लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान
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कड़ी मेहनत का अर्थ है सही दिशा में पुरुषार्थ करना। मेहनत के साथ लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। लक्ष्य स्पष्ट होने से उसकी प्राप्ति हो जाती है। जब लक्ष्य ही स्पष्ट नहीं रहेगा तो किया गया प्रयास लक्ष्य को प्राप्त नहीं करा सकता और किया गया परिश्रम व्यर्थ हो जाता है। विद्यार्थी जीवन में ही मेहनत का अभ्यास शुरू कर देना चाहिये। विद्यार्थी जब विद्यालय में जाता है तभी से यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जानी चाहिए। कक्षा दस तक आते-आते विद्यार्थी जागरूक हो जाता है। उसे आज्ञा क्या बनना है। उसी अनुसार विषयों का चयन करके परिश्रम प्रारंभ कर देना चाहिए। कक्षा बारह पास करते ही विद्यार्थी के सामने अनेक विकल्प खुले रहते है। इन विकल्पों का चुनाव बहुत सावधानी से करना चाहिये। विकल्पों के साथ-साथ अपनी शक्ति और सामर्थ्य का भी अंदाजा लगा लेना चाहिए। जीवन के रणक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ है। यही से ही प्रशासनिक सेवाओं का विकल्प, चिकित्सकीय सेवाओं का विकल्प, आभियंत्रकीय, वाणिज्यिक और व्यापारिक तथा इसी प्रकार के अन्य सेवाओं के विकल्प खुले रहते है।
विद्यार्थी को कौनसा विकल्प चुनना है यह उसके सामर्थ्य पर निर्भर करता है। कुछ क्षेत्र की सेवाओं का कार्य कम परिश्रम से भी प्राप्त हो सकता है, किन्तु कुछ सेवाएं ऐसी है जिनको प्राप्त करने के लिए करो या मरो के मार्ग पर चलना पड़ता है। तभी जीवन में सफलता प्राप्त हो सकती है और जीवन खुशहाल रह सकता है। विद्यार्थी जीवन में किया गया परिश्रम जीवन भर के लिए सुख और शांति का प्रदाता होता है। जिसने अपने विद्यार्थी जीवन को व्यर्थ के कार्यों में नष्ट कर दिया उसको जीवन भर दुःख भोगना पड़ता है और दूसरों के सहारे जीवन-यापन करना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति समाज पर बोझ होकर जीवन-यापन करता है। अतः विद्यार्थी जीवन में ही ऐसा प्रयास करना चाहिए कि जीवन में सफलता प्राप्त हो और दूसरे लोगों को भी संबल दिया जा सके। द्रौपदी के स्वयंवर के समय अनेक राजे-महाराजे लक्ष्य को भेदने के लिए प्रयास किये थे, किन्तु उनका प्रयास सफल नहीं रहा। केवल अर्जुन ने अपने कड़े परिश्रम से लक्ष्य पर निशाना साध करके ऐसा शरसंधान किया कि उनको सफलता मिली।
अर्जुन की तरह ही निश्चित लक्ष्य के ऊपर जो व्यक्ति शरंसधान करता है वही जीवन क्षेत्र में सफल हो पाता है। सदैव लक्ष्य ऊँचा बनाना चाहिए। ऊँचा लक्ष्य बनाने से सफलता कही न कही अवश्य मिल जाती है। संसार में जितने भी महापुरुष हुये है उनके जीवन का मूलमंत्र कड़ी मेहनत है। जन्म से कोई महान् नहीं होता, कड़े परिश्रम और मेहनत से ही कोई व्यक्ति महान् होता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उदाहरण हम सबके सामने है। एक गरीब परिवार से निकलकर के भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री बन जाना उनके दृढ़ संकल्प शक्ति और कड़ी मेहनत का ही परिणाम है। एक मजदूर भी कड़ी मेहनत करता है। एक अधिकारी भी दिनभर परिश्रम करता है। लेकिन दोनों के जीवनयापन में महान् अंतर है। अधिकारी का जीवन बड़े ही आराम से और सुखमय ढं़ग से व्यतीत होता है। किन्तु एक मजदूर दिनभर परिश्रम करने के बाद भी अपने पूरे परिवार का पालन पोषण सही ढ़ंग से नहीं कर पाता। इसका कारण क्या है ? इसका कारण स्पष्ट है। लक्ष्य के निर्धारण करने के समय दोनों में महान् अंतर रहा होगा। इसी का परिणाम है एक तो लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो गया और दूसरा लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सका।
इसी कारण मजदूर का जीवन कष्टप्रद रहा और अधिकारी का जीवन आरामदायक। समय-समय पर कार्य की समीक्षा भी होनी चाहिए, धैर्य रखना चाहिए। भगवान् कृष्ण ने निष्काम कर्म करने का उपदेश दिया है। निष्काम भावना से किया गया कर्म मानव को कष्ट नहीं प्रदान करता है। जीवन में स्वस्थ्य प्रतियोगिता होनी चाहिए। किसी का नुकसान करके प्रतियोगिता नहीं करनी चाहिए। किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान की उन्नति का मुख्य कारण यह है कि उस प्रतिष्ठान में कार्य करने वाले सभी लोग एक टीम भावना से कार्य करते है। उस प्रतिष्ठान का मैनेजर सबको साथ लेकर के चलता है और सबको कठिन परिश्रम करने की प्रेरणा देता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो सफलता का कोई भी शार्टकट रास्ता नहीं है। खेल के क्षेत्र में देखा यह जाता है कि खिलाड़ी जीतने के लिए प्राण की बाजी लगा देते है और जो सफलता प्राप्त होती है उसे वह देश के लिए समर्पित कर देते है। किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति जो सफलता प्राप्त करता है वह सफलता उसके परिवार के लिए है ही साथ ही समाज और राष्ट्र के विकास में भी योगदान देने वाली होती है।
आजकल प्रायः यह देखा जाता है कि एक गरीब परिवार का व्यक्ति जब किसी उच्च पद पर पहुँच जाता है तो साक्षात्कार के समय वह अपने बीते दिनों की याद कर भावुक हो जाता है। उसके द्वारा दिया गया साक्षात्कार समाज के उन वर्गों के लिए प्रेरणास्रोत है जिनके पास साधन नहीं है किन्तु जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा है। ऐसे परिवार के व्यक्ति न केवल अपना भाग्य बदलते है बल्कि अपने आगे आने वाली पीढ़ी का भी बेहतर भविष्य निर्माण कर उनका मार्ग प्रशस्त करते है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मिली मंजिल मन में अच्छी सोच, कड़ी मेहनत का नतीजा है। गरीबी कभी आगे बढ़ने में बाधा नहीं बनती। दलित परिवार में पैदा होने, जन्म से गरीबी का दंस झेलने और विस्थापन की त्रासदी के बावजूद कोई अपनी मंजिल कैसे प्राप्त कर लेता है इसकी पृष्ठभूमि में यह देखा जाये तो कड़ी मेहनत ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जो सफलता की कुंजी है। आजकल के कुछ विद्यार्थी जीवन में कड़ी परिश्रम न करके हार मानकर के बैठ जाते है। यह मनोवृत्ति ठीक नहीं है। कड़ी मेहनत करने वाले लोग मिट्टी को भी सोना बना देते है। यह तो एक साधारण तथ्य है कि आज दुनिया भर में हर एक सफल व्यक्ति कुछ न कुछ कष्ट सहने के बाद ही ऊँचाइयों पर पहुँच पाया है।
यदि हम पढ़ाई मेहनत से करते है तो हमारा परीक्षा परिणाम अच्छा होता है और यदि हम पढ़ाई में आलस करते है तो परीक्षाफल बहुत बुरा होता है। सपना किसी चमत्कार से सच नहीं बनता, यह पसीना, दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से सत्य होता है। आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत सफलता की और ले जाती है। कुछ लोग भाग्य के भरोसे बैठकर परिश्रम नहीं करते। ऐसे लोगों का मानना है कि यदि भाग्य में लिखा होगा तो अवश्य प्राप्त हो जायेगा किन्तु ऐसी बात नहीं है। भाग्य भी पुरुषार्थ से बनता है। वर्तमान समय में किया गया पुरुषार्थ भाग्य बन जाता है और समय आने पर अपना परिणाम देता है। परिश्रमी व्यक्ति सफलता अवश्य प्राप्त करता है। आज का लगाया गया वृक्ष समय आने पर अवश्य फल देगा। आज का किया गया परिश्रम समय आने पर जीवन में सफलता अवश्य प्राप्त करायेगा। इसलिए कड़ी मेहनत का कोई मुकाबला नहीं है। जीवन में हर समय परिश्रम करना चाहिए। किसी कार्य को छोटा या बड़ा समझकर छोड़ नहीं देना चाहिए। सही दिशा में किया गया परिश्रम जीवन में सफलता प्रदान करने वाला होता है। समय आने पर परिश्रम का परिणाम अवश्य मिलता है। अतः कभी निराश नहीं होना चाहिए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं विचार है)