महिला सशक्तिकरण आवश्यक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह 

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

www.daylife.page 

महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में लिखा था ‘‘नारी को अबला कहना अधर्म है, यह महापाप है जो पुरूष द्वारा किया जा सकता है। नारी को किसी भी परिस्थिति में डरना नहीं चाहिए, उसके पास विशाल शक्ति है, वह किसी से कम नहीं।’’ किसी भी देश अथवा अर्थव्यवस्था के विकास में सिर्फ सैद्धांतिक प्रतिमानों द्वारा परिस्थितियों को बदला नहीं जा सकता। राष्ट्र के विकास में महिलाओं की भागेदारी को अहम माना जाता है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांसकृतिक सभी क्षेत्रों में उनकी उन्नति, विकास तथा शक्ति सम्पन्नता बढ़ाना आवश्यक है। देश व अर्थव्यवस्था के विकास में महिना व पुरूष प्रभावशाली व अर्थपूर्ण सहयोगी माने जाते है परन्तु भारत में सरकारी व गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद उनकी सामाजिक और आर्थिक दशा सोचनीय है। स्वतंत्रता के 75 वर्षो के पश्चात भी अपेक्षित सुधार नहीं हुआ।

भारत में वर्तमान में नाबालिग व छोटी उम्र की बालिकाओं से बलात्कार, हत्या व अन्य घृणित कृत्य बढ़ रहे है। प्रतिदिन समाचार पत्रों में सुर्खियों में प्रकाशित हो रहे है। पुलिस व न्याय व्यवस्था काबू करने में असफल रहा है। टीवी, मोबाईल, सिनेमा, अश्लील साहित्य के कारण घटनायें बढ़ रही है।

मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 15 व 16 तथा राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 38 व 39 के तहत केवल लैंगिक आधार पर भेदभाव का निषेद किया गया है। अनुच्छेद 42 के अन्तर्गत राज्य को काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशा तथा प्रसूति सहायता के अधिकार का निर्देश दिया गया है। इसी प्रकार अनुच्छेद 39-घ पुरूषों व स्त्रियों दोनों को समान काम के लिए समान वेतन की बात करता है। महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में अधिकार देने हेतु 73वां व 74वां संविधान संशोधन किया गया। पाकिस्तान में 22 प्रतिशत, बंगलादेश में 13 प्रतिशत, पूर्ववर्ती काल में अफगानिस्तान व नेपाल में एक तिहाई राजनैतिक भागेदारी प्रदान कर रखी है।

मानव संसाधन मंत्रालय के महिना बाल विकास विभाग के एक प्रतिवेदन में भारत में प्रत्ये 54 मिनट में एक महिला का बलात्कार, 51 मिनट में छेड़छाड़, 26 मिनट में बदसलूकी, 102 मिनट में दहेज के कारण हत्या होती है। वास्तविक आंकड़े इससे अधिक है व बढ़ते जा रहे है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक भारतीय विवाहित महिलायें घरेलू हिंसा की शिकार है।

सामाजिक कुरीतियां महिला सशक्तिकरण में बाधक है। स्वयं महिलाओं द्वारा स्वयं वे शरीर पर, प्रजनन पर, आय, श्रम शक्ति, संपत्ति व संसाधनों पर नियंत्रण से ही उनका सशक्तिकरण होगा। सामाजिक, राजनैतिक, सार्वजनिक जीवन में प्रतिनिधित्व, उनकी दक्षता में अभिवृद्धि, कार्य क्षेत्र और अन्यत्र उनके साथ किये जाने वाले दुव्र्यवहारों पर सख्त रोक व सामाजिक सुरक्षा आवश्यक है।

महिलाओं ने कार्य क्षेत्र की दिशा में अवसर मिलने पर पुरूषों से पीछे नहीं रही है। चिकित्सा, शिक्षा, विज्ञान, प्रोद्योगिकी, अंतरिक्ष, खेलकूद, राजनीति, कूटनीति, प्रशासन, पुलिस, सैन्य बल आदि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की श्रेष्ठतम उपलब्धि ने इसे बखूबी साबित किया है। अन्तर का कारण समाज में व्याप्त वे मान्यतायें एवं प्रवृत्तियां है जिनके अनुसार लड़कियों को जन्म से ही अशुभ माना जाता है। कुछ समुदायों में तो पैदा होते ही मान दिया जाता है। लिंगानुपात जैव वैज्ञानिक घटना न होकर बालिका भ्रूण हत्या है। आज महिलाओं के लिए असीमित अवसर है, पुरूषों से कदम मिलाकर प्रगति की ओर अग्रसर हो सकती है। महिलाओं को सशक्त करके विकास की कई विसंगतियां दूर की जा सकती है, विकास की एक बेहतर समझ के अनुसार उनकी प्रगति आवश्यक है। सामाजिक कुरीतियां, बाल विवाह, दहेज, नशाखोरी के प्रभाव से भी महिलायें सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक दृष्टि से दबी रहती है। गृहस्थी के संचालन में उत्तरदायित्व भी शिक्षा व विकास से भी वंचित करता है।

महिलाओं के साथ होने वाले सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन के उद्देश्य से महिलाओं के विरूद्ध अत्याचार व अपराधों की रोक हेतु कानूनी प्रणालियों के सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता है। गृहलक्ष्मी कही जाने वाली महिला का अस्तित्व आज गृहदासी में सिमटकर रह गया है। महिलाओं को मानवाधिकारों का उपयोग करने हेतु सक्षम एवं पुरूषों के साथ सभी क्षेत्रों में आधारभूत स्वतंत्रता, समान हिस्सेदारी मुख्य है। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि महिलाओं में व्याप्त अशिक्षा को दूर करना, दहेज प्रथा पर प्रतिबन्ध, पैतृक संपत्ति व साधनों में समान अधिकार आवश्यक है। महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना होगा। उनकी क्षमता केवल संतान जन्म, संतति नियंत्रणों जैसे विषयों से उठकर होना चाहिए। सामाजिक कुरीतियां महिला सशक्तिकरण में बाधक है, उनसे छुटकारा पाना होगा। महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों की रोकथाम, नियंत्रण हेतु पुलिस प्रशासन का उत्तरदायित्व निश्चित कर शीघ्र दण्डात्मक कार्यवाही की आवश्यकता है।

ग्रामीण अंचलों में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं है, वहां स्थिति और दयनीय है। बालकों को बालिकाओं की अपेक्षा श्रेष्ठ समझा जाता है, महिलाओं को राजनीतिक अधिकार आवश्यक है। पंचायतों में राजीव गांधी के समय संवैधानिक प्रावधानों द्वारा आरक्षण हुआ परन्तु संसद व विधानसभा में बाकी है। वर्तमान सरकार को तीन तलाक और ड्रेस कोड के लिए समय है परन्तु संसद व विधानसभाओं में आरक्षण पर विचार के लिए नहीं। उत्तर प्रदेश में पार्टी टिकट देने में प्रियंका गांधी ने अवश्य पहल की है। (लेखक का अपना अध्ययन अपने विचार है)