केरल में वाम मोर्चे की करारी हार

लेखक : लोकपाल सेठी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

wwww.daylife.page 

राज्य में लगातार दूसरी बार सत्ता में आई मार्क्सवादी पार्टी नीत वाम मोर्चे की सरकार के लगभग एक साल बाद राज्य में विधान सभा के हुए पहले एक उप चुनाव में जीत को लेकर सत्तारूढ़ दल इतना अधिक आश्वस्त था कि इसके नेता और कार्यकर्ता एक बड़ा जश्न मनाने की तैयारियां कर रहे थे। वे इसे   सरकार की पहली सालगिरह के जश्नों से जोड़ रहे थे। लेकिन त्रिक्काकरा विधान सभा के मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल के सपनों को चकनाचूर कर दिया। मोर्चा यहाँ न केवल हारा बल्कि विरोधी कांग्रेस के उम्मीदवार को विधान सभा के हुए चुनावों से पहले से भी अधिक वोटों से जीत मिली।

अगर लोकसभा तथा विधान सभायों के उप चुनावों के नतीजों पर नज़र डालें तो यह साफ़ नज़र अता है कि इनमें आम तौर पर सत्तारूढ़ दलों को ही जीत मिली। इस तरह के उपचुनावों के जरिये सत्तारूढ़ दल, इनमें जीत दर्ज करवा, अपनी सरकारों की लोकप्रियता सिद्ध करने में कोई  कसर नहीं छोड़ते। केरल में वाम मोर्चे के नेताओं ने यह उप चुनाव जीतने के लिए सारी ताकत झोंक दी थी। खुद मुख्यमंत्री विजयन पिनराई ने इस उप चुनाव में  कई दिन तक धुआंधार  प्रचार किया। चूँकि वाम मोर्चे की ओर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के जोसफ चुनाव लड़ रहे थे इसलिए राज्य भर से पार्टी की कार्यकर्ता यहाँ प्रचार अभियान में जुटे रहे थे। 

मोर्चे के पास साधनों की भी कमी नहीं थी। इस क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ मना जाता है। कांग्रेस यह सीट लम्बे समय से जीतती आ रही थी। 2016 में कांग्रेस के उम्मीदवार थॉमस ने यह सीट जीती थी। पिछले विधान सभा चुनावों में उन्होंने फिर अपनी जीत को दोहरा कर यह साबित कर दिया  कि यहाँ उनकी और उनकी पार्टी की लोकप्रियता  में कोई कमी नहीं आई है। हालाँकि आम चुनावों से पूर्व कांग्रेस ने दावा किया था कि राज्य में वह वाम मोर्चे को हरा कर सत्ता में आ रही है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राज्य में पुराने काल चक्र को तोड़ते हुए वाम मोर्चा न केवल दोबारा सत्ता में आया बल्कि इसे पिछले चुनावों से भी अधिक सीटें मिली। 

यह उप चुनाव थॉमस के आकस्मिक निधन के कारण हुआ था। कांग्रेस पार्टी ने अपने इस दिवंगत नेता की पत्नी उषा जोसफ को अपने उम्मीदवार के रूप में पेश किया। पार्टी के नेताओं को पूरा विश्वास था की दिवंगत नेता लोकप्रियता और उनकी पत्नी को मिलने वाली सहानुभूति के चलते पार्टी की विजय सुनिश्चित सी है। यह माना जाता है कि राज्य में कांग्रेस पार्टी 2021 का विधानसभा चुनाव मुख्य रूप से इसलिए हारी क्योंकि इसमें भारी गुटबंदी थी। इसी गुटबंदी के चलते उम्मीदवारों के चयन में भी गुटबाजी हावी रही। इस उपचुनाव में पार्टी ने यह गलती फिर नहीं दोहराई। ठीक उम्मीदवार को खड़ा किया और और चुनाव प्रचार में भी एक जुटता दिखाई। विधान सभा में पार्टी के नेता सतीशन ने इस उपचुनाव में बड़ी भूमिका निभायी। वे विधान सभा चुनावों के बाद सदन में पार्टी के नेता बनाए गए थे और एक साल में उन्होंने अपने काम करने के तरीके से खुद को एक बड़े नेता के रूप में स्थापित किया।

विधान सभा चुनावों में यहाँ पार्टी की उम्मीदवार जोसफ को लगभग 22,000 मिले थे जबकि उनकी पर्त्नी को 25,000 से अधिक वोट पड़े, जो कुल पड़े मतों का लगभग 54 प्रतिशत थे। बीजेपी ने राज्य पार्टी के उप अध्यक्ष राधाकृष्णन को अपने उम्मीदवार के रूप मैदान में उतारा था उन्हें केवल 13000 मत मिले जो कुल डाले गए मतों का मात्र 10 प्रतिशत थे। 

इन उप चुनाव में वाम मोर्चे की हार के बाद सरकार के कामकाज करने के तौर तरीकों पर प्रश्न उठाये जाने लगे है। सत्ता में आने के बाद  मुख्यमंत्री पिनराई  ने दावा किया था कि उनकी सरकार अब नए तरीके से काम करेगी। उद्योंगो में पूँजी निवेश को प्रोत्साहन दिया जायेगा ताकि राज्य रोजगार के अवसर बढ़ें।  इसके लिए उन्होंने अधिकारियों के एक दल को अहमदाबाद भेज कर विकास के गुजरात मॉडल अध्यन करने के लिए कहा था। सरकार में आते ही सिल्वर लाइन रेल प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री पिनराई तथा मोर्चे के अन्य घटकों के नेताओं को लग रहा रहा था इन सबसे उनकी सरकार की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी हुई है। इसी आधार पर उनका आंकलन था पार्टी राज्य में होने वाले पहले उप चुनाव में  मोर्चे के उम्मीदवार की सुनिश्चित है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)