लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकडोें के मुताबिक फरवरी में रिटेल में मंहगाई बढकर 6.07 प्रतिशत हो गई जो पिछली फरवरी में 5.03 प्रतिशत थी। थोक मंहगाई बढ़कर 13.11 प्रतिशत हो गई जो फरवरी, 2021 में सिर्फ 4.83 प्रतिशत थी। एन.एस.ओ के मुताबिक खाने-पीने के सामान की मंहगाई 5.89 प्रतिशत हो गई। मंहगाई रिजर्व बैंक के लिए सहूलियत वाली 4 प्रतिशत की स्थिति से ऊपर है। उसे 6 प्रतिशत तक की पंहुचने की गुंजाइश छोडी गई है लेकिन मंहगाई इससे भी ऊपर निकल गई। चीफ इकानामिस्टमदन सबीन के अनुसार आगे भी मंहगाई 6 प्रतिशत अथवा उससे ऊपर ही रहेगी। सरकारी आंकडो के अनुसार खाने-पीने व कारखानों में तैयार वस्तुओं के दाम सबसे ज्यादा बढे़। सितम्बर, 2021 में 4.35 प्रतिशत थे, तो जनवरी, फरवरी, 2022 में 6 प्रतिशत से ऊपर रहे।
पांच राज्यों के चुनावों के बाद भारत में अब पेट्रोल-डीजल कीमतों में बढ़ोतरी निश्चित होगी। गत दिसम्बर तिमाही में विकास दरअनुमान से अत्यधिक नीचे व सुस्त रही। भारत सरकार के अनुसार 8.9 प्रतिशत के अनुमान के विरूद्व 5.4 प्रतिशत रही। कृषि क्षेत्र के विकास में बडी गिरावट, मैन्युफेचरिंग आउटपुट में कमी व निवेश में कमी रही। कृषि क्षेत्र की ग्रोथरेट 4.1 प्रतिशत से गिराकर 2.6 प्रतिशत पर आ गई। पिछले वर्ष 4.1 प्रतिशत थी। इसके और अधिक धीमें होने की आंशका बनी हुई है।
जनवरी में कोर सेक्टर का ग्रोथरेट गिराकर 3.7 प्रतिशत रह गया। कन्सट्रक्शन सेक्टर की ग्रोथरेट 2.8 प्रतिशत रही। कोर सेक्टर का हाल बुरा है। बिजली 0.5 प्रतिशत, फर्रीलारजारन्ट 2 प्रतिशत, स्ट्रील 2.8 प्रतिशत, फूडऑयल2.4 प्रतिशत ग्रोथरेट रही। जनवरी में देश का राजकोषीय घाटा भी गिरकर 1.8 लाख करोड़ हो गया जो एक साल पहले 75,500 करोड था।
धातु व कमोडिटीज की कीमते आसमान पर रही। डालर के मुकाबले रूपया 1.6 प्रतिशत नरम रहा। बढ़ती मंहगाई व आर्थिक अनिश्चितता का दौर जारी है। स्टील, तांबा, एल्यूमीनियम, गेहू, सोयाबीन, टीन, जिंक, फ्रूडपाम ऑयल, निकेल, प्राकृतिक गैस जैसी कमोडिटीज के दाम बढे है। रूपया और कमजोर होगा मंहगाई बढे़गी। थोक व खुदरा मंहगाई माह के उच्चतम स्तर पर, सीएनजी, कामर्सियल एलपीजी, आटा, बिस्कुट, खाघ-तेल, दूध, चाय-कॉफी, मैगी मंहगी, उर्वरक की किल्लत, पीएफ पर घटे ब्याज। खुदरा मंहगाई दहाई तक पंहुच सकती है। होली से पहले ही 5 बडे झटके लग चुके थे।
दूसरी और एम.एस.एमई सेक्टर की हर तीन में से दो ईकाइयां बंद हो रही है। 12 करोड़ रोजगार देने वाले सेक्टर की स्थिति खराब है। मनरेगा में पिछलें साल 11.6 करोड़ लोगो ने काम मांगा, दो करोड को नही मिला। बजट में केन्द्र सरकार ने 25 प्रतिशत की कटौती कर दी। किसानों से अनाज खरीद की राशि कम की गई है। खाघ सब्सिडी घटा दी गई है। खाघ की कीमते आसमान छू रही है। शहरों मंें काम नही ंमिलने से मजदूर गांव लौट रहे है। एमएसपी पर खरीद के बजट में कमी की गई है। गरीब महिलाओं की जनघन योजना खत्म कर दी गई है। सोसियल सेक्टर कृषि, ग्रामीण अंतसरचना को छोडकर केवल केपिटल निवेश पर ध्यान दिया जा रहा है।
भारत में धनकुबेरो की संख्या 11 प्रतिशत बढ़ी है। अरबपतियों के मामलों में भारत, अमेरिका, चीन के बाद तीसरे पायदान पर पंहुच गया है। 29 फीसदी भारतीय अमीरों ने जमकर रीयल एस्टेट में निवेश किया है। 30 मिलियन डालर यानि 225 करोड रूपये से अधिक सम्पति वाले लोग एच.एन.आई श्रेणी में होंगे। एच.एन.आई की संख्या 2026 तक 19,000 के पार होगी। देश में 145 अरबपति हो चुके है। 17 प्रतिशत की तेजी से बढ रहे है। उनका टैक्स कम हुआ है। सम्पति कर नही लगाया गया है। अर्थव्यवस्था का खतरनाक विभाजन हो रहा है। बुनियादी ढांचा कमजोर तथा अधिक संसाधनों का लाभ केवल अमीरों को। 6 माह में रिकार्ड स्तर पर बेरोजगारी बढी है, शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का अधिक संकट है। 8.1 प्रतिशत पर पंहुची बेरोजगारी की दर अब 8.35 फीसदी पर पंहुच गई ग्रामीण बेरोजगारी दर। शहरी दर 7.55 प्रतिशत है। सी.एम.आई की रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी दर अनेक राज्यों में बहुत ऊची है। हरियाणा 31 प्रतिशत, झारखंड 15 प्रतिशत, बिहार 14 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर 13.2 प्रतिशत है। राजस्थान में भी अत्यधिक बेरोजगारी बढी है। प्रवासी लौटे है, लघु उघोग, होटल पर्यटन उघोग प्रायः बन्द है। भारत सरकार मौन है। जुलाई, 2021 में बेरोजगारी 6.96 थी जो अब फरवरी, 2022 में ग्रामीण में 8.9 प्रतिशत है।
बेरोजगारी पर लगाम लगाने के लिए विकास की दिशा ऊपर से नीचे नहीं, नीचे से ऊपर होना आवश्यक भारत सरकार विकेन्द्रीयकरण की बजाय केन्द्रीयकरण की और बढ रही है। लोक लुभावनआयामों की जगह युवाओं को नौकरिया देने के प्रयास की और काम करना होगा। हमारी योजनाए रोजगार मुखी हो। भारत में 30 प्रतिशत से अधिक कृपोषण है, जो धाना व केन्या से भी अधिक है। भारत सजीव लोकतंत्र, समावेशी विकास की और नही बढ रहा। मूलभूत सुविधाओं और आवश्यकताओं की तरफ से ध्यान नहीं है।उत्पादन बढाने वाली योजनाओं के स्थान पर सरकारी धन, उन उत्पादक काम मूर्तियों, मंदिरों, बिल्डिगों आदि पर व्यय हो रहा है। विघुत उत्पादन, सिंचाई के साधन, शिक्षा स्वास्थय, रोजगार पर आवश्यक महत्व नहीं है। लोकतंत्र राजतंत्र बन रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)