पेंथर का जीवन ख़तरे में, बचाना जरूरी

राम भरोस मीणा की रिपोर्ट

(निदेशक, एल पी एस विकास संस्थान)

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वन्य जीव अभ्यारणों  में सभी जीवो को संरक्षण के साथ सरकार, समाज द्वारा सुरक्षा देना कर्तव्य, दायित्व बनता है,  टाइगर, घड़ियाल हिरण,  सारस,  के साथ  सभी वन्य जीव पक्षियों के लिए संरक्षण को लेकर 1956 से  राष्ट्रीय अभ्यारणो  की स्थापना की जाती रही। वर्तमान में राजस्थान में  सरिस्का (अलवर), रणथंभौर(भरतपुर), मुकूंदरा हिल्स अभ्यारण(बुंदी),केवला देव राष्ट्रीय अभ्यारण (भरतपुर) के साथ ही 26 वन्य जीव रिजर्व क्षेत्र मौजूद है। 1956 में अभयारण्य घोषित हुये सरिस्का बाघों की दहाड़ से जाना जाने लगा,  1978-79 में यहां टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। उस समय तक यहां 70 से अधिक बाघ मोजुद रहें जो  2005 में बाघ विहीन हो गया। सरिस्का की खराब होती छवियों को पेंथर ने सम्हाला, पेंथर का कुनबा बढ़ता चला, उनकी संख्या सो से अधिक बताई जाती रही। सरिस्का को बचाने के लिए भारत सरकार व राज्य सरकार ने संयुक्त रुप से प्रयास व सहयोग किया तथा 2008 में रणथंभौर से बाघ लाकर पुनः सरिस्का में बाघों का पुनर्वास किया गया, इस समय यहां पेंथरों की संख्या 150 से अधिक बताई गई।

बाघ, हिरण, सारस, के साथ ही सभी वन्य जीवों को संरक्षण देने के लिए सरकार पुरा प्रयास कर रहीं हैं, वन्यजीव अभयारण्यों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ वन क्षेत्र को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा। लेकिन सरिस्का के पेंथर उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं। पेंथरो की संख्या को लेकर एल पी एस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी ने कहा कि  सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरण व वन्य जीव प्रेमी चिंतित पेंथर की होती मोतों के देखकर चिंतित हैं । पिछले पांच महिनों में सात पेंथरो की मौत चिंता का विषय होने के साथ ही सुरक्षा पर सवाल उठाता। सरिस्का में बाघों के बढ़ते कुन्मबे के बीच पेंथर का रुकना मुश्किल है, उसे बाघ से दुर सुरक्षित वन क्षेत्र की आवश्यकता है। 

सरिस्का से बहार वन क्षेत्र की कमी नहीं लेकिन मानवीय दखलन, सरकारी उपेक्षा, विभागीय लापरवाही, अवैध खनन के चलते पेंथर के लिए उपयुक्त जगह नहीं बच पा रही, जिससे पेंथर के साथ साथ अन्य वन्य जीव ख़तरे में है, इन्हें बचाने के लिए उजड़े हुए वनों को पुनः संरक्षण दे कर समय रहते विकसित किया जाए जिससे पेंथर के लिए सुरक्षित जगह बनें , पेंथरों के लिए थानागाजी, विराटनगर, जमवारामगढ़ तहसील क्षेत्रों को वन क्षेत्र में रिजर्व कर पेंथर प्रोजेक्ट के तहत अभ्यारण तैयार कर पेंथर को बचाया जा सकता है, अन्यथा अलवर की इस तपोभूमि से पेंथर के गायब होने से कोई नहीं रोक सकेगा और पुनः अलवर (सरिस्का) श्रम महसूस करेगा।