घी ढुल जाये मगर पानी व्यर्थ जाय : डा.सत्यनारायण सिंह

प्रकृति है तो हम हैं

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

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महात्मा गांधी ने कहा था ‘‘आप प्रकृति से अपनी जरूरत के अनुसार ही लें तो वह तुम्हें हमेशा देती रहेगी और यदि उसे दोहन करना प्रारम्भ किया तो वह तुम्हें दुविधा देना प्रारम्भ कर देगी।’’ पश्चिमी उपभोक्तावादी-साम्राज्यवादी मूल्यों के मुकाबले के संदर्भ में गांधीजी का चिंतन और अधिक प्रासंगिक हो गया है। आज गांधीजी की बातों ने भूमण्डलीकरण के परिप्रेक्ष्य में एक नया व व्यापक आयाम ग्रहण कर लिया है, जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

गांधी ने कहा था ‘‘भारत के सामने अपनी आत्मा खो देने का खतरा है। वह इसे खोकर जीवित नहीं रह सकता इसलिए उसे आलस्यपूर्ण व असहाय होकर यह नहीं कह देना चाहिए कि मैं पश्चिम के प्रवाह से बच नहीं सकता। उसे अपने स्वयं के लिए और विश्व के लिए इतना दृढ़ होना चाहिए कि वह उसको प्रतिरोध कर सके। उसे हर हाल में प्रकृति को बचाना है, ऐसा विकास नहीं करना जो प्रकृति को नष्ट कर दे।’’ हम उपयोगितावादी के बजाय उपभोक्तावादी हो गये है। उपभोक्तावादी जीवनशैली प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से ज्यादा उपयोग करवा रही है। बढ़ती जनसंख्या व बढ़ती संस्कृति ने जरूरत से ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है।

हमने वन क्षेत्रों से एवं शहरी क्षेत्रों से पेड़ों की कटाई बेरहमी से की है। इन्सान केवल खुद के स्वार्थ में सिमटा हुआ है, जीव जन्तुओं के घरों पर भी कब्जा जमाया है। अपने पैरो को पसारते हुए हम जंगलों तक पंहुच गये, हमें पता चला जब जानवरों ने शहरों में हंगामा मचाना प्रारम्भ कर दिया। वन्य जीवों के जीवन पर जलवायु परिवर्तन व वनों के विनाश से खतरा है। हम फैशन व कपड़ा उद्योग से पानी प्रदूषित कर देते है। पक्षियों का भी पर्यावरण में महत्वपूर्ण योगदान है। हम भूल गये सादगीपूर्ण जीवन से ही सतत विकास संभव है।

जलवायु परिवर्तन में हमारी आदतें जिम्मेदार है। बढ़ते प्रदूषण, दूषित जल, कटते जंगल, बंजर होती घरा को आदतों की थोडे से बदलाव से बचा सकते है। पानी की बोतले, काफी कप्स, पेपर नैपकीन, टिशू पेपर, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम कर हम पेड़ों को बचा सकते है। आज हम विकास, जीवन व प्रकृति को एक ही पैमाने से समझते है। हवा, मिट्टी, जंगल, पृथ्वी के संतुलन में वन व पर्यावरण की अहम भूमिका है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया सबके विकास विनाशकारी सिद्ध होने लगे है। पालने वाली प्रकृति अब विनाश पर उतर आई है। समझने, संभलने का वक्त आ गया है। यदि क्लाइमेट चैंज और ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह जारी रहे तो अनेक प्रकार के पेड़ व प्रजातियां नष्ट हो जायेगी।

छोटे-छोटे बदलाव से बड़ा बदलाव संभव होता है। पर्यावरण संरक्षण से ही हम अपने बच्चों को अच्छा व शुद्ध वातावरण दे सकते है। गृहणियों को पर्यावरण सुरक्षित रखने की शुरूआत अपनी रसोई से करनी चाहिए। सिल्वर फाइल की जगह सूती कपड़ा काम में ले। पानी, बिजली की बचत करें, पेड़ पौधे लगाये, प्लास्टिक का उपयोग कम करें, कचना निस्तारण सुचारू रूप से करें। घर परिवार में, सहकर्मियों में, स्कूल, कालेज, परिवहन, होटल्स में शेयरिंग से पर्यावरण की रक्षा करें। अधिक से अधिक कम्युनिटी में, बचत व बदलाव से पर्यावरण शुद्ध रखा जा सकता है। आज पूंजीवादी विकृतियां जीवन मूल्य बन रही है। सरकार सड़क, बांध, भवन निर्माण हेतु पेड काट रही है उसके अनुपात में लगाये नहीं जा रहे है।

व्यक्तिवादी नहीं बने, सामाजिक व सामुदायिक जिम्मेदारियों को निभायें। घर की तरह मौहल्ले को साफ रखे, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण (कचरा, मैला, गंदा पानी, फ्लश वाटर) से बचे। सोलर पावर का उपयोग करें, रहन-सहन, खानपान की आदतें बदले, सार्वजनिक स्थान की पवित्रता बनाये रखें, पानी के स्रोत को गन्दा करना व कचरे को जलाना बन्द करें। स्नानघर में पानी को वेस्ट नहीं करें, लाल बत्ती पर मोटरवाहन को बंद करें। पुरानी कहावत थी ‘‘घी ढुल जाये मगर पानी व्यर्थ जाय।’’ पानी का रिसाईकल करें, पानी का बार-बार उपयोग करें, वर्षा जल बचाये, कार व फर्शो की धुलाई में पानी खर्च नहीं करें।

मनोरंजन का मुख्य स्रोत इलेक्ट्रोनिक मीडिया है, खेलकूद, व्यायाम, योग, सांस्कृतिक गतिविधियां बन्द हो रही है, दिखावे की मनोवृत्तियां बढ़ रही है, सस्टेनेबिल फैशन नहीं रहा। पोखर, ताल, नदी प्रत्येक में गन्दगी व कूडा करकट प्रवाहित करते है, उनका पानी तो प्रदूषित होता ही है समुद्र में बहकर जाने वाला कचना किनारों पर एकत्रित होकर वातावरण प्रदूषित व संकुचित कर रहा है। इन सभी छोटी-छोटी बातों से, मानसिक बदलाव से पर्यावरण बचाया जा सकता है। प्रकृति से जुड़े, शुरूआत करें, छोटी पहल भी कारगर साबित होगी। घर के हर हिस्से को इकोफ्रेंडली बनाये, छोटी-छोट बातों से सिखाये पर्यावरण बचाने के बड़े सबक।

दुर्भाग्य से पौधारोपण हमारे लिए इच्छा का विषय नहीं रहा जबकि प्रकृति एवं भविष्य को बेहतर बनाने के लिए यह काम हमें आज और अभी से करना चाहिए। तैयार करें स्वयं का बगीचा, घर पर पेड़ लगा नहीं पा रहे है तो पौधे लगाये। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)