धर्म मनुष्य को तोड़ता नहीं बल्कि जोड़ता है : डॉ. सोहन राज तातेड़

भारत की विशेषता विभिन्नता में एकता

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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भारत देश एक रंगीला देश है। इसमें अनेक जातियों, धर्मों, मतमतान्तरों, भाषाओं, सांस्कृतिक, भौगोलिक विभिन्नताओं और साम्प्रदायिक मान्यताओं वाले लोग रहते है। इतनी विभिन्नता के होते हुए भी यहां के लोगों की इतनी सुन्दर भावना है कि किसी भी प्रकार का खतरा आने पर सब एक हो जाते है। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में प्रायः भारत के सभी प्रांतों की विभिन्नताभरी झांकियां जब प्रस्तुत की जाती है तो लोगों का मन मोह लेती है। भारत की अधिकांश जनसंख्या गावों में निवास करती है जिनका मुख्य व्यवसाय खेती करना और पशुपालन है। गावों में करुणा, सहानुभूति और मैत्री का ऐसा सुन्दर वातावरण दिखाई देता है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। भारत में एकता का सबसे बड़ा प्रमाण यहां की मानवीयता है। मानव-मानव में यहां कोई भेद नहीं है। विभिन्नता में एकता के कुछ ऐसे चिंतन बिन्दु यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं जिनका उद्देश्य मानवीय एकता के सूत्र है। 

मानवीय एकता क्या है? क्यों आज इसकी आवश्यकता पड़ी है? एकता पैदा करने वाले सूत्र क्या है? इसे समझने के लिए मानव को समझना पड़ेगा। मानव एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य समाज में रहता है। समाज से बहुत कुछ प्राप्त करता है। 

समाज से आदान-प्रदान, भाईचारा, सौहार्द, सहानुभूति, समता, उदारता से रहना उसका कर्त्तव्य है। समाज में किसी का शोषण न हो। राष्ट्र निर्माण में सबका योगदान हों जिससे स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके। भेद-भाव की खांई को समाप्त करने के लिए सबको मिलकर के प्रयास करना चाहिए। जन्म के समय सभी समान होते है। किन्तु पैदा होने के बाद सम्प्रदाय की छाप लगा दी जाती है। यह सम्प्रदाय ही एक ऐसा तत्व है जो मानव-मानव में भेद कर देता है। जन्म के समय बच्चा कोरे कागज के समान होता है। परिवार और समाज में जो सीख उसे दी जाती है वह वैसा ही बन जाता है। हिन्दू परिवार में जन्मा हुआ बच्चा हिन्दू संस्कारों में पलता है और मुस्लिम समाज में पैदा हुआ बच्चा मुस्लिम संस्कारों से पलता-पुस्ता है। इसी प्रकार जैन, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चे धर्मानुकूल सामाजिक वातावरण में बड़े होते हैं। सम्प्रदाय भेद पैदा करता है और धर्म एकरूपता दिखलाता है। 

प्रकृति सबके साथ समान व्यवहार करती है और एकता का संदेश देती है। पृथ्वी, जल, वायु और आकाश का आनन्द सब समान रूप से लेते है। सूर्य का प्रकाश सभी समान रूप से लेते है कोई कम या ज्यादा ग्रहण नहीं करता है। इससे यह ज्ञात होता है कि प्रकृति सबकी है और सब प्रकृति के हैं तो भेद किस बात का है। सभी मनुष्य का रक्त समान होता है, मलमूत्र समान होता है, सभी मानव जाति से उत्पन्न है तो मनुष्य में अंतर किस बात का। यह अंतर मानवकृत है, ईश्वरकृत नहीं। ईश्वर की दृष्टि में सब समान है। हरि का भजै सो हरि का होई जो ईश्वर का भजन करता है वही ईश्वर का हो जाता है। मानव न कुछ लेकर के आया है और न कुछ लेकर जायेगा। उसका धर्म और पुण्य-पाप कर्म ही उसके साथ जाता है। परिवार, समाज और देश में भाईचारा होना चाहिए। 

वसुधैव कुटुम्बकम् का सूत्र हमारे भारतीय संस्कृति का सूत्र है। पूरा विश्व ही एक परिवार के समान है इसमें कोई न तो उच्च है और न ही निम्न। सभी अपने धर्म, वर्ण, जाति के अनुसार परिवार, समाज और राष्ट्र के उत्थान में लगे हुए है। हमारे राष्ट्रीय पर्व भी हमें एकता के सूत्र में बांटते है। होली, दिवाली, रक्षाबंधन, ईद, वैशाखी इत्यादि उत्सव एकता का संदेश देते है, भाईचारे का संदेश देते हैं। ये सब पर्व हम लोग मिलकर खुशियां बांटकर मनाते है। किसी के सुख में सुख और दुःख में दुःख का अनुभव करना हमारा कर्त्तव्य है। एकता की सबसे बड़ी मिसाल उस समय प्रस्तुत होती है जिस समय कोई राष्ट्रीय आपदा आती है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सुनामी, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाएं जब आती है तो उस समय धनजन की बहुत हानि होती है। धर्म, जाति, सम्प्रदाय को पूछे बिना सबकी समान रूप से सहायता की जाती है। 

धर्म मनुष्य को तोड़ता नहीं बल्कि जोड़ता है। ईश्वर के समक्ष या देवालयों में जब हम जाते हैं तो वहां पर सबकी मंगल कामना करते है। इसीलिए धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा गया है। जैसे गंगा, यमुना जैसी नदियों का जल सब समान रूप से ग्रहण करते है और अपनी प्यास बूझाते हैं। वहां किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रहता। आज के समाज में कुछ ऐसी आतंकवादी घटनाएं समाज को तोड़ने के लिए की जा रही हैं जिससे समाज विभाजित हो जाये किन्तु आतंकवादियों के मनसूबों को सभी जानते हैं और उनकी यह कुत्सित विचारधारा कभी सफल नहीं हो सकती। हर धर्म और हर समाज में कुछ बुरे विचारधारा के लोग होते हैं जिनका उद्देश्य यह होता है कि समाज को तोड़ो, भाईचारा को बिगाड़ो। 

तुच्छ स्वार्थों के कारण ऐसे समाज कंटक लोग समाज की शांति व्यवस्था को तोड़कर अशांति फैलाना चाहते है और राजनैतिक लाभ लेते है किन्तु मानवीय एकता का प्रबल धागा कभी टूटता नहीं। हर प्रान्त का रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, लोक-नृत्य, त्यौहार और व्रत अलग-अलग है। सांस्कृतिक विभिन्नता होते हुए भी भारत महान् है। मातृभूमि की रक्षा के लिए शहीद होने वाले वीरों की गाथाएं यहां के लोगों के जुबां पर रहती है। यही भारत के लोकतन्त्र की मजबूती है। भारत प्रजातन्त्रात्मक देश है। प्रजातन्त्र की विशेषता है विभिन्नता में एकता। अन्य शासन प्रणालियों में इतना वैविध्य नहीं दिखाई पड़ता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)