श्रीलंका से तमिल भाषियों का पलायन

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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वित्तीय संकट से जूझ रहे श्रीलंका का आर्थिंक संकट एक महीने से पहले से अधिक गहरना शुरू कर दिया था। महगाई और बेरोजगारी के चलते लोग सडकों पर उतर आये थे। श्रीलंका का तटीय जाफना यहाँ का तमिलभाषी बहुल इलाका है। यहाँ के लोगों को यह यह शिकायत रही है कि श्रीलंका की तक़रीबन सभी सरकारों ने इस इलाके के विकास के लिए कुछ खास नहीं किया। इसलिए यहाँ अलगाव वाद का आन्दोलन पनपा और यहाँ लम्बे काल तक हिंसा का दौर चला। वहां की सरकारों का आरोप था कि भारत इन अलगाव वादी लोगों को समर्थन देती रही है।

बरसों पूर्व जब यहाँ तमिल ईलम (तमिल देश) का आन्दोलन चरम पर था तथा श्रीलंका की सरकार के सरकार ने इन तत्वों को कुचलने में कोई कमी  कमी नहीं रखी। उस समय श्री लंका के इस जाफना प्रान्त से लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत पहुंच गए थे। भारत सरकार ने उनकी सहायता के लिए शरणार्थी शिविर खोले। भारत के तटवर्ती शहर रामेशवरम के निकट धनुषकोटी तट जाफना के तट से मात्र 28 किलोमीटर दूर। बीच में समुद्र उथला हुआ है तथा इस दूरी को छोटी नावों से आसानी से नापा जा सकता है।

जाफना प्रान्त के अधिकांश तमिल भाषी लोगों के या तो संबंधी या फिर निकट मित्र तमिलनाडु में रहते है। उनकी आपस में शादियाँ आदि भी होती रहती है। आज भी जाफना प्रान्त श्री लंका का एक पिछड़ा प्रान्त है। रोजगार के अवसर बहुत कम हैं। बरसों पूर्व यहाँ विभिन्न तमिल संगठनों और तमिल राजनीतिक दलों तथा वहा की केंद्रीय सरकार में एक समझौता हुआ था। वहां की केंद्रीय सरकार ने संविधान में एक 13 संशोधन ला कर यहाँ के लिए विशेष व्यवस्थाएं करनी थी लेकिन इस दिशा में वहां की किसी भी सरकार ने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाये। श्री लंका के सरकार ऐसा संशोधन भारत के साथ हुए एक समझौते के अनुसार करना था। इसलिए जब इस इलाके में कुछ होता है तो यहाँ के तमिल भाषी भारत की ओर देखते है।

जब श्री लंका का आर्थिक संकट गहराने लगा उसका सीधा असर यहाँ के तमिल भाषियों पर पड़ा। यहाँ पहले से  रोजगार के अवसर कम थे महंगाई इतनी हो गयी थी यहाँ का मुख्य भोजन चावल की कीमत 300 रूपये किलो तक पहुच गई। चीनी के दाम 500 रूपये किलो से भी ऊपर निकलने लगे। ऐसी स्थिति  में  इस इलाके के लोगों ने भारत की और मुहँ करना शुरू किया। मार्च महीने के आरंभ में कोस्ट गार्ड ने अवैध  रूप से एक बोट के जरिये धनुषकोटी की ओर आने वाले तमिल शरणार्थियों को पकड़ा। इसमें दो परिवारों के 6 सदस्य थे जिन्होंने एक बड़ी धन राशि देकर यह बोट किराये पर ली थी।इसके बाद से जाफना से तमिल शरणार्थियों का आना लगातार जारी है। वहां से आने वाले तमिल शरणार्थी जो कहानियां सुना सुनते हैं उसके अनुसार वहां लोगों के एक वर्ग में भूख  से मरने की नौबत आ गयी है। खाने पीने की चीज़ों के दाम उनकी पहुंच से बाहर है। अवैध रूप से आने वाले इन शरणार्थियों को रामेश्वरम के पास मंडप शिविर में रखा गया है जहाँ उनके रहने के अलावा खाने पीने का इंतजाम किया है। सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि श्रीलंका के हालात को देखते हुए जाफना प्रान्त से आने वाले शरणार्थियों की संख्या में लगातार इजाफा हो सकता है।  

श्रीलंका लगभग दिवालिया होने की स्थिति में पहुँच चुका है। उस पर 3 लाख करोड़ डॉलर का विदेशी क़र्ज़ है इसमें से सबसे अधिक क़र्ज़ चीन का है। वहां की वर्तमान सरकार एक एक ही परिवार की है। देश के प्रधान मंत्री महेन्दा राजपक्षे है जबकि उनका छोटा भाई गोताबाया राजपक्षे देश का राष्ट्रपति हैं। तीसरा भाई बसील राजपक्षे हाल तक देश का वित्तमंत्री था। परिवार का एक बेटा भी हाल तक मंत्री था।

यहाँ की बर्तमान सरकार चीन की ओर झुकी हुई है लेकिन जब संकट आता हैं तो भारत की ओर मुहं करने में जरा भी नहीं हिचकिताची। जब देश में पेट्रोल और डीज़ल का संकट गहराया तो भारत सरकार से गुहार की और भारत सरकार ने मानवीय आधार पर पचास हज़ार लीटर तेल तुरंत उपलब्ध करवाया। इससे पहले आर्थिक संकंट पर काबू पाने के 50 लाख डॉलर की क्रेडिट लाइन सुविधा दी। वहां पनप रहे रोष का अंदाज़ इससे लगाया जा सकता है कि वहां 26 मंत्रियों  ने सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया दिया है। राजपक्षे परिवार चाहता है संकट पर काबू पाने के लिए सर्वदलीय सरकार बने लेकिन विपक्ष ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)