क्या कहते हैं? केन्द्रीय बजट 2022 के बारे में डाॅ. सत्यनारायण सिंह (पूर्व आई.ए.एस.)

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक पूर्व आई.ए.एस अधिकारी हैं)

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केन्द्रीय बजट 2022 प्रस्तुत करते हुए वित मंत्री ने आजादी के अमृत काल के लक्ष्य बताते हुए कहा ये विकास एवं समग्र समावेशी कल्याण, प्रायोगिनी जनित विकास, ऊर्जा, संस्कृति एवं जलवायुपरक कार्य, निजी निवेश से प्रारम्भ कर सार्वजनिक पूंजी निवेश का सदचक्र पर ध्यान दिया गया है। चार प्राथमिकतायें पीएम गतिशक्ति, समावेशी विकास, उत्पादकता, संवर्धन और निवेश, उदीयमान अवसर, ऊर्जा, संक्रांति और जलवायुपरक कार्य, निवेश का वित्त पोषण होंगी। अर्थव्यवस्था की बहाली, देश की प्रतिरोध क्षमता की द्योतक होगी।

पीएम गतिशक्ति के अन्तर्गत सात इंजनों यथा सड़क, रेल, एयरपोर्ट, सार्वजनिक परिवहन, जल मार्ग और लोजिस्टिक अवसंरचना से संचालित विश्वस्तरीय राष्ट्रीय मास्टर प्लान एक्सप्रेस मास्टर प्लान तैयार कर 2500 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग, एकीकृत पोस्टल और रेलवे नेटवर्क, 400 वन्दे मातरम ट्रेन, शहरी परिवहन व रेलवे स्टेशनों के बीच मल्टीमाडल सम्पर्क, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण के तहत रसायन मुक्त प्राकृतिक कृषि, पीपीपी मोड से किसानों को हाईटेक सेवाओं की उपलब्धि, मूल्य संवर्धन कृषि स्टार्टअप्स, 9 लाख हैक्टर कृषि भूमि सिंचाई, 60 लाख लोगों को पेयजल, 103 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लाभ, शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्तायुक्त शिक्षा हेतु 200 टीवी चेनलों की स्थापना, डिजिटल विश्वविद्यालय, आललाइन ट्रेनिंग से कौशल विकास, स्वास्थ्य के क्षेत्र में परामर्श हेतु नेशनल टेलीमेन्टल हैल्थ प्रोग्राम, मिशन वात्सल्य, सक्षम आंगनबाडी, पोषण की शुरूआत, दो लाख आंगनबाडियों में समुन्नत समावेशी कल्याण के तहत हर घर नल से जल, 3.8 करोड परिवारों को कवर, पीएम आवास योजना में 80 लाख घरों का निर्माण, पिछड़े जिलों में विकास कार्य, डाक घरों द्वारा डिजिटल बैंकिंग, एमएसएमई के कामकाजों को बढ़ाना, हास्पिटलटी उद्यमों का विशेष ध्यान, उत्पादन, संवर्धन एवं निवेश, निवेश का वित्त पोषण, आरबीआई के द्वारा डिजिटल रूपये का संचालन होगा। कर प्रस्तावों के अन्तर्गत सहकारी समितियों को राहत, राज्य कर्मचारियों के एनपीएस खाते में कटौती सीमा में बढ़ोतरी, सीमा शुल्क में छूट, कारपोरेट जगत को राहत की घोषणा की है। सरचार्ज 12 से 7 प्रतिशत किया गया है। कहा गया है 5 साल में 60 लाख भर्तियां होंगी। इस अमृतकाल बजट को आजादी के 100 साल (2047) का ब्लू प्रिन्ट बताया गया है।

प्रधानमंत्री मोदी 2014 के मेक इन इंडिया योजना में 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र में 10 करोड़ नौकरियां पैदा करने की घोषणा की। सेंटर फोर इकोनोमिक डेटा के अनुसार 2016-17 और 2019-20 के बीच चार वर्षो में भारत ने वास्तव में एक करोड़ नौकरियां खो दी। मेक इन इंडिया से देश में अगले पांच सालों में 60 लाख नौकरी पैदा होने का अनुमान लगाया गया जबकि विनिर्माण क्षेत्र में छह साल में जाब्स आधे हो गये। लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार बेरोजगारी शहरी क्षेत्र में 9.3 प्रतिशत है। मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर में 2016-2017 में 5.10 करोड़ नौकरियां थी, 2020-21 में 2.73 करोड़ रह गई।

बजट में छोटे उद्योगों को राहत नहीं, 60 लाख रोजगार कैसे बढ़ेगा इसका रोड मैप नहीं दिया गया। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में गत वर्ष की घोषणाओं की क्या प्रगति हुई, घोषणाओं को कितना पूरा किया जा सका, इसके बारे में ब्यौरा नहीं दिया। मंहगाई लगातार बढ़ रही है इसके संबंध में कुछ नहीं कहा। इनकम टैक्स में कोई छूट नहीं दी गई।

कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों से जीएसटी घटाना व न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनीतौर पर अनिवार्य बनाना उचित नहीं समझा गया। मनरेगा आवंटन और उर्वरक सब्सिडी में कटौती की गई। कृषि बजट में सिर्फ 1 प्रतिशत इजाफा किया गया। बिना एथेलान पैट्रोल डीजल पर 2 प्रतिशत डयूटी बढ़ी इससे पैट्रोलियम पदार्थ मंहगे होंगे। मध्यम वर्ग के लिए आयकर में छूट नहीं दी गई। यह बजट पीड़ितों, गरीबों, बेरोजगारों के बजाय पूंजीपतियों को सहारा देने वाला है। देश को तुरंत राहत और समाधान की बजाय 25 साल बाद का सब्जबाग दिखाया गया है। महामारी के बाद अधिकांश मिडिल क्लास व मजूदर वर्ग के लोगों की आमदनी घट गई, उन्हें तुरंत राहत मिलनी चाहिए थी।

बजट कारपोरेट सेक्टर के लिए अच्छा है। निम्न व मध्यम आय वर्ग को निराशा, मंहगाई बढ़ाने वाला है। राजस्थान के लिए सीधे तौर पर कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई। देश में आर्थिक विषमता बहुत ज्यादा बढ रही है, क्षेत्रीय विषमतायें बढ रही है। असमानता-विषमता को दूर करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। विश्व के 116 देशों के भूखमरी सूचकांक में भारत का 101वां स्थान है। पोषाहार की दृष्टि से भारत की स्थिति संतोषप्रद नहीं है, भूख से मरने वालों की संख्या ज्यादा है। श्रमिकों का पलायन हुआ है, करोड़ों श्रमिक बेरोजगार बैठे है। 

असंगठित क्षेत्र की हालत खराब है, खुदरा मंहगाई 6 प्रतिशत तक पंहुच गई है। धन कुबेरों की संपत्ति व उनकी संख्या में वृद्धि हो रही है, गरीबों की संख्या व उनके स्तर में वृद्धि हो रही है। क्षेत्रीय विषमताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। व्यक्तिगत दरों व जीएसटी में कोई बदलाव नही हुआ। मध्यम वर्ग व नौकरीपेशा वर्ग उम्मीद लगाये बैठा था मंहगाई कम करने व करों में छूट को लेकर कोई बडा एलान होगा लेकिन बजट भाषण से निराशा हुई है।

महामारी के दौरान केवल कुछ उद्योगपतियों व घरानों को लाभ और आय में प्रोत्साहन मिला। असमानता बढ़ी, इस समूह पर कर लगाकर सरकार कुछ कर्जभार से बच सकती थी। आबादी के जिन वर्गो पर कुप्रभाव पडा, नौकरियां छिन गई उस पर और दबाब पडेगा।

बजट में इस वर्ष क्या होगा इसकी बजाय 25 वर्षो का प्रारूप बताने का प्रयास कर 20 करोड रोजगार लुप्त होने के तथ्य को छुपाना है। युवा व महिलाओं को कामकाज छोडना पडा। केन्द्र में 8.72 लाख पद खाली है। उदारीकरण के बाद 30 सालों में भारत की आबादी 84 करोड़ से बढ़कर 135 करोड़ हो गई। नौकरियां घट गई, पब्लिक सेक्टर की नौकरियों में 10 फीसदी कमी कर दी गई। मोदी सरकार ने 2 करोड रोजगार सालाना व बैंक खातों में 15 लाख जमा कराने का वायदा किया था। 

भर्तियां कान्ट्रेक्ट व कंसलटेंट के भरोसे भरी भरी जा रही है। अब सरकार ने 5 साल में 60 लाख रोजगार की बातें की। 85 से 90 फीसदी रोजगार असंगठित क्षेत्र में है। बेरोजगारों व भूख से मरने वालों का कोई हिसाब नहीं है। बैंकों का निजीकरण हो रहा है, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग बिक रहे है फिर परम्परागत पदों में भर्ती कैसे होगी? रेलवे की हिंसा से प्रमाणित है युवा लोक लुभावन वायदों से बहकावे में आने वाले नहीं है। असमानता व बेरोजगारी की समस्या के समाधान के ठोस प्रयास नहीं किये तो अशांति का वातावरण बनने के आसार नजर आ रहे है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)