पानी गया पाताल पानी संजोना ख़ास ज़रुरत

लेखक : राम भरोस मीणा

(लेखक जाने माने पर्यावरणविद् व समाज विज्ञानी है)

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देश दुनिया में पानी को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी "पानी बचाओ जीवन बचाओ" इसे लेकर हर देश राज्य अपने प्रयास में लगा कि कैसे पानी को बचाया जाए, लेकिन ना पानी बच पा रहा ना ही जीवन बचने की सम्भावना। पानी के महत्व को समझते हुए जब भारत में प्रत्येक नदी जीवन्त थी रहीम जी ने लिखा था कि "रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून" यह वाक्य उन्होंने उस समय कहा जब पानी की अमृतधारा हर जगह बहा करती, भारत देश में लोग लाव चरस रहट से पानी  निकाल कर खेती करते, पानी के महत्व को लेकर हमेशा विद्वान लोग जन-जन को जागरूक करते आए,  लेकिन पिछले कुछ दशकों में पानी की भूगर्भीय गिरावट इतनी तेज हुई की अनुमान नहीं लगा सकते। आज हम देश की बात करें गोवा, अरुणाचल, पंजाब, त्रिपुरा, राजस्थान में सर्वाधिक जल स्तर पिछले एक दशक में गिरा वहीं राजस्थान में सर्वाधिक जल स्तर झुंझुनू, सिरोही, अलवर, सीकर, दौसा में गिरा है। 

गिरते जल स्तर को लेकर विश्व व देश की बात करें तो वहां अनेकों कारण रहें होंगे जो पर्यावरणीय परिस्थितियों, उपयोग के तरीकों, भु गर्भीक आंतरिक संरचनाओं के साथ जल संग्रह के प्राकृतिक व मानव निर्मित भंडारों की स्थिति।  ये सभी परिस्थितियां राजस्थान राज्य पर भी उतनी ही लागू होती  जितनी हम देश के अन्य इलाकों के बारे में सोचते हैं। लेकिन अब यदि हम अलवर जिले की बात करें यहां 86% जल स्तर पिछले एक दशक में एका एक गिरा । पीने योग्य मीठे पानी का जलस्तर अलवर जिले में 1971 में 50 से 75 फुट था, 1991 में 100 से 125 फुट, 2011 में 200 से 350 फुट, 2021-22 में यह 450 से 650 फुट पर जा पहुंचा जो बड़ी चिंता का विषय है।

जल जंगल जमीन को लेकर कार्य कर रहे एलपीएस विकास संस्थान के पर्यावरणविद् राम भरोस मीणा ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि राजस्थान के अलवर जिले में 14 ब्लॉक डार्क जोन घोषित हो चुके जिनमें नीमराना बहरोड़ के बाद थानागाजी ब्लांक सबसे बड़े ख़तरे में है, यहां सर्वाधिक वन क्षेत्र होने के साथ औधोगिक इकाइयों का अभाव रहा, प्राकृतिक जल स्रोतों की बहुतायत के साथ भु गर्भीक संरचनाएं पानी संग्रह करने योग्य रही। प्राकृतिक परिस्थितियां अनुकूल होने के बाद भी यहां पानी की स्थिति दयनीय बनी होना भविष्य के लिए खतरे के संकेत हैं। पानी के इस कदर गिरने के पिछे जल स्रोतों का संरक्षण नहीं होना, वर्षा जल का संजोकर नहीं रखना, नदियों का नालों में तब्दील होने के साथ उनके बहाव क्षेत्रों में बढ़ते अतिक्रमण तथा पिछले दो दशकों में पानी पर सही कार्य नहीं होना, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई होती रहना। 

पानी के साथ जनजीवन के भविष्य को देखते हुए आज आवश्यकता है कि यहां की नदियों की सुध ली जाएं, पानी संग्रह के प्राकृतिक व मानव निर्मित भंडारों को पुनः संजोया जाएं, वन सम्पदा, वनस्पति, पेड़ पौधों की कटाई को रोका जाए, जन सामान्य में जल के प्रति जागरूकता पैदा करने के साथ आज जल के उपयोग व संरक्षण के प्रति विशेष काम करने की आवश्यकता है जिससे जल के साथ जीवन को बचाया जा सके। (लेखक के अपने निजी विचार एवं अपना अध्ययन है)