व्यंग्य : पेशाब और प्रशंसक

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फैन की भी बड़ी आफत है। पिछले हफ्ते एक लाइव कॉन्सर्ट के दौरान अमरीका की सिंगर सोफिया उरिस्ता ने स्टेज पर अपने एक मेल फैन को बुलाया और उसे लिटाकर उसके चेहरे पर पेशाब कर दिया। इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद जमकर वायरल हुआ। सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग की शिकार हो रहीं सोफिया ने अब इस हरकत के लिए माफी मांग ली है। उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर लिखा कि उनका इरादा किसी को दुख पहुंचाने का नहीं था।

इस समाचार को पढ़ने के बाद कई तरह के भाव और विचार हमारे मन में आये. सबसे अधिक गुस्सा तो हमें उस तथाकथित कलाकार पर आया जिसने अपने अहंकार में शालीनता की सभी सीमाएं पार कर दीं. पशु-पक्षी भी खान-पान, शौच व अन्य क्रियाओं के लिए थोड़ी आड़-ओट तलाशते हैं लेकिन इस गायिका ने हजारों लोगों के सामने मंच यह सब किया। 

जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- तोताराम, सबसे बड़ी कमीनी तो यह तेरे सबसे धनवान लोकतंत्र अमरीका की गायिका और उससे भी बड़ा गधा उसका यह प्रशंसक जिसे आजकल की भाषा में 'फैन' कहा जाता है। 

बोला- मास्टर, यह कलाकार सबसे बड़ी कमीनी नहीं है। दुनिया बहुत बड़ी है. अमरीका में ही इससे भी बड़े कमीने भरे पड़े हैं. विस्कोंसिन (अमरीका) के केनोशा नामक शहर में नस्ल भेद के खिलाफ हो रहे एक प्रदर्शन में काइल रिटेन हाउस नामक एक गोरे व्यक्ति ने गोली चलाकर दो लोगों को मार डाला। इस हत्या की निंदा करने की बजाय कुछ लोग उसका महिमामंडन करने के लिए आगे आ रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने उसके साथ मुस्कराते हुए फोटो खिंचवाकर प्रसारित की है। ज्योर्जिया की रिपब्लिकन पार्टी के एक प्रतिनिधि ने इस हत्यारे को लोगों की रक्षा करने के लिए स्वर्ण पदक दिए जाने का प्रस्ताव किया है।  

हमने कहा- तोताराम, इस हिसाब से तो किसानों पर जीप चढ़ाने और चढ़वाने वाले भी सम्मानित होने चाहियें. घटिया राजनीति में तो धर्म-जाति, नस्ल आदि के भेदभाव फैलाकर ही चुनाव का शोर्ट कट खेल खेला जाता है। कल्याण की राजनीति करने वालों को इस तरह के षड्यंत्र नहीं करने पड़ते। अमरीका में भी लिंकन जैसे नेताओं ने कभी ऐसा नहीं किया। और अब तो यह खेल अमरीका में ही क्या अपने देश में भी खेला जाने लगा है। जाति-धर्म के नाम पर गाली-निंदा ही क्या, राजनीतिक और वास्तविक हत्याएं तक की जा रही हैं। कपड़ों से पहचान कर खुले आम गोली मारने के नारे लगवाये जाते हैं, और चेतावनी के बाद भी न सुधरने वालों को जीपें तक अपने स्तर पर रौंद कर सुधार देती हैं। गाँधी और गोडसे का खुल्ला षड्यंत्र चल रहा है कि नहीं? गाँधी को गाली देने वाले पुरस्कृत किये जा रहे हैं। लेकिन हम राजनीति की नहीं साहित्य और कला में शालीनता की बात कर रहे थे।  

बोला- मास्टर, यह 'फैन' नाम का जीव बड़ा विचित्र होता है। यह जूतों को भी अपने नायक का प्रसाद समझता है। कई ढोंगी बाबा गालियाँ निकालते हैं, कई तो चिमटा तक फटकार देते हैं और भक्त ऐसे होते हैं जो उनका चिमटा खाकर धन्य हो जाते है और सोचते हैं कि अब शीघ्र ही उनकी किस्मत खुलने वाली है। क्रिकेट मैच और नेताओं की रैलियों में 'फैन' लोग जिस तरह से वस्त्र, सजावट और मुखौटों में पहुंचते हैं वह क्या खुद अपने मुंह पर किसी तथाकथित महान पुरुष का जूता मारने से कम है ? लोग महानायक की निगाह में आने के लिए कैसे हर बात में अश्लील तरीके से हाँ में हाँ मिलाते हैं, बिना पूरी बात सुने ही ताली बजाने लगते हैं. ? क्या वे उस फैन से बहुत बेहतर नज़र आते हैं जिस पर गायिका उरिस्ता ने पेशाब कर दिया।

हमने कहा- ठीक कह रहा है तू. यह पेशाब तो दो लोटे डालकर धुल जाएगा. सड़क पर चलते कभी गन्दगी पर पैर टिक जाता है तो क्या फर्क पड़ जाता है. धोया और साफ़; लेकिन यह जो 'फैनियत'  की गन्दगी दिमाग में चली जाती है उसका इलाज बहुत मुश्किल है। पीढ़ियों तक चलती है यह गन्दगी। वैसे तोताराम, हम तो कला, साहित्य और संस्कृति आदि में अशालीनता की बात कर रहे थे।

बोला- उसके लिए तू क्यों परेशान होता है। उसके लिए तो बहुत से फायर ब्रांड नेता हैं ना। एक ही धमकी में किसी 'मंगल सूत्र' या 'जश्ने रिवाज' को बंद करवाने का माद्दा रखते हैं।

हमने कहा- वैसे तोताराम, पुराणों में अयप्पा, बालि और सुग्रीव के जन्म की कथाएं तो 'मंगल सूत्र' के विज्ञापन से भी बहुत आगे जाती हैं। उनके बारे में क्या विचार है ?

बोला- सुरक्षा की दृष्टि से 'नो कमेन्ट'। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार को अपनी व्यंग्यात्मक शैली में लेखन है)