लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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राज्य के एकीकरण के पश्चात हीरालाल शास्त्री, जयनारायण व्यास, टीकाराम पालीवाल, पुनः जयनाराण व्यास मुख्यमंत्री बने। 1952 में 22 निर्दलीय व अन्य दलों के विधायकों को कांग्रेस दल में सम्मिलित करने पर 06.11.1954 को व्यास मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री मोहन लाल सुखाड़िया राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, उन्हें देश के सबसे कम आयु के मुख्यमंत्री होने का श्रेय प्राप्त है।
उस समय राजस्थान के राजनैतिक क्षितिज पर 5 बडे़ कांग्रेसी नेता मणिक्यलाल वर्मा, जयनारायण व्यास, हीरालाल शास्त्री, हरिभाऊ उपाध्याय व गोकुल भाई भट्ट की तूती बोलती थी। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में कद्दावर वरिष्ठ कांग्रेस नेता मतस्य प्रदेश के पूर्व में मुख्यमंत्री रहे, शोभाराम, भरतपुर के मास्टर आदित्येन्द्र, राजबहादूर बांसवाडा हरिदेव जोशी, मांगीलाल पाण्डया, जोधपुर मथुरादास माथुर, नाथूराम मिर्धा, नृसिंह कछवाहा, बीकानेर कुम्भाराम आर्य, शेखावाटी सरदार हरलाल सिंह, जयपुर दामोदर लाल व्यास, रामकिशोर व्यास, कोटा गोकुल लाल असावा, बूंदी ब्रज सुन्दर शर्मा, बालकृष्ण कौल, हरिभाऊ उपाध्याय, आदि नेता थे जिनकी प्रान्तीय राजनीति में मजबूत पकड़ थी। ये लोग मजबूत क्षेत्रीय नेता थे, इन सबके बीच संतुलन कायम कर सफलतापूर्वक शासन चलाने व कार्य करने के लिए राजनैतिक चातुर्य की आवश्यकता थी। चुनाव व्यवस्थाये सफलता प्राप्त करने के लिए राजनैतिक चातुर्य की आवश्यकता थी।
प्रदेश में राम राज्य परिषद, भारतीय जन संध, हिन्दु महासभा, कृषिकार लोक पार्टी, विरोधियों व निर्दलियों का मजबूत विपक्ष था। राजस्थान की जनता पर सामन्ती शासन व जागीरदारों की छाप थी, प्रभावशाली असर था।
पूरे राज्य में सिंचित भूमि मात्र 12 प्रतिशत व कुल 13 मेगावाट बिजली उपलब्ध थी। राज्य में बिजली, पेयजल, सिंचाई, कृषि की दयनीय हालात थी। साक्षरता की दर 8 प्रतिशत , महिला साक्षरता 2 प्रतिशत। शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग में पूर्णतया पिछड़ापन। पूरे राज्य में सड़को का अभाव, मात्र पांच हजार स्कूल व 24 काॅलेज, वित्तीय संसाधनों का अभाव, प्रथम पंचवर्षीय योजना मात्र 54 करोड़ की। पहले बजट राजस्व व्यय मात्र 1391 82 लाख। ग्रामीण इलाकों में सर्वत्र अकाल व अभाव, मवेशियों का पलायन, चाने पानी का अभाव, सर्वत्र पिछड़ेपन की समस्यायें थी।
केन्द्रीय सरकार ने राजस्थान नहर निर्माण को राष्ट्रीय स्तर की परियोजना को स्वीकार नहीं किया। सुखाड़िया ने वित्तीय संसाधनों की कमी के बावजूद प्रदेश की खुशहाली के लिए रास्थान नहर परियोजना के निर्माण में पूरी ताकत झौक दी। सिंचाई का बड़ा साधन उपलब्ध हुआ और आयात का अनाज व विदेशी गेंहू खाने वाला प्रदेश अन्न उत्पादक ही हीं अन्न निर्यातक राज्य बन गया। खनिज सम्पदा विकास, विद्युत विकास, औद्योगिक विकास, सड़क निर्माण, लघु, मध्यम, वृहद सिंचाई योजनाओं, वन विकास, सिंचित क्षेत्र विकास हेतु वृहद प्रयास, प्रोन्नति एवं शोध कार्य, शिक्षा, तकनीकी शिक्षा व उच्च शिक्षा प्रसार, प्रशासनिक सुधार व नवाचार, के क्षेत्र में सराहनीय विकास कार्य हुए, दूर दराज के क्षेत्रों में डाकूओं की समस्या हल हुई व शांति व्यवस्था कायम हुई।
सुखाड़िया के काल में कृषि को पूर्ण स्वामित्व मिला। जागीरदारों की स्वेच्छाचारिता तथा शोषण समाप्त हुआ। भूमिहिनों को कृषि भूमि पर खातेदारी अधिकार मिले। राजस्थान नहर के अन्तर्गत आने वाली भूमि का भूमिहिनों व दलितों को अलोटमेंट किया गया, नीलामी नहीं की गई।
2 अक्टूबर 1959 को सम्पूर्ण देश में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीयकरण के आधार पर पंचायती राज की स्थापना का श्रेय सुखाड़िया को है। ग्राम पंचायतों से लेकर जिला स्तर की ग्रामीण विकास योजनाएं स्थानीय स्तर पर बनने लगी। पंचायत राज के साथ सहकारिता आन्दोलन, समुदाय विकास को बल मिला।
राजस्थान में राज्य का विद्युत उत्पादन भांखड़ा नांगल आदि स़़़्त्रोतों से विद्युत आपूर्ति का प्रबन्ध हुआ। औद्योगिक विकास प्रारम्भ हुआ। आधारभूत सुविधाओं का प्रबन्ध किया जिसमें अनेक उद्योग समूहों ने बड़े उद्योग स्थापित किये। जिंक, स्मेलटर सीमेन्ट व उर्वरक के संयत्र स्थापित हुए, नये औद्योगिक क्षेत्र स्थापित हुए।
शिक्षा, कला, संस्कृति, खेलकूद, स्वास्थ्य, सड़क आवास निर्माण में स्पष्ट योजनाओं के अन्तर्गत विशिष्ट संगठन बनाकर, वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से उल्लेखनीय कार्य हुआ। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। नगरीकरण हेतु भी सुखाड़िया के शासनकाल में उल्लेखनीय कार्य हुआ। कोटा औद्योगिक नगरी, भीलवाड़ा टैक्सटाइल नगरी बना। अजमेर में एमएमटीसी, बनास जल योजना, मेडीकल काॅलेज, स्टेडियम व रोडवेज कारखाना बना। उदयपुर व जयपुर पर्यटन हब व शिक्षा के प्रमुख केन्द्र बनें।
सुखाड़िया ने अपने व्यवहार, मिलनसारिता, संवेदनशीलता, सबको साथ लेकर चलने की आदत ने अनेक कीर्तिमान स्थापित कियें। आर्थिक, सामाजिक व ढांचागत सुधार किये। उनकी कार्यकुशलता, कार्यशैली, व्यवहार एवं विकास के प्रति संकल्पबद्धता, निर्माणकारी कार्य ने उन्हें राजस्थान के विकास की दशा निर्धारित करने में सफलता दिलाई।
1971 में उन्होंने पद त्याग किया। उन्होने तदुपरान्त आन्ध्र, कर्नाटक व तमिलनाडू के राज्यपाल पद को सुशोभित किया। 1980 में लोकसभा के लिए चुने गये। राज्यपाल पद पर रहते हुए भी उन्होने राज्य के हितों के लिए अपने प्रभाव का उपयोग किया व प्रदेश के विकास कार्यो का बढ़ाया।
सुखाड़िया उच्च कोटि के प्रशासक थे। छात्र संघ अध्यक्ष एवं युवक कांग्रेस का संयोजक होने के नाते मैं उनके निकट सम्पर्क में आया। राजस्थान राज्य यूनिवर्सिटी प्लानिंग फोरम में की एक बैठक में उन्होने कहा था ”राजनेता एवं प्रशासकों को हिन्दी के ”क“ अक्षर का महत्व समझना चाहिए और निर्णय लेते समय स्पष्ट सोच तय होनी चाहिए। क्या करना है? और कैसे करना है? कौन करेगा? और आखीर में किस हद तक सफलता मिली“। लगभग 17 साल के उनके शासनकाल में उन्हें हर क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता मिली।
उन्हें राजस्थान का शिल्पी कहा जाता है। योजना आयोग सदस्य व कृषि आयोग के अध्यक्ष डाॅ. स्वामीनाथ ने मुझे एक मुलाकात मे कहा था ”राजस्थान नहर के निर्माण की जिम्मेदारी, वित्तीय संसाधनों की कमी के बावजूद, मोहनलाल सुखाड़िया जैसे कुशल, दूर दृष्टि के राजनीतिज्ञ ही ले सकते थे, जिसने राजस्थान का नक्शा बदल दिया“। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)