केरल में मुस्लिम लीग की दुविधा...!

लेखक :  लोकपाल सेठी

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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दक्षिण भारत के राज्य केरल में  इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग एक छोटा राजनैतिक दल है पर कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बाद चौथा बड़ा दल है। राज्य के मुस्लिम बहुल इलाके, विशेषकर मल्लपुरम में इसकी अच्छी खासी पकड़ है। केंद्र में यह दल बरसों से कांग्रेस के साथ रहा है। राज्य में कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतान्त्रिक मोर्चा का अंग रह सत्ता में भी रहा है। केंद्र में बीजेपी नीत एनडीए के लगातार दूसरी बार सत्ता में आने और राज्य में वाममोर्चे की  सरकार लगातार दूसरी बार बनने के बाद इसके नेता दुविधा में है कि क्या मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ रहे अथवा अन्य कोई विकल्प तलाश करे। 

पिछले साल के शुरू में राज्य विधान सभा के चुनावों से कुछ पहले, मुस्लिम लीग के एक बड़े नेता के टी जलील ने पार्टी से विद्रोह करके निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। वे चुनाव जीते। उनकी जीत का एक बड़ा कारण यह था कि उन्हें वाम मोर्चे का परोक्ष रूप से समर्थन था। अपने चुनाव में जलील ने कस कर मुस्लिम लीग और कांग्रेस पर हमले किये थे इन चुनावों में वाम मोर्चे को 140 वाले सदन  में 99 सीटें मिली थी। कांग्रेस वाला लोकतान्त्रिक मोर्चा कुल 41 सीटें जीत पाया इसमें भी मुस्लिम लीग की 15 सीटें थी। जब की इससे पहले लीग कही अधिक सीटें जीतता रहा है। लीग के एक वर्ग में यह धारणा घर कर गई है कि देश और राज्य में अब कांग्रेस का भविष्य नहीं है इसलिए पार्टी को अपने नए पार्टनर ढूढने चाहिए। राज्य में कांग्रेस वाला संयुक्त  लोकतान्त्रिक मोर्चा तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाला वाम लोकतान्त्रिक मोर्चा, दो ही बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंदी हैं इसलिए मुस्लिम लीग के  तथा कथित असंतुष्ट वर्ग के पास सीमित विकल्प है। 

कुछ समय पूर्व जलील ने लीग के नियंत्रण वाले सहकारी बैंक में एक हज़ार करोड़ रूपये के घोटले का आरोप लगाया था। बताया जाता है इस घोटले के आरोप को लेकर वाम मोर्चे के कुछ नेताओं ने जलील की आलोचना की और कहा कि उन्हें इस तरह के आधारहीन आरोप नहीं लगाये चाहिए थे, इसके बाद जलील, जो लगातार लीग के नेताओं पर हमले कर रहे थे, ने इस मामले पर चुप्पी साध ली। बताया जाता है कि कुछ विधायकों सहित पार्टी के कई वरिष्ठ ने वाम मोर्चे के संपर्क में है। इस बात की कोशिश चल रही है कि मुस्लिम लीग अब कांग्रेस का साथ छोड़ वाम मोर्चे के साथ हो जाये। इस बहाने वाम मोर्चा  मुस्लिम वोटों को अपने तरफ खींचने में सफल होगा। जानकारी के अनुसार मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय महासचिव  पी.के. कुल्हानीकुट्टी  भी  वाम मोर्चे के नेताओं के संपर्क में बने हुए है। मुस्लिम लीग पर थंगल परिवार का दशको से  वर्चस्व है। 

हाल ही में इसके अध्यक्ष सैयद हैदर अली थंगल का निधन हो गया वे 2009 में अपने बड़े भाई के इंतकाल के बाद उनके स्थान पर लीग के अध्यक्ष बने थे। हैदर अली साहिब के इंतकाल बाद इसी परिवार के तीसरे भाई सादिक अली थंगल को अपने दिवंगत भाई के स्थान पर सर्व सम्मति से लीग के नए अध्यक्ष के लिए चुन लिया गया। राज्य में समस्त केरल जमात-ए-उलमा सबसे प्रभावी संगठन है। लीग की तरह थंगल परिवार का इस संगठन पर भी लम्बे कॉल से वर्चस्व है। यह परिवार हर हालत में लीग को कांग्रेस के साथ रखना चाहता है। इसीको लेकर  लगभग दो दशक पूर्व लीग में विभाजन हो चुका है। तब एक वर्ग ने इंडियन नेशनल लीग नाम का नया दल बन लिया था। अलग हुए संगठन के नेता वाममोर्चे के नज़दीक माने जाते है। 

केरल की राजनीति पर नज़र रखने वालों को कहना है कि राज्य में कई नए मुस्लिम संगठन बन जाने से राज्य की राजनीति में मुस्लिम लीग का प्रभाव कम होता जा रहा है। सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया और वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया जैसे मुस्लिम संगठन अपने पैर फ़ैलाने में लगे हैं। इसमें एसडीपीई   ऐसा दल है जो कट्टर मुस्लिम वाद का हामी है। युवा मुस्लिम इस संगठन की ओर तेज़ी से आकर्षित हो रहे है। विश्लेषक मानते है कि राज्य के मुस्लिम समुदाय पर मुस्लिम लीग के एक छत्र राज की दिन अब समाप्ति की और बढ़ रहे हैं। मुसलमानों की नई पीढी अब केवल कांग्रेस के साथ ही नहीं जुड़े रहना चाहती इसलिए अगले कुछ समय में राज्य की मुस्लिम कोई नई करवट ले सकते हैं।  (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)