जन्म दिवस 9 मई
लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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उन्नीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय स्वंतत्रता तथा राजनैतिक उत्थान की दिशा में व राष्ट्रवाद की भावनाओं को जाग्रत करने मं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रमुख एजेन्सी रही। देशभक्ति की भावना से भारतीयों के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक उत्थान के लिए इस राष्ट्रीय रंगमंच पर राष्ट्रवादियों का एक समूह जिसका सामाजिक दृष्टिकोण सुधारवादी प्रकट हुआ है।
परन्तु कुछ समय बाद राष्ट्रीय विचारधारा में दो विचारधाराओं ने जन्मलिया, उदारवादी व उग्रवादी। उदारवादियों को ब्रिटिश सरकार के बुद्धिवाद, प्रबुद्धता व प्रगति में विश्वास था। वे पाश्चात्य विचारों एवं संस्थाओं के प्रशंसक थे। उदारवादियों ने निम्न जातियों तक शिक्षा पहुंचाना पुरूषों के सामान स्त्रियों की स्थिति करने, धर्म निरपेक्ष सरकार की आवश्यकता पर बल दिया गया।
उग्रवादियों में महादेव गोविन्द रानाडे, दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, रासबिहारी घोस व गोपाल कृष्ण गोखले प्रमुख थे। गोपाल कृष्ण गोखले हिंसा व उग्र आन्दोलन व व्यवहार के विरूद्ध थे।, उन्होंने वैधानिक ढंग अपनाने पर जोर दिया। उनका कथन था ब्रिटिश साम्राज्य भारत के कल्याणार्थ एक साधन रहा है, उन्होनें सामाजिक कार्यकुशलता में वृद्धि, निम्न जाति के हिन्दुओं की समस्याओं को दूरकर उनकें सुधार पर बल दिया।
गोखले ने सर्वेन्टस आफ इन्डिया सोसाइटी की स्थापना थी। उनके द्वारा स्थापित सर्वेन्टस आफ इन्डिया सोसाइटी बदलाव हेतु शक्तिशाली माध्यम नहीं बना। सेवा व बलिदान पर बल दिया, जनजीवन को सुदृढ़ करने जातियों व समुदायों में अच्छे सम्बन्ध व सहयोग, स्त्रियों की शिक्षा, पिछड़े वर्गो में शिक्षा, तथा आर्थिक प्रगति पर जोर दिया। स्वदेशी आन्दोलन को बल दिया। स्वदेशी आन्दोलन में बहिष्कार का प्रयोग नहीं किया। राजनीति में नैतिक दुष्टिकोण अपनाया। आध्यात्मीकरण पर जोर दिया। इसी आदर्श को महात्मा गांधी ने अपने जीवन में अपनाया। गोखले राजनैतिक उग्रवादी नहीं थे।
गोखले सच्चे भारतीय राष्ट्रवाद को समझा, क्षेत्रीय व साम्प्रदायिक सीमाओं को दूर करने का प्रयास किया। वे साम्प्रदायिक और प्रान्तीयता से बहुत दूर थे। उनका दृष्टिकोण व्यवहारीक था। उन्होंने न्यायिक सुधारों की मांग की, नागरिक अधिकारों पर बल दिया, रचनात्कम चेतना का संचार किया। उनके स्वदेशी व स्वराज के विचार ने आम लोगों को प्रभावित किया। उनका दृष्टिकोण मध्यम मार्गी था।
गोखले ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की गोखले गांधी जी के राजनीतिक आदर्श को दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी के कामों और उनके अनुयायियों के मनोबल से बहुत अधिक प्रभावित हुए। उन्होंने मुंबई के सार्वजनिक भाषण में कहा था। ”निःसंदेह वे ऐसी मिट्टी के बने है जिससे नायक व शहीद बने होते है, उनमें साधारण व्यक्तियों को नायकों व शहीदों में रूपान्तरीत करने की प्रशासनीय आध्यात्मिक शक्ति मौजूद है“। महात्मा गांधी ने गोखले को दिये गये वचन का पालन करते हुए पूरे वर्ष आँखे व कान खुले रखकर, विभिन्न स्थानों की यात्रा करने तथा खुद की दशाओं को देखने में गुजारा। गोखले ने पूना में भारत सेवक समाज की स्थापना की थी। जिसमें गांधी जी भी सदस्यता ग्रहण करना चाहते थे।
गोखले ने मानव सम्बन्धों को नियमित करने के लिए राष्ट्रीयता की भावना पर बल दिया। वें लोगों के बीच समानता की स्थापना, जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव का अंत क्षेत्रीयवाद, भाषावाद, साम्प्रदायिकता, का निषेद पर बल दिया तथा कहा सभी नागरीक धर्म को स्वीकार करने, प्रसारित तथा प्रचारित करने के लिए स्वतंत्र है। गोखले ने श्रमिकों को रोजगार, उचित जीविका कमाने हेतु कार्य का अधिकार, स्त्रियों को सुविधायें, बच्चों को अनिवार्य शिक्षा, मानव के प्रति प्रेम, नई समाज व राजनैतिक व्यवस्था, मानव कल्याण की भावना पर बल दिया।
गोखले व गांधी, आदर्शवादी थे। नैतिक मूल्यों की प्रधानता में विश्वास प्रकट करते थे। उन्होंने समान आर्थिक न्याय और सबके लिए अवसर सहित कानून तथा वैधानिक पद्धति के लिए जोर दिया। गोखले व अन्य उदावादियों के प्रयास से मानववादी आन्दोलन को बल मिला, नये मानव मूल्यों, लौकिक आर्दशों की उन्नति के लिए समानता के आधार पर समाज के पुर्ननिर्माण की गति को तेज किया। वैयस्तिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता के सिद्धान्तों का पोषण किया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
स्वतंत्रता आन्दोलन में गोपाल कृष्ण गोखले का योगदान महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने लोगों में स्वतंत्रता हेतु एक सामूहिक भावना का संचार किया। नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को राजनीति में महत्व दिया। शुद्रों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति अधिक खराब थी। उनका आर्थिक शोषण हो रहा था तथा उन्हें अर्द्ध मानव एवं पशुओं के स्तर से भी नीचे ला दिया गया है। सत्ता का स्वरूप स्वेच्छाचारी, सर्व सत्तावादी और निरंकुशतापूर्ण था। व्यक्तिगत पूजा का बोलबाला था। सामाजिक जीवन बड़ी ही जटिल प्रक्रिया में आबद्ध था। ऐसे में मानवीय सम्बन्धों में कुछ बेहतर परिवर्तन के लिए गोखले ने बीड़ा उठाया, सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों का उद्भव हुआ।
सम्पूर्ण विकास द्वारा मानव सम्बन्धों को सुधारने का प्रयास किया। चिंतन की प्रक्रिया धार्मिक से भौतिक तथा आर्थिक, साम्प्रदायिक से राष्ट्रीय की और अग्रसित हुई। हिन्दू सुधारवाद की गति तेज हुई। भारत में राष्ट्रवाद का उदय कोई अनायास घटना नहीं थी। दो महान नेताओें ने राष्ट्रीय सामाजिक, आर्थिक समस्याओं की तरफ ध्यान आकर्षित किया। गोपाल कृष्ण गोखले प्ररेणादायक उदारवादी रचनात्मक राजनीतिज्ञ थे। हिंसा व उग्रता के विरूद्ध थे। उन्होंने कल्पना की कि वे धनिक ढंग अपनाने पर देश में विकास होगा, समृद्धि बढे़गी, प्रतिभाएं जागृत होगीं सामाजिक उपयोगिता को उन्होंने राजनीति से प्रोफल नहीं होने दिया।