मोदी सरकार के आठ साल का लेखा-जोखा, बता रहे हैं डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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पहली बार 26 मई 2014 को व दूसरी बार 30 मई 2019 को सत्ता में आई मोदी सरकार ने जनधन योजना, मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला, खाद्य सुरक्षा जैसी सामाजिक योजनाओं पर जोर दिया। इसके बाद निजीकरण व कृषि कानूनों पर जोर दिया। इसके पश्चात सरकार के कदम हिन्दुत्व की ओर बढ़ गये। तीन तलाक को अपराध बनाने वाला कानून, नागरिकता संशोधन कानून, अनुच्छेद 370 में जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा संशोधन, राज्य को दो केन्द्रशासित प्रदेशों में बांटना, बाबरी मस्जिद, रामजन्म भूमि विवाद पर सुप्रिम कोर्ट के फैसले के अनुसार राम मंदिर निर्माण, हिन्दु मंदिरों व देवताओं की मूर्तियों का निर्माण, हिजाब के साथ वाराणसी की ज्ञानव्यापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह आदि के मुद्दे नये सिरे से उठे। 

युवाओं के लिए कौशल विकास योजना प्रारम्भ की। लाल फीताशाही खत्म करने के लिए 1200 पुराने कानून खत्म किये। विदेश नीति के तहत अब तक पी.एम. 65 विदेशी दौरे कर चुके है। अमेरिका के नेतृत्व वाले संगठन क्वाड में शामिल होकर आर्थिक क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयत्न किया है। कल्याणकारी जनधन योजना के तहत अब तक 45.5 करोउ़ खाते खुलने का दावा किया जा रहा है। किसान योजना के तहत 11 किश्तों में दो लाख करोड़ रूपये वितरित किये गये है। सबको घर हेतु आवास योजना, उज्जवला योजना, गरीब कल्याण अन्न योजना प्रारम्भ की। अन्न योजना के तहत हर महिने 80 करोड़ लोगों को अनाज गोदामों से मुफ्त इनाज वितरण। नई शिक्षा नीति लाई गई लेकिन जीडीपी के अनुपात में शिक्षा पर व्यय 2014 के 2.8 फीसदी से 2020-21 में केवल 3.1 फीसदी हुआ है। 

2015 में नई स्वास्थ्य नीति घोषित की गई परन्तु बजट आवंटन में 25 प्रतिशत कटौती हो गई। आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की, दावा किया गया 50 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिलेगा। महामारी के कारण स्वास्थ्य पर व्यय 2019-20 के 2.73 लाख करोड़ के स्थान पर 2021-22 में 4.72 लाख करोड़ हो गया। ईज आफ डुइंग विजनेस में भारत की रेंकिंग में, सरकार के नरम रूख के कारण सुधार हुआ। सरकार का जोर उदारीकरण, निजीकरण पर रहा। रेलवे में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति दे दी गई। रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश खोल दिया गया। कारपोरेट के लिए इन्कम टैक्स की दर घटाकर 25 फीसदी कर दी। इस सबके बावजूद संकट के समय बीस हजार करोड़ रूपये का सेंट्रल बिस्टा प्रोजेक्ट की शुरूआत की गई। 

नोटबंदी व जीएसटी लागू की गई जिससे असंगठित क्षेत्र की कमर टूटी, करोड़ों हाथों का रोजगार छिन गया। लाकडाउन में मजदूरों का सैकड़ों किलोमीटर पैदल सफर दुखदायी घटना रही। आक्सीजन के लिए तड़पते लोग, गंगा में तैरती लाशों का मंजर देखने को मिला। सोचा था नकली नोट, काले धन, हवाला लेनदेन पर लगाम लगेगी परन्तु लगभग पूरी राशि बैंकों में आ गई। आज मौजूदा हाल में 70 साल पहले की तुलना में कई गुना नकली नोट, काला धन बढ़ गया है। नोटबंदी से 90 फीसदी लोगों को रोजगार देने वाले असंगठित क्षेत्र की कमर टूट गई है। बेरोजगारी 75 वषों के उच्चतम स्तर पर पंहुच गई है। बिना सोचे समझे जीएसटी लागू किया गया जिससे छोटे व्यापारियों को बड़ा नुकसान हुआ। श्रम कानूनों में बदलाव से मजदूरों के लिए अपने हक की बात करना भी मुश्किल हो गया। नौकरियां घटी, छंटनिया हुई, वेतन कम हुए, नई भर्तियों की बजाय ठेके पर काम लेना आरम्भ हुआ। 

अल्पसंख्यक, कभी लव जिहाद के नाम पर , कभी तस्करी, गौ तस्करी, गौ मांस, कभी हिजाब के नाम पर घटनाएं होती रही, हमले होते रहे। कश्मीर में 2020 में 37 फीसदी हिंसा बढ़ गई, 1990 के दशक की तरह कश्मीरी पंडितों का पलायन बढ़ गया। लोग कहने लगे सरकार को कश्मीर चाहिए कश्मीरी नहीं। राजनैतिक तनाव बना रहा। नागरिका संशोधन कानून व नागरिक सूची (एनआरसी) लागू करने की बात पर अभूतपूर्व धरना, प्रदर्शन, हिंसा हुई। सरकार 2020 में तीन कृषि कानून लेकर आई इसके खिलाफ लम्बा धरना, प्रदर्शन हुआ, मजबूरन सरकार को तीनों कानून वापस लेने पड़े। 

इन वर्षो के दौरान केन्द्रीय जांच एजेंसियों के दुरूपयोग के आरोप लगे। जब पूरा देश कोरोना से डरा हुआ था सरकार अन्य राजनीतिक मामलों में व्यस्त रही। कोरोना को रोकने में प्रारम्भ में काफी ढिलाई बरती गई। आम लोगों को मुफ्त टीका सुप्रिम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मिला। कारपोरेट के लिए इन्कम टैक्स की दर घटाकर 25 फीसदी की गई। आम लोगों को कोई रियायत नहीं मिली। खेती की लागत बढ़ गई, उसके अनुपात में उपज में दाम नहीं बढ़े। पीडीएस व्यवस्था की सीमाएं है खाद्य सुरक्षा कानून गरीब ग्रामीणों को मंहगाई की मार से नहीं बचा पाया। उचित मूल्य पर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की निगरानी के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई।

विकास दर 2014-15 में 7.5 और 8 फीसदी थी। वर्तमान सरकार आने के बाद परेशानी बढ़ी। महामारी से पहले आठ तिमाही तक विकास दर में गिरावट आई और 8 फीसदी से घटकर 3.1 फीसदी रह गई। कारपोरेट टैक्स में कटौती की गई परन्तु कम्पनियों ने निवेश नहीं बढ़ाया। मांग नहीं बढ़ी, लोगों के पास ईजी मनी नहीं रही, मंहगाई बढ़ती गई और आज तक के इतिहास में सबसे अधिक बेरोजगारी, मंहगाई वर्तमान सरकार के कार्यकााल में बढ़ी। आज अर्थव्यवस्था 2019-20 से भी 4.5 फीसदी कम है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)