उच्च शिक्षा की गंभीर चुनौतियां

लेखक : डा. रक्षपालसिंह

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डा. बी.आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ आगरा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रक्षपालसिंह ने आश्चर्य एवं अफसोस जताते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान चुनौतियों के प्रति तो उदासीन बनी हुई है और प्रदेश में नए-नए विश्विद्यालयों की स्थापना किये जाने  को ही उच्च शिक्षा व्यवस्था के कल्याण का मार्ग मान बैठी है। परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा तंत्र से समाज के नजदीकी से जुड़े शिक्षाविद एवं प्रबुद्ध लोगों की उदासीनता के कारण ही उच्च शिक्षा की गंभीर चुनौतियों के समाधान की सोच भी पूरी तरह नज़रन्दाज़ हो चुकी है जो शिक्षातंत्र के लिए बेहद घातक है।

डा. सिंह ने कहा है कि एक शिक्षण संस्थान का महत्व एवं उसकी उपयोगिता का आंकलन उसकी भव्य इमारत एवं उसकी मूलभूत सुविधाओं से ही नहीं किया जा सकता बल्कि उसका आंकलन मुख्यरूप से वहां कक्षाओं में सभी विद्यार्थियों की नियमित उपस्थिति, निरंतरता के साथ वर्ष में 180 कार्यदिवसों में  होने वाला पठन- पाठन, मानकों के अनुरूप क्वालीफाइड शिक्षकों की तैनाती एवं राजाज्ञाओं के अनुसार शिक्षकों - कर्मचारियों को वेतन का वितरण, विद्यार्थियों की समय समय पर होने वाली शुचितापूर्ण नकलविहीन माहौल में सम्पन्न परीक्षाएं एवं उनके पारदर्शी मूल्यांकन की व्यवस्थाएं, वहां खेल, सांस्कृतिक आदि पाठ्येत्तर गतिविधियों में विद्यार्थियों की निरंतर भागीदारी आदि से होना चाहिए और तभी वे शिक्षण संस्थान महत्वपूर्ण बनते हैं। 

लेकिन अफसोस का विषय यह है कि 21वीं सदी में विश्विद्यालयों की सख्या में तो निरंतर वृद्धि हो रही है, लेकिन उक्त क्रियाकलापों के संदर्भ में उनमें से अधिकांश नाम बड़े और दर्शन थोड़े  तक सीमित हैं तथा वहां गुणवत्तापरक शिक्षा तो दूर की कौड़ी ही हो गई है और ऐसी विषम स्थितियों में इन चुनौतियों से निजात पाने की नितांत आवश्यकता है। अन्यथा इस स्थिति में नई शिक्षा नीति - 2020 बेमानी ही रहेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)