विवाद नहीं संवाद करते हैं..., कहना ही नहीं सुनते हैं...!!
लेखिका : ममता सिंह राठौर
जी हाँ, आज मैं एक माँ होने के नाते कुछ अपनी बात कह रही हूँ हो सकता है यह मेरे जैसी और भी माताओं के मन की बात हो।
यह सब को पता है बच्चे फोन से पढ़ रहें हैं, यानी कि ऑनलाइन क्लास, अब इन कक्षाओं के साथ खुद को फिट करना बच्चों को तो मुश्किल है ही, और घर, और परिवार के लिए भी चुनौती कुछ कम नहीं रहीं।
दो बच्चें हैं तो दो फोन चाहिये ही, घर छोटा है बड़ा है, कोई बीमार है, कुकर की सीटी बजनी है।
बच्चों को एकांत स्थान देना है चलो यह तो रहीं घर की बातें अब कुछ स्कूल की कर लेते है, जी हाँ मैंम अंग्रेजी में बात करेंगी बच्चा समझें न समझें-
घर में माँ समझना चाहे तो - क्या करें मैंम? हिंदी में बात करके बच्चे को सहूलियत नहीं देंगीं क्योंकि स्कूल का रूल है इंग्लिश मीडियम, पर इन दिक्कतों के साथ जो फायदा है वो यह कि आप अपने बच्चों के नाम चाहे भूल जाएं पर कुछ आठ दस नाम आप की जुबान पे चढ़ चुकें होगें।
जिन्हें आप हर विषय की टीचरों के द्वारा पुकारते सुना होगा, स्कूल जाकर बच्चा क्या पढ़ा कैसे पढ़ा कहा बैठा हमें नहीं पता होता था, पर अब पता है, कमाल इस बात का है कि क्या क्लास में आठ, दस बच्चे ही है जो टीचरों को दिखते हैं, मैं नहीं समझ पा रही थी तो एक दिन मैं खुद फोन के सामने खड़ी होकर देखने लगी, तो शिक्षिका जी हमें दिखीं, अब हमने बच्ची से कहा तुम भी इन कोकिल बच्चों की तरह कुछ बोलो मैंम से, बच्ची ने रूल के हिसाब से हैंडरेज किया तब भी नही बोली मैंम फिर कहा मैसेज करो तब भी कुछ नहीं -
मैं सोच रही थी तब तक कक्षा का समय पूरा हो गया।
आप शिक्षिकाओं को फोन कर सकते है यह सुविधा है पर अपनी भी दुविधा है कि मैंम को परेशान न करें उनकी भी घर गृहस्थी है।
फोन उठाएं और यदि फोन पे मेरी बात हो जाये तो सिर्फ यह बात मेरे बच्चे की नहीं है। यह बहुत सी माताओं की दुविधा है, कक्षा में आठ दस मात्र बच्चे नहीं होते है तो कृपया कक्षा के उन बच्चों का नाम लेने की बहुत जरूरत है, जो खुद नहीं बोल पाते, जो पीछे बैठे है उन्हें आगें लाना हमारा कर्तव्य है।
इस बात पर संवाद होना चाहिए, विवाद नहीं। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)