कोरोना महामारी एवं हमारी स्वास्थ्य देखभाल : डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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कोविड महामारी ने देश में स्वास्थ्य देखभाल की अत्यंत उपेक्षित स्थिति और हर चिकित्सा संस्थान की धीमी गति से बिगड़ती स्थिति पर ही प्रकाश डाला है। इस रोगग्रस्त स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को ठीक करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो सुसंगत और व्यवस्थित हो, जो घुटने के बल नहीं हो। प्रणाली के विभिन्न वर्गो को शामिल करते हुए एक व्यापक, गैर-पक्षपातपूर्ण और गैर उदासीन हस्तक्षेप व साहसिक सुधारों की आवश्यकता है।

यह समय है जब शिक्षा और स्वास्थ्य की हमारी उपेक्षा को स्थाई आधार संबोधित किया जाय है। एक मजबूत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की रीढ़ के बिना कोई भी देश वास्तव में उन्नत नहीं हो सकता है। अगर भारत को 5 अरब के सकल घरेलू उत्पाद तक पहुंचने की जरूरत है, तो ऐसा करने का यह सबसे कुशल और प्रभावी तरीका हो सकता है। एक महान राष्ट्र को एक स्वस्थ जनसंख्या की आवश्यकता होती है।

भारत में कोविड के साथ बड़े पैमाने पर लड़ाई सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा ही लड़ी जा रही है। भारत में अस्पतालों के दो-तिहाई बिस्तर और 90 प्रतिशत वेंटिलेटर निजी स्वामित्व में है, फिर भी उन्होंने देश में 10 प्रतिशत से कम कोविड रोगियों को संभाला है। यह ऐसा है जैसे एक अग्निशामक किसी आग से लड़ने की तैयारी कर रहा हो और उसे केवल खराब रखरखाव वाले उपकरण और सामग्री और खराब प्रशिक्षित कर्मियों की अत्यधिक प्रतिबंधित मात्रा से काम लेना होगा। मीडिया और नेतृत्व के विभिन्न वर्गो ने भारत में सभी निजी स्वास्थ्य देखभाल उद्यमों का तुरंत राष्ट्रीयकरण करने का आह्वान किया है।

स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए कुछ आवश्यक हस्तक्षेप निम्न में से हो सकते हैः-

मेडिकल स्कूलों और स्नातक चिकित्सा शिक्षा (जीएमई) को मजबूत किया जाना आवश्यक है। छात्र प्रवेश परीक्षा के लिए बहुविकल्पीय प्रश्नों की तैयारी पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं और नैदानिक अनुभव और विशेषज्ञता हासिल नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षक अपने निजी अभ्यास में व्यस्त हैं और छात्र सीखने के सबसे आवश्यक पहलू से चूक रहे है। छात्रों को शैक्षिणक संस्थानों में प्रवेश देने से पहले बेहतर स्क्रीनिंग और एप्टीट्यूड टेस्ट पर विचार किया जा सकता है।

स्वास्थ्य सेवाओं में प्राथमिक देखभाल को सुदृढ़ बनाना आवश्यक है। प्राथमिक देखभाल को तुच्छ समझा जाता है। रोगी को शामिल करने की मूल बातें भुला दी गई है, कैसे सुनें, निदान करें, पूछें, बात करें, जांच करें पर जोर नहीं दिया जाता हैं। प्राथमिक देखभाल प्रदाताओं को कम महत्व व भुगतान किया जाता है और रोगियों की देखभाल में उनका बहुत कम प्रभाव होता है। प्राथमिक देखभाल के एक मजबूत नेटवर्क के बिना, हम भविष्य में गुणवत्ता प्रदान करने, लागत कम करने और इस तह की महामारियों के खिलाफ एक मजबूत कवच बनाने में सक्षम नहीं होंगे। बेहतर सामुदायिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता, स्वच्छता सेवाएं, स्वच्छ पानी और हवा, और सार्वजनिक सुरक्षा आवश्यक हैं। अंतिम बिन्दु स्वास्थ्य है, सब कुछ हमारे आंतरिक और बाहरी संतुलन याहोमियोस्टेसिस को प्रभावित करता है।

आवश्यकता है ग्रामीण देखभाल में वृद्धि। ग्रामीण स्वास्थ्य चरमरा रहा है। डॉक्टरों को गांवों में रहना पंसद नहीं है। बुनियादी सेवाएं उपलब्ध नहीं है। एम्बुलेंस और ट्रॉमा सेवाएं न्यूनतम हैं। माध्यमिक या तृतीयक प्रणाली के लिए रेफरल प्रक्रिया डिस्कनेक्टेड और असंगठित है। शायद हमारे गांवों में स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने के लिए एक ग्रामीण स्वास्थ्य निगम का गठन किया जा सकता है। साथ ही डॉक्टरों को गांवों में रहने और अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

हमें आयुष का समर्थन करना चाहिए। स्वास्थ्य देखभाल की स्वदेशी प्रणालियों को नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें छोटे कस्बों व गांवो में, नगरपालिका क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सकों के विशाल नेटवर्क के साथ प्रोत्साहित और एकीकृत किया जाना चाहिए। आयुर्वेद, योग, यूनानी, प्राकृतिक चिकित्सा, और होम्योपैथी प्रभावी हो सकती है, यदि सही हाथों में उपयोग किया जाए। स्वास्थ्य और पुरानी स्थितियों के लिए देशभर में आयुर्वेद और योग केंद्रों की मदद से चिकित्सा पर्यटन को प्रोत्साहित किया जा सकता हैं। लक्ष्य को अंततः समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत विकास की एक इष्टतम स्थिति तक पहुंचने के लिए ‘स्वास्थ्य’ का उपयोग किया जाना चाहिए जहां प्रत्येक व्यक्ति की वास्तविक क्षमता को बढ़ने और इसकी अधिकतम पूर्ति तक पहुंचने की अनुमति दी जाती है।

सरकारी अस्पतालों में सुधार और विस्तार की आवश्यकता है। मेक इन इंडिया की तरह, हमारे पास ‘ट्रीट इन इंडिया’ होना चाहिए। राजनेताओं, वरिष्ठ नौकरशाहों ओर नेताओं को भारत में इलाज कराने की जरूरत है। यही एकमात्र तरीका है जिससे वे स्वास्थ्य देखभाल को गंभीरता से लेंगे और इसे सुधारने की दिशा में काम करेंगे। स्वास्थ्य देखभाल से राजनीति और व्यावसायिक हितों को हटाना आवश्यक है। बड़े फार्मा और उनकी पैरवी करने वालें को स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली से निकालने की जरूरत है। यदि किसी सार्थक सुधार की परिकल्पना की गई है तो रिश्वत, रेफरल शुल्क और कटौती की समस्याओं को हल करने की आवश्यकता है। यह असली वायरस है, कोविड केवल एक लक्षण है।

आपातकालीन और आघात सेवा में वृद्धि। इसके लिए शिक्षा, यातायात सुधार, बेहतर सड़कों और रेल्वे, एम्बुलेंस सेवाओं और प्रशिक्षित परिवहन और निकासी कर्मियों, और उन्नत आघात केन्द्रों सहित एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता हैं।

अनुसंधान के लिए भी उन्नत सुविधाओं की आवश्यकता। भारतीयों को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। हमारी शोध सुविधाएं एनीमिक और जीर्ण-शीर्ण है। हमें देश में सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों को लाने और अकादमिक उत्कृष्टता और अनुसंधान की संस्कृति स्थापित करने की आवश्यकता है। जब हम ‘आत्मनिर्भर’ होने की बात कर रहे हैं तो हमें अपने स्वास्थ्य और ‘आरोग्य’ की स्थिति को बनाए रखने के लिए ऐसा करने की आवश्यकता है।

प्रौद्योगिकी का उपयोग आवश्यक है। जैसे-जैसे सूचना प्रौद्योगिकी बढ़ती है, चिकित्सा शिक्षा, ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल, चिकित्सा रिकार्ड रखने, प्राथमिक देखभाल, तत्काल स्वास्थ्य देखभाल, अनुसंधान और निदान में सुधार किया जा सकता है। टेलीहेल्थ, एक्सटेंडेड रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, एडवांस्ड डेटा एनालिटिक्स, नैनो टेक्नोलॉजी, क्रायो-टेक्नोलॉजी, और जेनेटिक इंटरवेंशन और थैरेप्यूटिक्स सेवाओं की गुणवत्ता और उपयोग में सुधार करते हुए हम हमारे कार्यबल की पहंुच को बढ़ा सकते हैं और कौशल में सुधार कर सकते हैं।

बीमा प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है। आयुष्मान भारत ने इलाज के लिए एक आकस्मिक दृष्टिकोण की और ध्यान केंद्रित किया। अगला कदम जनसंख्या स्वास्थ्य में सुधार और रोगी और प्रदाता शिक्षा में सुधार की दिशा में होना चाहिए। आयुष्मान भारत पर खर्च किया गया पैसा ज्यादातर निजी संस्थाओं को जा रहा है, सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल और ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर बेहतर तरीके से खर्च किया जा सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)