आरक्षण मिलना किसे चाहिए ?

लेखक : डॉ.सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी एवं पूर्व सदस्य सचिव, पिछड़ा वर्ग आयोग हैं) 

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संविधान में सामाजिक न्याय व समानता की अवधारणा के तहत दलितों, वंचितों व निषेधों व निर्योग्यताओं के कारण सामाजिक, शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों व समूहों को शिक्षा के क्षेत्र में व शासकीय सेवाओं में विशेष उपबन्ध द्वारा आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी। 

उच्चतम न्यायालय ने इन्द्रा साहनी बनाम भारत सरकार एम. नागराजन केस, जयश्री पाटिल बनाम महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश के केसेज में स्पष्ट दिशा निर्देश दिये हैं। सामान्यतः आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो, लिस्टों का लगातार व प्रत्येक दस वर्ष होने पर पूर्णरूप से रिवीजन हो, सूचियों का वर्गीकरण किया जाय क्रिमी लेयर सख्ती से लागू करें, पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त करने पर सूची से हटाने के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश दिए हैं। सूचियों से नाम हटाने-जोड़ने हेतु परमानेंट आयोग  प्रत्येक राज्य व  केन्द्र में स्थापित किये गये। 

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिये कि सरकारों को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना पड़ेगा कि आरक्षण देने की मूल भावना तिरोहित नहीं हो। उच्चतम न्यायालय के निर्णयों व निर्देशों का अनादर कर सक्षम, सम्पन्न, शक्तिशाली, भूमिधारी उन्नत वर्गों को आरक्षण देना समस्त आरक्षित वर्ग, दबे कुचले बंचित, शोषित समुदायों के लिए नुकसानदायक होगा, असमानता कम नहीं होगी, असन्तोष बढ़ेगा, अशांति पैदा होगी, विघटन बढ़ेगा जो लोकतंत्र व स्वतंत्रता के लिए हितकर नहीं होगा। जो लोग लाभ प्राप्त कर उन्नत हो गये उन्हें बाहर करना होगा। लिस्टों का रिवीजन करना होगा, पिछड़े, अति पिछड़ें, दलित, अति दलित का न्यायपूर्ण वर्गीकरण करना होगा अन्यथा विषमता घटने की बजाय बढ़ेगी, व्यक्तिवाद व असंतुलन बढ़ेगा और निम्न समाज के हितों पर कुठाराघाट होगा। 

उच्चतम न्यायालय ने बार बार कहा है कि आरक्षित वर्गो की लिस्टों का रिवीजन किया जाना चाहिए। जो जाति वर्ग व परिवार समृद्ध, शिक्षित हो चुके, सेवाओं में स्थान प्राप्त कर चुके जिनके पास  लैंण्ड, लर्निंग व पावर है वे आरक्षण के हकदार नहीं हैं। क्रिमी लेयर सख्ती से लागू किया जाये। सूचियों का विभाजन (वर्गीकरण) किया जाय आरक्षण नीति व प्रक्रिया की समीक्षा की जाय और यह सुनिश्चित किया जाय कि आरक्षरण का लाभ उन लोगों तक पहुँचे जिनको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। आरक्षण का आधार वर्तमान स्थिति होनी चाहिए।  

आरक्षण के आधार को सुदृढ़ करने के लिए वर्तमान सरकारें हिचक रही हैं। न रिवीजन न वर्गीकरण न क्रिमी लेयर, सीमा में बढ़ोत्तरी व आर्थिक आधार पर आरक्षण। सरकार जातिय गणना नहीं करना चाहतीं। जन गणना से सभी जातियों की शिक्षा, भूमि, मकान, नौकरी, आय के साधन व सामाजिक शैक्षनिक, आर्थिक स्थिति स्पष्ट हो जाती। बगैर जनगणना जातियों की जनसंख्या, प्रवास, शिक्षा, व्यवस्थाय, नौकरी आदि का डेटा एकत्र नहीं होगा। अभी 1931 के आधार पर अनुमान लगाये जा रहे हैं। 

2017 में किये गये राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्ययन के अनुसार 97 प्रतिशत नौकरियां व दाखिलों का फायदा ओ.बी.सी. की एक चौथाई जातियां ही उठा रही हैं। 983 जातियां यानि 37 प्रतिशत को नौकरी व दाखिलें का लाभ ही नहीं मिला। ओ.बी.सी. की दस जातियों ने 24.95  प्रतिशत लाभ उठाया है। ओ.बी.सी. में शामिल 994 जातियों को नौकरियों व दाखिलें में मात्र 2.68 प्रतिशत ही प्रतिनिधित्व मिला है। 10 राज्यों में ओ.बी.सी. कोटा उनकी जनसंख्या से कहीं ज्यादा है। कई राज्यों में बहुत कम। राजस्थान में लगभग 60 प्रतिशत ओ.बी.सी.  को केवल 21 प्रतिशत आरक्षण है। सरकार ओ.बी.सी. आयोग की सिफारिशों व अदालती आदेशों पर विचार कर सुधार नहीं करना चाहती। राजनीतिक लाभ के लिए लिस्टों में जातियों के नाम जोडे जा रहे हैं। आरक्षित वर्गों में वंचितों की संख्या बढ़ रही है। सरकार भूल रही है आरक्षण व्यवस्था सामाजिक पापों का प्रायश्चित ही नहीं दिशा निर्देश भी है। 

आरक्षण शैक्षणिक उन्नति, सरकारी सेवाओं में नियुक्ति, के फलस्वरूप गरीबी व पिछड़ापन का निवारण कर वंचितों को समानता का अधिकार है, हितकर भेदभाव है, परन्तु आरक्षण व्यवस्था का आधार सम्यक हो यह आवश्यक है। उसका लाभ अन्तज्य को पहुंचे, वफादारों, अपने व निजी के प्रति नहीं हो। राजनीतिक चश्में से नहीं देखा जाय। समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव,  व्याप्त पिछड़ापन व शोषण समाप्त हो। आज आरक्षण की रोशनी सक्षम, शक्तिशाली, सम्पन्न तुलनात्मक दृष्टि से अगड़े, जनसंख्या में अधिक, राजनीतिक रूप से सचेत लोगों तक ही पहुंच रही है। 

जिन्होंने  आरक्षण का अधिकार प्राप्त कर अपने को सभ्य व सक्षम बना लिया, शहरों के मंहगे मंहगे लाखों के भवन, मकानों के निवासी बन गये, परिवार का प्रत्येक सदस्य गाड़ी लेकर बाहर निकलता है बच्चे उच्च शिक्षण संस्थाओं में पढ़ रहे हैं परिवार में प्रत्येक सदस्य नौकरी प्राप्त कर चुका है, सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक ताकत हाथ में है उन वर्गों को व परिवारों केा मिल रहा  है और आरिक्षत वर्ग के अत्याधिक पिछड़ों को नहीं मिल रहा। जबकि वंचित लोगों को ही आरक्षण लाभ मिलना चाहिये।

आरक्षण किसे मिलना चाहिए? क्यों मिलना चाहिए? कितने प्रतिशत मिलना चाहिए? इस मामले को अब व्यापक रूप से देखने की जरूरत है। लगातार लिस्टों का रिवीजन हो, जनसंख्या के अनुसार आरक्षण का प्रतिशत बढ़े, नियमानुसार वर्तमान शैक्षण्कि, सामाजिक, आर्थिक व सेवाओं के प्रतिनिधित्व को देख कर वर्गीकरण हो, तभी आरक्षण का उद्देश्य, सामाजिक न्याय व समता, समानता का उद्देश्य पूरा होगा। आरक्षण वंचितों को मिले यह सुनिश्चित करने हेतु तुरन्त वर्तमान लिस्टों का रिवीजन हो, आरक्षण सम्पूर्ण राज्य के आधार पर ही नहीं क्षेत्रीय आधार पर वंचितों को मिले।  यह सुनिश्चित करने पर ही संविधान व न्यायालय की  मंशा पूरी होगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)