लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान
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भारत देश में अनेक महापुरुष पैदा हुए हैं। इन महापुरुषों में दादा भगवान एक ऐसे महापुरुष है जिनके आचार और विचार से मानवता प्रभावित हुई है। दादा भगवान किसी का नाम नहीं बल्कि परमात्मा का दूसरा नाम ही हो गया है। श्री अम्बालाल मूलजी भाई पटेल जो गुजरात के रहने वाले थे, उन्हीं में कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि लोग उनसे प्रभावित हो गये और उन्हें दादा भगवान कहने लगे। इन्हें विश्व दर्शन हुआ और दर्शन के महत्वपूर्ण विषय इनके मन में स्वयं स्फुटित हो गये। मैं कौन हूं? ईश्वर कौन है? संसार कौन चलाता है? कर्म क्या है? मोक्ष क्या है? इत्यादि संसार के आध्यात्मिक प्रश्नों का सम्पूर्ण रहस्य इनके मन में प्रकट हुआ। इस प्रकार विश्व के सम्मुख एक अद्वितीय पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया। इनका दार्शनिक सिद्धांत अक्रम विज्ञान कहलाता है। अक्रम विज्ञान का अर्थ है क्रम के बिना ही मोक्ष को प्राप्त कर लेना। दादा भगवान कौन? यह प्रश्न लोगों के मन में प्रायः उठता है।
इसका समाधान करते हुए वे कहते थे कि यह जो आपको दिखते है, वे दादा भगवान नहीं है, वह तो अम्बालाल मूलजी भाई पटेल है। हम ज्ञानी पुरुष हैं और भीतर प्रकट हुए है, वे दादा भगवान हैं। दादा भगवान चौदह लोकों के स्वामी हैं। वे आपमें भी है, हममे भी है, और सभी में है। आपमें अव्यक्त रूप से रह रहे हैं और हमारे भीतर सम्पूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं। उन्होंने एक ऐसा जीवनोपयोगी सूत्र दिया है- भुगते उसी की भूल। इस जगत में भूल किसकी चोर की या जिसका चोरी हुआ उसका? इन दोनों में से भुगत कौन रहा है? जिसका चोरी हुआ वहीं भुगत रहा है। चोर तो पकड़े जाने के बाद भुगतेगा और उसके कृत्य का दण्ड उसे मिलेगा।
आज खुद की भूल का दण्ड मिल गया। खुद भुगते तो फिर दोष किसे देना। भूल है, तब तक भुगतना पड़ता है। जब भूल खत्म हो जायेगी, तब इस दुनिया की कोई भी शक्ति भुगतने के लिये दण्ड नहीं देगी। इस संसार में यदि मानव कोई गलती करता है तो न्यायालय उसे दण्ड देता है। किन्तु कर्मजगत का कुदरती न्यायाधीश एक ही है। उसका एक ही न्याय है। उसके न्याय से पूरा जगत चल रहा है। जिसे इनाम देना है वह उसे इनाम देता है। जिसे दण्ड देना है वह उसे दण्ड देता है। जब दृष्टि निर्मल होगी तभी न्याय दिखेगा। जब तक स्वार्थ दृष्टि रहेगी तब न्याय नहीं दिख सकता। मानव अपने कर्मजाल में बंधा रहता है। उसको कोई दूसरा नहीं बांधता हम तो अपने ही भूल में बंधे हुए है।
यह भूल खत्म हो जाये तो मुक्त हो जाएं। वास्तव में तो मुक्त ही है। किन्तु भूल की वजह से बंधन भुगत रहे है। जब कोई खुद ही न्यायाधीश, खुद ही गुनहगार, खुद ही वकील तब न्याय किसके पक्ष में होगा। स्पष्ट है कि खुद के ही पक्ष में न्याय होगा। भीतर का न्यायाधीश कहता कि आपसे भूल हुई है। फिर भीतर का ही वकील वकालत करता है कि इसमें मेरा क्या दोष? ऐसा करके खुद ही बंधन में आता है। आत्महित के लिए यह जानना आवश्यक है कि हम किसके दोष से बंधे है। दोष हमारा ही है इसलिए हम बंधे है। जगत की वास्तविकता का रहस्य ज्ञान लोगों को है ही नहीं।
जिसके कारण इस भवचक्र में भटकना पड़ता है। जब कर्मों का हिसाब-किताब बराबर हो जाता है तब न भूल रहती है न भटकाव क्योंकि लेखा-जोखा बराबर हो गया। जो दुःख भुगते, उसी की भूल और सुख का भोग करे तो उसका इनाम। ईश्वर का कानून वास्तविक कानून है। जिसकी भूल होगी उसी को पकड़ेगा। इस संसार में हम एक दूसरे को धोखा दे सकते है, झूठ बोल करके और झुठी गवाही देकर के न्यायालय से मुक्त हो सकते है। किन्तु जो वास्तविक न्यायाधीश है जो सबकुछ देख रहा है उसके न्याय से हम कैसे मुक्त हो सकते है। हमारे कर्म का दण्ड तो हमे ही भुगतना पड़ेगा, हम चाहे या न चाहे। ईश्वर के कानून में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता, वह शाश्वत कानून है। उसका सिद्धांत है जो करे सो भरे अर्थात् जो जैसा करेगा उसको वैसा भोगना पड़ेगा।
कभी-कभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी घटनाएं घट जाती है जिसका संबंध हमारे वर्तमान से नहीं होता, किन्तु फिर भी हमें भुगतना पड़ता है। हमारे पूर्वजन्म का हिसाब-किताब अभी शेष था जो उदय में आकर हमे भुगतने के लिए बाध्य कर रहा है। भुगते उसी की भूल यह एक ही सूत्र यदि मानस पटल पर अंकित कर लिया तो यह समझ जाओगे की भूल किसकी है। यदि कोई व्यक्ति पूरा जीवन यह सूत्र यथार्थता से समझकर इस्तेमाल करेगा तो उसे गुरू खोजने की आवश्यकता नहीं रहेगी और यह सूत्र ही उसे मोक्ष तक पहुँचा देगा। खुद को जो दुःख भुगतना है वह खुद का ही दोष है। अन्य किसी का दोष नहीं है। अपने किये हुए कर्मों का भुगतान स्वयं ही करना पड़ता है।
कोई दूसरा आकर उसको नहीं भुगतता। किसी का लड़का जूआ खेलता हो, कुछ भी गलत कार्य करता हो फिर भी उसके परिवार के लोग आराम से सो रहे है। केवल मां-बाप चिंतित है। क्यों? इसलिए कि उन्हीं की भूल है। इन्होंने ही पूर्वजन्म में बिगाड़ा था, इसलिए पिछले जन्म के ऐसे ऋणानुबंध बंधे है जिसके कारण उन्हें इसका भुगतान करना पड़ रहा है। लड़का तो जब खुद की भूल भुगतेगा, तब उसे अपनी भूल का दण्ड मिलेगा। जो इस कानून को समझ गया उसके लिए पूरा मोक्ष का द्वार खुला रहता है। ईश्वर का कानून और न्यायालय का कानून बिल्कुल अलग है। न्यायालय के कानून से तो बच सकते हो लेकिन ईश्वर के कानून से कभी नहीं। इसलिए यह सत्य है कि भुगते उसी की भूल है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)