भर में हर साल 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। भारत की बात करें तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सर्वे के अनुसार देश में हर दिन 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जिसमें से सिर्फ 60% को ही इकट्ठा किया जाता है. बाकी कचरा नदी-नालों में मिल जाता है या पड़ा रहता है और वह भूजल को प्रदूषित करता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में हर साल 2.4 लाख टन सिंगल यूज प्लास्टिक पैदा होता है। इस हिसाब से हर व्यक्ति हर साल 18 ग्राम सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा पैदा करता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार बाजारों में मिलने वाले खाद्य पदार्थों या पान मसाले के रैपर आदि में एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक की बोतलें, अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक सामान इत्यादि प्लास्टिक कचरे की श्रेणी में आते हैं। प्लास्टिक महंगा नही होता है,इसलिए यह अधिक उपयोग में लाया जाता है। जबसे पॉलिथीन बाजार में आया, कपड़े, कागज और जूट की जगह पॉलिथीन का बेतहाशा प्रयोग होने लगा। 19वीं सदी के मध्य में हुई प्लास्टिक की खोज ने दुनिया में धूम मचा दी। आज हालात यह हैं कि कुछ घरों को छोड़कर कोई ऐसा घर नही मिलेगा जहां पॉलिथीन की मौजूदगी न हो। दुनिया के सभी देशों में इससे निर्मित वस्तुएं बहुतायत में इस्तेमाल की जाती है। इससे साबित होता है कि प्लास्टिक हमारे जीवन का अंग बन चुकी है।
इसमें दो राय नहीं कि अगर प्लास्टिक और पॉलिथीन को इस्तेमाल करने से नही रोका गया तो भविष्य में धरती पर कचरा ही कचरा होगा। इसलिए इसके लिए सभी को जागरुक होना पड़ेगा। सभी को अपने साथ कपड़े या कागज का बैग रखना चाहिए। प्लास्टिक के पतले ग्लास, स्ट्रॉ को अविलम्ब रोकने की जरुरत है। पारंपारिक तरीका जैसे मिट्टी के बने बर्तन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। प्लास्टिक की पी ई टी ई ( PETE ) और एच डी पी ई ( HDPE ) के सामानों का इस्तेमाल करना चाहिए। इस तरह की प्लास्टिक की आसानी से पुनरावृति ( recycle ) हो जाती है।
इस तरह की प्लास्टिक को न तो जमीन के नीचे और न पानी में रखने की कोशिश करनी चाहिए। इसे जलाना तो पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदायक है। यदि प्लास्टिक बैगों और प्लास्टिक से बने अन्य वस्तुओ का उपयोग तुरंत नही बंद कर सकते तो कम से कम उन्हे फेंकने से पहले जितनी बार भी हो सके उनका पुन उपयोग करें। इस प्रकार से हम प्लास्टिक कचरे को कम करने में और प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। सरकार और संस्थाओं के अलावा प्रत्येक नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि एकल प्रयोग प्लास्टिक का इस्तेमाल न खुद करें और न दूसरों को करने दें। उनको इस्तेमाल करने से रोकें। ऐसा करने से न केवल पर्यावरण की रक्षा करने में हम मददगार बनेंगे बल्कि स्वस्थ समाज की दिशा में भी आगे बढ़ेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)