देश में प्रभावी जल संरक्षण जरूरी : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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जनगणना 2011 के मुताबिक भारत की शहरी आबादी 3870 लाख हो गई है। दर्शाई गई जनगणना के आधार पर प्रति व्यक्ति जल उपलब्धि 1545 घन मीटर प्रति वर्ष है। भारत प्रति व्यक्ति जल उपलब्धि वाले 182 देशों में 133वें स्थान पर है जिसे देखते हुए भारत समस्त जल उपलब्धि की समस्या वाला देश है। जबकि भारत दुनियां में सर्वाधिक वर्षा वाले देशों में गिना जाता है। भारत में लगभग 40 खरब क्यूबिक मीटर वर्षा जल होता है। वर्षा काल औसत होने के बावजूद अनेक राज्यों में पानी की स्थाई कमी बनी हुई है। लाखों हेक्टर क्षेत्र अकालग्रस्त बना हुआ है।

भारतीय केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश में 445 नदियों में से आधी नदियों का पानी पीने योग्य नहीं है। नदियां पीने के पानी की सबसे बडी स्रोत है, परन्तु कारखानों से निकलने वाला रसायन व प्रदूषित पानी उनको प्रदूषित कर रहा है। तीन दशक पूर्व तक जिन कुओं में मात्र 8-10 फीट की गहराई परपानी उपलब्ध हुआ करता था, आज वे कुएं सूख चुके है। झीलें व तालाब सूख गये है।

सन 1951 में पानी की उपलब्धि 2308 घन मीटर थी, आज 1707 घन मीटर रह गई है और आगे भी आबादी बढ़ने से स्थिति कम होती जायेगी। जल भण्डारण क्षमता भी गिर कर 1123 बिलीयन घन मीटर रह गई है। भारत में भूजल दोहन का अनुपात अन्य देशों के मुकाबले तीन गुणा है जबकि जल पुर्नभरण मात्र 0.5 फीसदी। भारत में भूजल का स्तर गिरता जा रहा है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों और बढ़ती आबादी के कारण अशांति की स्थिति बन गई है। जन संसाधन प्रबंधन विकास का एक प्रमुख अंक है। देश में ताजा पानी के संग्रहण की सुचारू व्यवस्था बनाना आवश्यक है तथा पानी की खपत घटानी होगी। भारत में सिर्फ 30 फीसदी भूजल स्तर बचा है जो अगले 20 साल की अवधि में खत्म हो जायेगा। देश में पानी की खपत 44.2 अरब घन मीटर है। उद्योगों के लिये तथा पीने के पानी के लिए 280 अरब घन मीटर पानी की जरूरत होगी। वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए नये बांध, तालाब आदि बनाने होंगे वहीं सर्वाधिक भूजल निकासी को रोकना आवश्यक है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेन्सी युनिसेफ के अनुसार भारत में जल प्रबंधन की स्थिति विस्फोटक है। बढ़ती जनसंख्या से पानी की मांग बढ़ी है जिसे अपशिष्ट जल के प्रशोधन से ही पूरा किया जा सकता है। वर्तमान में 80 फीसदी अपशिष्ट जल इको सिस्टम में लौट जाता है। भारत में सीमित प्राकृतिक संसाधनों के कारण अपशिष्ट जल को प्रशोधन कर पुनः प्रयोग जल ऊर्जा, उद्योग आदि मददगार साबित हो सकता है।

भारत में हर साल एक लाख से भी ज्यादा लोगों की जल प्रजनित बीमारियों के कारण मौतें होती है। कुल रोगियों में से भारत में 70 फीसदी हेजा, पीलीया, दस्त, टाइडफाईड, पोलियो, मियादी बुखार जैसी जल प्रजतिन बीमारियों से पीड़ित होते है। जल प्रजनित बीमारियों में सबसे अधिक दस्त है जिससे सबसे अधिक बच्चों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष इस रोग से 98000 बच्चे मृत्यु को प्राप्त होते है। जल स्रोतों के इस्तेमाल के साथ उनमें कचरा, अपशिष्ट, कारखानों का कचरा चला जाता हैं। स्वच्छता के अभाव में हर साल बड़ी संख्या में जल जनित बीमारियों के कारण मृत्यु होती है। शहरों में अवैध इमारतों व झुग्गियों में गंदा पानी के स्रोत मिलते है। अपशिष्ट जल प्रशोधन का उपयोग बड़े शहरों में सिंचाई, धुलाई, शौचालय आदि में किया जा सकता है और पीने के पानी की बचत की जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार 10 में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी भी नहीं मिलता।

इजराइल में औसतन मात्र 10 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इजराइल इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह अनाज निर्यातक देश है। दूसरी ओर भारत में 15 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी हुई है। पृथ्वी पर एक अरब लीटर मिलीयन पानी है जिसमें 95.7 प्रतिशत समुद्र में है जो खारा है, 1.5 प्रतिशत पानी वर्फ के रूप में ध्रुवीय प्रदेशों में है। एक प्रतिशत पानी नदियों, सरोवर, झील, तालाब, कुएं आदि में है जो पीने योग्य है। एक प्रतिशत पानी का 60 फीसदी हिस्सा खेती और उद्योगों में खपत होता है, बाकी 40 फीसदी हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, साफ सफाई आदि पर खर्च करते है। पृथ्वी पर पैदा होने वाली वनस्पतियों में पानी मिलता है। पीने के लिए मानव को 3 लीटर प्रतिदिन और पशुओं को 50 लीटर पानी चाहिए। आलू, अनानास आदि में 80 फीसदी और टमाटर में 50 फीसदी पानी होता है। एक लीटर गाय का दूर प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च होता है और एक किलो गेहूं उगाने के लिए 1000 लीटर पानी, एक किलो चावल के लिए 4000 लीटर पानी चाहिए। भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई में ही उपयोग किया जाता है।

देश में अपशिष्ट जल संशोधन प्लांट बहुत कम है जिससे जल प्रदूषण और जल प्रसारित बीमारियां होती है। ताजा पानी के स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए और पानी की मांग को पूरा करने के लिए अपशिष्ट जल प्रशोधन की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। पेयजल बचाने के लिए जीवनशैली में भी बदलाव की आवश्यकता है। बाथ टव में नहाने से 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है वहीं सामान्य रूप से नहाने पर 100 से 150 लीटर पानी खर्च होता है। ब्रश करते समय नल खुला रखने पर 5 मिनट में 20 से 30 लीटर पीने का पानी बर्बाद होता है। वाहन धोने, पाईप लाईन लीकेज होने पर भी लाखों लीटर पेयजल बर्बाद होता है।

राजस्थान में कई स्थानों पर पेयजल को बेचा जाता है। 5 से 10 रूपये प्रति बाल्टी के हिसाब से जल बेचा जाता है। लडाई-झगडे होने की खबरें मिलती है। अनेक गांवों में लोगों को पीने के पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। जन पुर्नभरण को सख्ती से लागू करने के लिए बाकायदा कानून बनाकर लागू किया जाय तो गिरता भूजल स्तर ठीक हो सकता है। राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ फैसला लेकर पुख्ता व्यवस्था करने की आवश्यकता है। पानी के पुर्नभरण एवं फिजुलखर्ची रोकने को लेकर जन चेतना जाग्रत करने का प्रयास गांवों में भी किये जाने की आवश्यकता है। देश में ताजे पानी पर निर्भरता घटानी होगी। सरकार व जनता दोनों को ही इस पर गंभीरता से विचार कर उपाये ढूंढने होंगे तभी हम पेयजल समस्या से निपट सकेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे वृक्षों की पहचान करनी होगी जिनेस धरती के नीचे का पानी प्रभावित होता है। नये निर्मित होने वाले मकानों में वर्षा जल के उचित भण्डारण की आवश्यकता है। इस प्रकर जल का बहुत बड़ा भण्डार नष्ट होने से बच जायेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)