वर्ष 2019 में 90 लाख लोगों की मौत का कारण बना वायु प्रदूषण, बीते चार सालों में स्थिति में मामूली सुधार
लखनऊ (यूपी) से
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वर्ष 2019 में प्रदूषण करीब 90 लाख लोगों की मौत के लिये जिम्मेदार था। यह दुनिया भर में होने वाली हर छठी मौत के बराबर है। वास्तव में इस संख्या में वर्ष 2015 में किये गये पिछले विश्लेषण से अब तक कोई बदलाव नहीं आया है।
यह नयी रिपोर्ट प्रदूषण और स्वास्थ्य पर गठित द लांसेट कमीशन [1] का अद्यतन रूप है। ‘द लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ’ नाम से प्रकाशित यह रिपोर्ट हमें बताती है कि अत्यधिक गरीबी से जुड़े प्रदूषण स्रोतों (जैसे कि घरेलू वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण) के कारण होने वाली मौतों की संख्या में भले ही गिरावट आयी हो, मगर इससे मिली राहत औद्योगिक प्रदूषण (जैसे कि वातावरणीय वायु प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण) से जोड़ी जा सकने वाली मौतों की तादाद में हुई बढ़ोत्तरी से ढक जाती है।
इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक रिचर्ड फुलर ने कहा “प्रदूषण के कारण सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव बहुत बडे हैं, और निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों को इसका सबसे ज्यादा बोझ उठाना पड़ रहा है। अपने गहरे स्वास्थ्य, सामाजिक तथा आर्थिक प्रभावों के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंडा से आमतौर पर अनदेखा कर दिया जाता है। प्रदूषण और सेहत पर पड़ने वाले उसके प्रभावों को लेकर लोगों की चिंता के पूरे दस्तावेजीकरण के बावजूद वर्ष 2015 से इस पर दिये जाने वाले ध्यान और वित्तपोषण में बेहद मामूली इजाफा हुआ है।” [2]
बोस्टन कॉलेज में ग्लोबल पब्लिक हेलथ प्रोग्राम और ग्लोबल पॉल्यूशन ऑब्जर्वेटरी के निदेशक प्रोफेसर फिलिप लैंडरीगन ने कहा “प्रदूषण अब भी इंसानों और धरती की सेहत के लिये अस्तित्व का सबसे बड़ा खतरा है और इसकी वजह से आधुनिक समाज की सततता पर बुरा असर पड़ता है। प्रदूषण को रोकने से जलवायु परिवर्तन की रफ्तार धीमी की जा सकती है। इससे पृथ्वी की सेहत को दोहरे फायदे हो सकते हैं, और हमारी रिपोर्ट इस बात का पुरजोर आह्वान करती है कि सभी तरह के जीवाश्म ईंधन को छोड़कर अक्षय ऊर्जा विकल्पों को अपनाने के काम को बहुत व्यापक पैमाने पर तेजी से किया जाए।” [2]
वर्ष 2017 में प्रदूषण एवं स्वास्थ्य को लेकर गठित लांसेट कमीशन ने वर्ष 2015 के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज (जीबीडी) अध्ययन के डेटा का इस्तेमाल करते हुए यह पाया था कि प्रदूषण तकरीबन 90 लाख मौतों के लिये जिम्मेदार है। यह संख्या दुनिया भर में होने वाली मौतों के 16 प्रतिशत के बराबर है। नयी रिपोर्ट हमें प्रदूषण के कारण सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ताजातरीन अनुमान उपलब्ध कराती है। यह वर्ष 2019 के नवीनतम उपलब्ध ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज (जीबीडी) डेटा और कार्यप्रणालीगत अपडेट्स के साथ-साथ वर्ष 2000 से अब तक के रुख के आकलन पर आधारित है।
वर्ष 2019 में प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया में हुई 90 लाख मौतों में से 66 लाख 70 हजार मौतें अकेले वायु प्रदूषण (घरेलू और वातावरणीय) के कारण ही हुई हैं। जल प्रदूषण की वजह से 13 लाख 60 हजार मौतें हुई हैं। सीसा (लेड) की वजह से नौ लाख लोगों की मौत हुई है। इसके अलावा पेशे सम्बन्धी विषैले सम्पर्क के कारण आठ लाख 70 हजार मौतें हुई हैं।
वर्ष 2000 के बाद से परंपरागत प्रदूषण (ठोस ईंधन के इस्तेमाल के कारण घर के अंदर उत्पन्न होने वाला वायु प्रदूषण और असुरक्षित पानी) के कारण होने वाली मौतों में गिरावट का सबसे ज्यादा रुख अफ्रीका में देखा गया है। इसे जलापूर्ति एवं साफ-सफाई, एंटीबायोटिक और ट्रीटमेंट तथा स्वच्छ ईंधन के क्षेत्र में सुधार के जरिए स्पष्ट किया जा सकता है।
हालांकि इस मृत्यु दर में आई कमी को पिछले 20 साल के दौरान सभी क्षेत्रों में औद्योगिक प्रदूषण जैसे कि वातावरणीय वायु प्रदूषण, लेड प्रदूषण तथा अन्य प्रकार के रासायनिक प्रदूषण के कारण हुई मौतों में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी ने ढक लिया है। खास तौर पर दक्षिण-पूर्वी एशिया में यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है, जहां औद्योगिक प्रदूषण का बढ़ता स्तर, बढ़ती उम्र के लोगों और इस प्रदूषण के संपर्क में आने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के साथ जुड़ गया है।
वातावरणीय वायु प्रदूषण की वजह से वर्ष 2019 में 45 लाख लोगों की मौत हुई है। यह वर्ष 2015 के मुकाबले 42 लाख और वर्ष 2000 के मुकाबले 29 लाख ज्यादा है। नुकसानदेह रासायनिक प्रदूषकों की वजह से वर्ष 2000 में जहां 90 हजार लोगों की मौत हुई थी। वहीं, वर्ष 2015 में इसकी वजह से 17 लाख लोगों और 2019 में 18 लाख लोगों की मृत्यु हुई है। वर्ष 2019 में लेड प्रदूषण की वजह से 90 लाख लोगों की मौत हुई थी। कुल मिलाकर आधुनिक प्रदूषणकारी तत्वों की वजह से पिछले दो दशकों के दौरान मौतों का आंकड़ा 66% बढ़ा है। अनुमान के मुताबिक वर्ष 2000 में जहां इसके कारण 38 लाख लोगों की मौत हुई थी वहीं, वर्ष 2019 में इसकी वजह से 63 लाख लोग मारे गए। माना जाता है कि रासायनिक प्रदूषणकारी तत्वों के कारण मरने वालों की संख्या इससे ज्यादा हो सकती है क्योंकि ऐसे बहुत कम रसायन हैं जिन्हें सुरक्षा या विषाक्तता के पैमाने पर पर्याप्त रूप से जांचा-परखा गया है।
प्रदूषण की वजह से होने वाली अतिरिक्त मौतों के कारण वर्ष 2019 में कुल 4.6 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ था। यह वैश्विक आर्थिक उत्पादन के 6.2% के बराबर है। इस अध्ययन में प्रदूषण की गहरी असमानता का जिक्र भी किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण से संबंधित 92% मौतें और प्रदूषण के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान का सबसे ज्यादा भार निम्न तथा मध्यम आमदनी वाले देशों पर पड़ रहा है।
इस नए अध्ययन के लेखक आठ सिफारिशों के साथ निष्कर्ष पर पहुंचे हैं, जो प्रदूषण तथा स्वास्थ्य पर गठित लांसेट कमीशन द्वारा की गई संस्तुतियों की आगे की कड़ी हैं। इन सिफारिशों में प्रदूषण को लेकर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ही तरह का विज्ञान/नीति पैनल के गठन के साथ-साथ सरकारों निजी पक्षों तथा परोपकारी दानदाताओं द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के लिए और अधिक वित्तपोषण करना तथा सुधरी हुई प्रदूषण निगरानी और डाटा संग्रहण के आह्वान शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भी प्रदूषण के लिए विज्ञान और नीति के बीच बेहतर संपर्क को अनुमोदित और स्थापित करने की जरूरत है।
ग्लोबल एलायंस ऑन हेल्थ एंड पोल्यूशन की सह लेखक और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रेचल कुपका ने कहा "प्रदूषण जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का क्षरण एक-दूसरे से बहुत नजदीकी से जुड़े हैं। एक दूसरे से संबंधित इन खतरों को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए एक वैश्विक स्तर पर समर्थित औपचारिक विज्ञान नीति इंटरफ़ेस की जरूरत है ताकि उपाय को सूचित किया जा सके, शोध को प्रभावित किया जा सके और वित्तपोषण को रास्ता दिखाया जा सके। हालांकि यह स्पष्ट है कि प्रदूषण पूरी धरती के लिए खतरा है और इसके विविध और व्यापक स्वास्थ्य प्रभाव सभी स्थानीय सीमाओं को तोड़ चुके हैं और उन पर वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रिया दी जानी चाहिए। सभी प्रमुख आधुनिक प्रदूषणकारी तत्वों पर वैश्विक स्तर पर कार्रवाई करना जरूरी है।" (लेखक अक अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)