गीत और संगीत के बाद कारोबार जगत की एक मुखर आवाज़ गुम

राहुल बजाज स्मृति शेष 


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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब अपना पहला केंद्रीय बजट पेश किया था,तब विरोध में कई प्रतिक्रियाएँ आईं थीं, लेकिन एक तीखी टिप्पणी ने हंगामा मचा दिया था। इस टिप्पणी में कहा गया था कि निर्मला सीतारमण अभी तक के सभी केंद्रीय वित्त मंत्रियों में सबसे बुरी मंत्री है। यह टिप्पणी आगे चलकर सरकार को भी नागवार गुजरी, लेकिन माना गया कि इस आवाज़ में पूरे भारत के उद्योग जगत की आवाज़ शामिल है। पता रहे कि यह बात मशहूर उद्योगपति राहुल बजाज ने कही थी, जिनका फरवरी 12 को कैंसर, फेफड़े और ह्रदय सम्बन्धी लम्बी बीमारी के बाद 83 वर्ष की उम्र में पुणे में निधन हो गया। पद्मभूषण से नवाज़े गए राहुल बजाज, बजाज उद्योग समूह के लगभग पांच दशकों तक चेयरपर्सन रहे थे और कारोबारी दुनिया में रहने के बावजूद अपने धाकड़ अंदाज के लिए जाने जाते थे। उन्हें तीखे तेवर शायद अपने परदादा स्वर्गीय जमनालाल बजाज से मिले थे, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। 

लगभग सभी आर्थिक पत्रकार उन्हें भारतीय उद्योग जगत का बेफ्रिक, लेकिन जिम्मेदार,संवेदनशील व्यक्ति मानते थे। कहा यह भी जाता है कि राहुल बजाज सिर्फ उद्योग जगत को लेकर ही अपनी असहमतियों को व्यक्त करने का हौसला नहीं  रखते थे, बल्कि राजनीति, अर्थशास्त्र, सरकार और समाज को लेकर भी अपनी सोच को बिना लाग लपेट व्यक्त करने से नहीं चूकते थे। अपने जूनियर्स के लिए वे पितृ पुरुष थे और देश के प्रति गर्व और स्वाभिमान उनमें इतना कूट- कूटकर भरा हुआ था कि उनके स्कूटर बजाज सुपर की टैग लाइन ही हो गई हमारा बजाज। बीमारी की वजह से राहुल ,तो पार्श्व में चले गए थे, लेकिन कुछ सालों से उनके दोनों साहबज़ादे संजीव  और राजीव बजाज काम काज देख रहे थे।

क़िस्सा मशहूर है कि एक बार जब उन्हें टीचर ने क्लास से निकाल दिया था, तो राहुल ने बेलौस होकर कह दिया था -You just can't bit a Bajaj उन्होंने फिरोदिया ग्रुप से लंबी लड़ाई लड़ी, और पूरी बहादुरी से बजाज ऑटो पर कब्ज़ा पाया। यह सन 1960 का साल था। यही बजाज आगे चलकर देश भर की आवाज़ या पहचान बन गया कि हमारा बजाज ।इस दबंग शख्सियत ने  अमेरिकी कम्पनी ,जो विश्व की महारथी ऑटो कम्पनी थी ,और जिसका नाम पिआज्यो था, नाको चने चबवाए। राहुल बजाज को कंजूस माना जाता रहा, लेकिन उक्त कम्पनी को उन्होंने अदालत में घुटने टिकवा देने के लिए दस लाख डॉलर होम कर दिए।यह ज़िद्दीपन ही राहुल बजाज की सफलता का सबसे बड़ा फ़लसफ़ा माना जाता रहा। 

जमनालाल बजाज ने अपना कारोबारी उनके दादा स्वर्गीय जमनालाल बजाज ने अपना कारोबारी  सफ़र 1926 में शुरू किया था, दरअसल वे वर्धा सेठ बच्छराज के यहाँ गोद गए थे। उसी बच्छराज एण्ड कम्पनी ने पहले ट्रेंडिंग शुरू की, और 1931 में उधोग भी शुरू कर दिया। इस बीच वे महात्मा गाँधी के सम्पर्क में ऐसे आए कि दूसरे काम पीछे, और सामाजिक जीवन में सक्रियता सबसे आगे हो गई ,लेकिन 1942 के आते आते 53 साल की उम्र में ही वे चले गए।राहुल बजाज के पिता का नाम था कमलनयन बजाज। छोटे भाई शिशिर बजाज, राहुल बजाज की वर्तमान पीढ़ी के हिस्से में कुल 27 से ज़्यादा कम्पनी हैं, जिनमें आगेवान बजाज ऑटो बजाज इलेक्ट्रिकल्स, और बजाज हिंदुस्तान। पहला बजाज वेस्पा गुड़गांव के एक गैराज में बनाया गया था ।बाद में मुंबई के कुर्ला होते हुए अकुरड़ी में शिफ़्ट हो गया। यहीं दो पहिया, और तीन पहिया वाहनों के लिए अलग अलग प्लांट्स लगाए गए। सन 1960 में कम्पनी को नाम दिया गया बजाज ऑटो। 

कम लागत और वाज़िब मूल्य होने से यह दो पहिया बजाज सुपर विशेषकर मध्यमवर्गीय परिवारों की ज़रूरत ही नहीं शान हो गया, क्योंकि तब तक आज की तरह लोन पर न तो कारें मिलती थीं, न ये अफोर्डेबल थीं, न ही इसकी आवश्यकता थी। आज तो कार क्रांति ऐसी आई है कि लगभग प्रत्येक घर के नीचे एक दो गाड़ियां खड़ी मिलेंगी। नतीजतन, पार्किंग के लिए दूर तक जाना पड़ता है। स्व. राहुलजी को सिर्फ़ साहसी ही नहीं, दूरंदेशी, ऑटो चिंतक, सदा सक्रिय, प्रयोगधर्मी, सभी को साथ लेकर चलने वाला संयमशील लीडर, तीखी, तर्कशील बुद्धि और यश की कामना से बचे रहने वाला उधोगपति माना गया। उन्हें यश की कामना से बचे रहने के लिए भी जाना जाता रहा। जब  हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोडक्ट राहुल बजाज जब 1965 में बजाज ऑटो के कमानधारी बने, तो कम्पनी को नया जोश, स्फूर्ति, और नई ऊर्जा मिली।

उन्हीं दिनों एक दिक्कत दरपेश आई। नवल फिरोदिया बजाज ऑटो के सीईओ एवं बजाज टेम्पो के मेनेजिंग डायरेक्टर थे। उन्हें रोज़ रिपोर्ट करना राहुल बजाज को गवारा नहीं हुआ। फितरतन ही ऐसे थे। जब बजाज ऑटो राहुल के कब्जे में आया, तब बजाज स्कूटर के खिलाफ एलएमएल, एनफील्ड, एस्कॉर्ट, एपीआई और काइनेटिक दो पहिया मैदान में थे, लेकिन लगभग दो दशक तक राहुल बजाज की कल्पनाशीलता के चलते बजाज ऑटो का ही परचम लहराता रहा। बजाज का ऐसा जलवा था कि सिर्फ पच्चीस फ़ीसद दो पहिया मार्केट उसने दूसरों के लिए छोड़ा था, तिपहिया वाहनों के बाज़ार  तो दस प्रतिशत औरों के लिए छूटा था।शेष को हमारा बजाज ने लॉक कर रखा था।

एक बार उनके प्लांट में श्रमिक हड़ताल होने से उपद्रव हुआ। तीन बंदे मारे गए। वे अपनी फैक्ट्री परिसर में ही डटे रहे ,क्योंकि पीछे पत्नी रूपा बजाज माँ दुर्गा देवी बनकर खड़ी थी। परिवार प्लांट परिसर में ही निवास करता था। रूपाजी की कुछ साल पहले बीमारी से मृत्यु हो गई थी। उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्होंने लगातार सरकार से बुराई मोल ली, जबकि गाँधी नेहरू परिवार से उनकी निजी मित्रता ही नहीं, बल्कि उनके पिता कमलनयन बजाज पूर्व पीएम स्व. इंदिरा गाँधी के साथ कभी स्कूल में पढ़े थे। उनके पिताजी को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अपना भामाशाह कहा करते थे। महाराष्ट्र के वर्धा के सेठ बछ राम  ने जब उन्हें गोद लिया था, तब बदले में उनसे अपने पुश्तैनी गाँव राजस्थान के काशी का बास (ज़िला सीकर) में कुँआ खुदवाने की माँग की थी। कहते हैं वह कुँआ आज भी पानी देता है। सरकार की उत्पादन नीतियों पर मनमानी को लेकर राहुल स्वर्गीय संजय गाँधी के जमाने में कहते हैं जेल जाने तक को तैयार थे।मैदानी प्रतिनिधि माने जाने वाले राहुल बजाज की कम्पनी को पहले तत्कालीन उद्योग मंत्री स्व. जॉर्ज फर्नांडीज ने जब उन्हें छूट दी तो 1977 से 79 के दौरान 1.60 लाख स्कूटर बनाएं गए। 

राजीव गांधी ने उन्हें और ज्यादा स्कूटर बनाने की अनुमति दी। बाद में इन्ही राजीव गांधी से उन्हें दस लाख की क्षमता वाला  प्लांट डालने की अनुमति दी। राहुल बजाज की प्रबंधकीय कुशलता और कम खर्ची का ही सुफल था कि बजाज वेस्पा अपने प्रतिस्पर्धियों से 20 फीसद सस्ते होने के बावजूद 20 फीसद मुनाफा अर्जित करता था। स्कूटर मार्केट में बजाज ऑटो ने ऐसी दमदारी बताई की ग्राहकों ने नम्बर लेकर उसे लाखों में बेच दिया। घर बनवा लिए।  यहां तक कि स्कूटर की डिलीवरी होने पर बेटी को दहेज में भी देने का चलन प्रारंभ हुआ। हालात यह हो गए थे कि लोग किसी अन्य कम्पनी का नया स्कूटर खरीदने की बजाए पुराने वेस्पा बजाज को ज्यादा दाम देकर खरीदने लगे।पुराने वेस्पा बजाज के बारे में आज भी जुमला मशहूर है हाफ किक स्टार्ट।  बजाज स्कूटर ने ही युवा पीढ़ी के लिए सनी स्कूटी भी लांच की थी, जो सिंगल गियर थी लेकिन चल नही पाई। 

माना जाता है कि राहुल बजाज के सपने हवा हवाई ही नही रहे जब उनके दोनों पुत्र राजीव और संजीव बाइक उद्योग में जापान की हीरो होंडा कम्पनी के कारण मार्केट में नम्बर दो पर आ गए तब एक टैग लाइन ने पूरा माहौल बदल दिया और वह टैग लाइन हीरो होंडा की ही थी 'fill it,shut it,forget it, (पेट्रोल भरो,बंद करो और भूल जाओ)। लेकिन राहुल बजाज ने दोनों बेटों से कहा मैं नम्बर वन ही था तुम भी दो से आगे निकलकर फिर नम्बर वन पर आ जाओगे। 

राहुल बजाज ने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि मेरे दोनों बेटों ने मुझे कारोबार से बाहर निकाल दिया लेकिन, मैं इससे खुश हूं।वे अपने को दो गांवों का बेटा मानते थे। वर्धा के अलावा काशी का बास भी। उन्होंने विकास संस्थाएं खुलवाई। इस इलाके में सौ स्कूलों का निर्माण करवाया, भवन निर्माण, शौचालय निर्माण और कोविड काल में 3 करोड़ रुपये खर्च किये ।अगर यह आंकड़ा कुल जमा किया जाए, तो 80 करोड़ के आसपास बैठता है। वे राज्य सभा सदस्य मनोनीत हुए।पद्मभूषण, लाइफ अचीवमेंट पुरस्कार और फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार उन्हें मिला। वे 7.2 करोड़ से शुरू हुआ अपना कारोबार 12 हजार करोड़ तक ले गए और उनकी कुल दौलत 62 हजार करोड़ रुपए बताई जाती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

लेखक : नवीन जैन

(स्वतंत्र, वरिष्ठ पत्रकार)

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