शासन और प्रशासन में बदलते मापदण्ड : डॉ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी है)

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वर्तमान दौर में शासन प्रशासन में पूर्व निर्धारित सिद्धान्त एवं मर्यादाऐं बदलती जा रही है। निश्चित मापदण्डों को भूलाकर सुविधा एवं स्वार्थ के अनुरूप प्रशासन से जुडें कार्य किये जा रहे है।  दुर्भाग्य से हमारे राजनेताओं को यह अहसास नहीं है कि वे क्या कह रहे हैं?  और उसका क्या प्रभाव जनमानस पर हो रहा है। चाहे विकास का क्षेत्र हो चाहे प्रशासन का और चाहे नीति निर्धारण का, इच्छित राजनैतिक लाभ को ध्यान में रखकर ही कार्य योजनाऐं बनाई जा रही है। 

सरकारी नौकरियों में आवश्यकता पडने पर ही छोटी संख्या में ऐसे कुछ अधिकारियों/कर्मचारियों के स्थानान्तरण होते थे, जो एक ही स्थान पर काफी लम्बे अर्स से रहे हों अथवा जिनका कार्य असंतोषजनक रहा हो अथवा जिनके प्रति जन विरोध हो। कुछ पदों पर पदस्थापित अफसरों को छोडकर एक साथ सैंकडों प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, वरिष्ठ अधिकारियों के स्थानान्तरणों ने प्रशासन की स्वतंत्रता व निष्पक्षता को समाप्त कर दिया है।

अब तो डाक्टर, इंजीनियर, लेखाधिकारी, सांख्यिकी अधिकारी, अन्य सेवाओं के अधिकारियों के सैंकडों ट्रांसफर राजनैतिक व वैचारिक दृष्टिकोण से एकमुश्त किये जाते रहे हैें। किसी को चिन्ता नहीं, लाखों खर्च होगा, समय की बर्बादी होगी एवं संचालित किये जा रहे कार्यों का तारतम्य टूट जायेगा और अधिकारियों की कार्य क्षमता प्रभावित होगी।

किसी एक दल या नेता के राज में किसी अधिकारी ने अच्छा काम किया तो क्यों कर उसको बदला जाना चाहिए?  अच्छा काम करने का मतलब यह तो नहीं कि पूर्व सरकार का आदमी था अथवा राजनीति में लिप्त था। दुर्भाय से अब कार्मिक प्रशासन की सभी मान्यताओं को भूलाकर सिविल सर्विसेज के सभी नियम कायदे तोडे, जाकर, किये गये स्थानान्तरण से प्रशासन कभी भी स्थितरता प्राप्त नहीं करेगा और न ही कार्य क्षमता में कोई वृद्धि होगी।

वर्तमान दौर में जो स्थानान्तरण हो रहे हैं, उनमें आरक्षित वर्गों, जाति विशेष के वर्गों को छांट-छंट कर ठिकाने लगाया गया है, इससे भी कुछ वर्गों में एक कुठा जाग्रत हुई हैं और वे महसूूस करने लगे हैं कि उनके साथ खुल्लमखुला भेदभाव किया जा रहा है, अन्याय किया जा रहा है, परेषान किया जा रहा है या ब्लेक लिस्ट किया जा रहा है।  प्रषासन में यदि क्षेत्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायवाद एवं अपने पराये की सोच रहे तो पूरी शासन प्रणाली को झकझोर देगा और उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे हालात पैदा हो जायेंगे।

आज अधिकांश ऐसे विधानसभा सदस्य हैं जो गत विधानसभाओं में भी थे एवं अब भी हैं। ऐसे राजनेताओं जिनके कंधे पर राज्य के शासन प्रशासन का भार है, यह कहते पाये जाते हैं कि उनको तो कुछ मालूम ही नहीं है। क्या निर्णय हो गये, क्या स्वीकृतियां हो गई, वे तो इसका महत्व ही नहीं समझते। कैसी विडम्बना है कि राज्य के भविष्य पर असर डालने वाले अहं मामलों भी किस प्रकार बगैर सोच समझे निर्णय लिये जा सकते है। 

आज तो सभी काम स्वार्थ एवं सुविधाओं के ही हो रहे हैं और होने जा रहे हैं। राजनैतिक दबाव, मजबूरियां आज इस कदर बढ गई है कि उसने सारी मर्यादाओं, मापदण्डों को भी तोड दिया है और यह लगातार टूटते जा रहे हैं एवं महत्व रह गया है स्वार्थ एवं सुविधाओं का सरकार के कामकाज को लेकर इतना अविश्वास  पैदा हो गया है कि ठेका देने की प्रक्रिया अमल से पहले आडिट की प्रक्रिया आवश्यक हो गई है। विरोध पक्ष अभिनेताओं की तरह एक्ट कर रहे हैं। जन सुविधाओं, जन अपेक्षाओं, उपयुक्त अनुपयुक्त उचित अनुचित को छोडकर केवल प्रचार हेतु कोई भी कदम उठा सकते हैं, बोल सकते हैं। उन्हें छपावट का रोग लग गया है।

भ्रष्ट्राचार विरोधी अभियान बडे पैमाने पर प्रशासनिक सुधारों के बिना बेअसर साबित होंगे। सिस्टम में सुधार के लिए दोषियों की धरपकड के साथ भ्रष्ट्राचार की संस्कृति से लडना भी जरूरी है। जनता का भरोसा जीतने तक अपनी विश्वसनीयता सिद्ध करने हेतु प्रशासनिक सुधारों की दरकार है। निर्णय प्रक्रिया में पारदर्षिता और विश्वसनीयता का समावेश कर विवेकाधीन अधिकारों की कटौती कर काम में देरी पर दण्डित कर, प्रषासनिक तंत्र में इंसेटिव सिस्टम को लागू कर बदलाव लाया जा सकता है। पदौन्नति का एक मात्र आधार योग्यता व अच्छा प्रदर्शन हो। व्यक्त स्वार्थों के गढों और किलों ने इनकी घेराबंदी कर दी है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन हुआ दुर्भाग्य से भ्रष्ट्राचार से संबंधित मामलों का निदान करने वाली देश की शीर्ष संस्थायें सी.वी.सी., सी.बी.आई., ई.डी., राजनीतिक शिकार बन गई है। दीर्घकालीन परिणाम नहीं आ रहे, केवल चर्चाओं का हिस्सा बन गई। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)