(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद एवं धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं)
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अलीगढ़ । डॉ. बी आर अम्बेडकर यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ आगरा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रक्षपाल सिंह ने कहा है कि वर्ष 2017 तक यूपी में 12 सरकारी मेडिकल कालेज ही संचालित थे जिनमें से कई कॉलेजों में मानकों के अनुरूप क्वालीफाइड शिक्षक वर्ग ,पैरामेडिकल स्टाफ एवं अन्य आवश्यक बुनियादी सुविधाओं की आज भी कमियां मौजूद हैं जिन्हें दूर करने के बजाय, योगीजी सरकार ने साढ़े 4 साल में यूपी के सभी 75 जनपदों में सरकारी मेडिकल कालेज खोले जाने का लोक लुभावन निर्णय लिया है। इनमें से सिद्धार्थनगर, देवरिया, एटा, हरदोई, गाजीपुर, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, फतेहपुर और जौनपुर 9 जिलों में विगत अक्टूबर माह में लोकार्पण भी कर दिया गया है तथा 14 अन्य जनपदों में अगले वर्ष मेडिकल कालेजों को शुरू किए जाने की घोषणा की गई है।
कैसी विडंबना है कि प्रदेश में कई सरकारी मेडीकल कॉलेजों में स्थायी फैकल्टी एवं अन्य आवश्यक सुविधाएं जुटाने के स्थान पर इन कॉलेजों में अवकाश प्राप्त शिक्षकों, दूसरे शहरों के प्राइवेट प्रेक्टिशनरों से काम चलाया जा रहा है और वहां के विभिन्न बीमारियों के रोगियों को आज भी प्रदेश के लखनऊ, कानपुर,आगरा, अलीगढ़, मेरठ इलाहाबाद, बनारस, झांसी के सरकारी मेडिकल कॉलेजों अथवा दिल्ली, लखनऊ, नोएडा, आगरा, कानपुर, इलाहाबाद जैसे महानगरों के ख्यातिप्राप्त उच्च फीस बसूलने वाले प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए जाना पड़ रहा है और उन्हें मेडिकल कालेज खुलने का कोई लाभ नहीं प्राप्त हो रहा।
डॉ. सिंह ने कहा है कि प्रदेश की जनता को चिकित्सकीय सुविधाओं का लाभ सभी जनपदों में मेडिकल कालेज खोलने मात्र से नहीं मिल सकता बल्कि उन मेडिकल कालेजों में क्वालीफाइड स्थायी फैकल्टी, पैरामेडिकल स्टाफ एवं अन्य सभी बुनियादी सुविधाओं को जुटाए जाने से ही मिल सकेगा जो यूपी के घोषित 75 जनपदों के मेडिकल कालेजों में मुहैया कराना आसान नहीं होगा और प्रतीत ये भी हो रहा है कि यूपी की मेडिकल शिक्षा भी योगीजी सरकार के लोकलुभावन निर्णयों की शिकार होकर रहेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)