जीवनोपयोगी तत्व: उपशम और क्षमा
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान
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संसार में प्रत्येक प्राणी सुख चाहता हैं, दुःख कोई नहीं चाहता। जीवन सुखद बनाने के लिए जीवनचर्या को संतुलित बनाना चाहिए। जीवन को सुख और शान्ति में बनाने के लिए अन्तःकरण की पवित्रता बहुत आवश्यक है। जिस व्यक्ति का अन्तःकरण शुद्ध होता है उसमें ज्ञान की किरण शीघ्र प्रकाशित होती हैं। जैसे स्वच्छ दर्पण में प्रतिबिम्ब साफ-साफ दिखलाई पड़ता हैं, वैसे ही मानव का अन्तःकरण यदि निर्मल होता हैं तो आत्मबिम्ब शीघ्रता से प्रतिबिम्बित होता है। उपशम का अर्थ है- दबा हुआ। कर्मों के विद्यमान रहते हुए भी उदय मंे आने के लिए उन्हें अक्षम बना देना उपशम है। क्षमा का अर्थ है- किसी भी प्राणी की गलती पर उसे माफ कर देना। उपशम का सम्बन्ध यहां कर्म से सम्बन्धित किया जा रहा है। कर्म के कारण मानव जीवन भवचक्र में घूमता रहता है। जब कर्म आत्मा से सम्बन्धित रहता है, तब तक कोई भाव नहीं उत्पन्न होता। जब कर्म उदय में आते हैं तो आचार-विचार बदलने लगते हैं।
सुख या दुःख का सम्बन्ध कर्म से है। सब प्राणी अपने कर्मों के अनुसार पृथक्-पृथक् योनियां प्राप्त करते हैं। कर्मों की अधीनता के कारण अव्यक्त दुःख से दुखी प्राणी जन्म जरा और मरण से भयभीत होकर संसार-चक्र में भटकते रहते हैं। प्राणियों के शुभाशुभकर्म ही संसार भ्रमण का कारण है। कर्मवाद का यह सिद्धान्त है कि जो प्राणी जैसा कर्म करता है उसको उसका फल अवश्य भोगना पड़ता है। कर्मों का फल भोगे बिना संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती। कर्मों के उदय में आते ही पाप पुण्य का उदय होने लगता है। अच्छा कर्म करने से पुण्य का अर्जन होता हैं और बुरा कर्म करने से पाप का अर्जन होता है। क्षमा को वीरों का आभूषण कहा गया है- क्षमा वीरस्य भूषणं। हमें पापी से नहीं बल्कि पाप से घृणा करनी चाहिए।
भगवान महावीर, महावीर इसलिए कहलाये क्योंकि उन्होंने बुराईयों पर विजय प्राप्त कर ली थी। जीवन में आने वाली अनेक यातनाओं को समभाव से सहकर उन्हें जीत लिया था। वे परीषहजयी थे। उन्होंने जीवन भर कष्टों को सहकर कष्टों पर विजय प्राप्त की। क्षमा का सबसे बड़ा सूत्र अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का केवल उन्होंने उपदेश ही नहीं दिया बल्कि स्वयं अपने जीवन में उतारा। सभी प्राणियों के प्रति जीव दया का भाव ही अहिंसा है। अहिंसा सभी प्राणियों का कल्याण करने वाली है। स्वयं तरिये और दूसरों को भी तारीये का सूत्र उन्होंने प्राणिमात्र को दिया। क्षमा करने वाला वीर होता है। क्षमा उसे शोभा देती हैं जो वीर है। कायर लोग इस शस्त्र का प्रयो नहीं कर सकते, क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में उनका धैर्य टूट जाता है और क्षमा का पालन भी असंभव हो जाता है। वीर होने से यहां पर आशय युद्ध कौशल से नहीं, अपितु कर्मशीलता से है।
दूसरे शब्दों में वीर वह हैं जिसका अपने काम पर अपना नियन्त्रण है। जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण करता हैं वह महावीर कहलाता है। स्वामी विवेकानन्द ने मानव मात्र को कर्मयोग की शिक्षा दी। महात्मा गांधी ने लोगों को क्षमा की शिक्षा दी। चरित्रवान व्यक्ति ही क्षमाशील हो सकता है। व्यक्ति को अपने कर्मों से दूसरों को प्रतिरोध देना चाहिए। क्षमा अकर्मण्यता या कायरता नहीं है। जो लोग क्षमा को कायरता समझते हैं यह उनकी नासमझी है। किसी को किसी की भूल के लिए क्षमा करना और उस व्यक्ति को आत्मगलानी से मुक्ति दिलाना एक बहुत बड़ा परोपकार है। क्षमाशील व्यक्ति संतोषी, वीर, धैर्यशील, सहनशील तथा विवेकशील होता है। वह हमेशा दूसरों का भला करने मंे विश्वास रखता है। क्षमा करने वाला, क्षमा पाने वाले से कही अधिक सुख पाता है। क्षमा से बड़ा न कोई शस्त्र हैं न कोई शास्त्र। क्षमा बड़प्पन का सूचक है। क्षमा मांगने वाला मनुष्य अपने अन्दर के अहंकार का विनाश करके दूसरे इंसान से अपनी गलती की क्षमा याचना करता है। क्षमा देने वाला व्यक्ति भी अपने अहंकार से मुक्त होकर क्षमा मांगने वाले व्यक्ति को माफ करता हैं। इससे दोनों के मन के अन्दर का अहंकार नष्ट होता है। सच्चे हृदय से क्षमा मांगने की बात ही कुछ और है। ऐसा करने से मन को शांति मिलती है।
न्यायालय में न्यायाधीश के समक्ष यदि अपराधी अपने अपराध पर पश्चाताप करंे या माफी मांगे तो न्यायाधीश भी उसके ऊपर दया दिखा सकता है। मूर्ख व्यक्ति न क्षमा करते हैं और न भूलते हैं। सीधे-साधे व्यक्ति क्षमा भी कर देते हैं और भूल भी जाते है। क्षमा करना अंधेरे कमरे में रोशनी करने जैसा होता है। क्षमा करने और क्षमा मांगने का जब भी कोई सुअवसर मिले उसका सदुपयोग करना चाहिए। जब हालात नाजुक स्थिति में पहंच जाती हैं तो क्षमा ही एकमात्र शब्द हैं जो बिगड़ी परिस्थितियों पर अंकुश लगा सकता है।
क्षमा मानव जीवन का आधार है। इसके बलबुते पर ही हमारा दैनिक जीवन बहुतसी घटनाओं और दुर्घटनाओं से बच सकता है। क्षमा अहंकार और क्रोध का समाधान है। इसीलिए कहा गया है- क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात। अर्थात् छोटे लोग उत्पात भी मचाये तो बड़े लोगों को क्षमा कर देना चाहिए। क्षमा शीलवाना का शस्त्र और अहिंसक का अस्त्र है। क्षमा प्रेम का परिधान है। क्षमा विश्वास का विधान है। क्षमा सृजन का सम्मान है। क्षमा नफरत का निदान है। क्षमा पवित्रता का प्रवाह है। क्षमा नैतिकता का निर्वाह है। क्षमा सद्गुण का संवाद है। क्षमा अहिंसा का अनुवाद है। क्षमा को धारण करने के लिए हृदय की शुद्ध अन्तःकरण की पवित्रता आवश्यक है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)