आंध्र प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मियां
लेखक : लोकपाल सेठी
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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यह लगभग तय माना जा रहा है कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को कांग्रेस में पार्टी में शीघ्र ही कोई महत्वपूर्ण ओहदा दिया जा सकेगा ताकि आगामी लोकसभा चुनावों से पूर्व वे बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की कांग्रेस पार्टी की रणनीति को समय से पूर्व कार्यरूप दे सकें। अब तक उनकी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी के अलावा पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और पार्टी महासचिव प्रियंका से बातचीत के कई दौर हो चुके हैं तथा इन नेताओं को अपनी रणनीति का अंदाज़ बता चुके है कि किस प्रकार कांग्रेस पार्टी बीजेपी को हरा सकती है। इसके लिए उनकी शर्तों में यह है कि पार्टी में शामिल कर कोई ऐसा ओहदा दे दिया जाये जिससे वे इस रणनीति को जमीन पर उतार सकें।
जानकारी के अनुसार उनका मानना है जब तक बड़े क्षेत्रीय दल उनके साथ नहीं आते तब तक कांग्रेस पार्टी अगले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को हराने की स्थिति में नहीं आ सकती। उनका कहना है आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और वाई.एस.आर. कांग्रेस के सुप्रीमो जगन मोहन रेड्डी के साथ उनके करीबी संबंध है। दक्षिण में द्रमुक इसके नेता स्टालिन की तरह वे भी बड़ी राजनीतिक हस्ती है। अगर वे कांग्रेस के साथ आ जाये तो पार्टी को बड़ा लाभ होगा। फ़िलहाल वाई एसआर बीजेपी नीत की एन.डी.ए. का हिस्सा तो नहीं लेकिन उसके साथ दोस्ताना रिश्ते रखते है और जरूरत पड़ने पर उन्होंने राज्य सभा में बीजेपी का ही साथ दिया। प्रशांत किशोर को विश्वास है कि जगन मोहन रेड्डी, जिनके वे राज्य में पिछले विधान सभा और लोकसभा चुनावों में सलाहकार रहे है को कांग्रेस के साथ ला सकते है। उधर बीजेपी, शिव सेना और अकाली दल जैसे इसके पारम्परिक सहयोगियों दवाराद्वारा साथ छोड़ दिए जाने के कारण अब वह अन्य क्षेत्रीय दलों को हर हालत में अपने साथ रखना चाहती है। उल्लेखनीय है कि 2019 के विधान सभा चुनावों में आन्ध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को कुल 175 सीटों में से 151 सीटें आई थी। इसी प्रकार 25 में से 22 लोकसभा सीटें भी राज्य में इसी पार्टी ने जीतीं थी।
उस समय बीजेपी के नेता चाहते थे की रेड्डी और उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा बन जाये। चुनावों के बाद उसे लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का पद देने की पेशकश की गयी थी। लेकिन रेड्डी ने तब यह आश्वासन दिया था कि चाहे उसे लोकसभा सदस्य को डिप्टी स्पीकर बनाया जाये अथवा नहीं फिर भी उनकी पार्टी जरूरत पड़ने पर बीजेपी के साथ खड़ी मिलेगी। ऐसा मौकों पर साफ़ देखने को मिला भी। जब से बीजेपी नेताओं को यह पता चला कि प्रशांत किशोर इस बात की कोशिश में है कि रेड्डी को कांग्रेस के साथ जोड़ लें बीजेपी के नेता भी ऐसे सभी प्रयास कर रहे है ताकि दक्षिण का यह क्षेत्रीय दल उसे साथ बना रहे। जुलाई महीने में केंद्रीय मंत्रिमडल के विस्तार से पूर्व बीजेपी के नेताओं ने जगन मोहन रेड्डी से बातचीत की थी। उनके दल को केंद्रीय मंत्रिमंडल में दो राज्य मंत्री बनाने की पेशकश की गई थी।
लेकिन रेड्डी कम से दो कैबिनेट मंत्री चाहते थे जो बीजेपी को स्वीकार नहीं था। इस दौरान में उन्होंने बीजेपी के नेताओं को फिर आश्वस्त किया था कि भले ही उनकी पार्टी मत्रिमंडल में शामिल नहीं हो उनकी पार्टी पहले की भांति उनके साथ खड़ी रहेगी। इसका के कारण यह भी बताया जाता है कि उनके पिता वाईएसआर के मुख्यमंत्री काल में जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ भ्रष्टाचार और मनी लौड्रिंग के कई मामलों में सीबीआई सहित कई अन्य एजेंसियों ने जाँच शुरू की थी जो अभी भी चल रही है। बीजेपी के साथ मधुर संबंधों के चलते ये जाँच धीमी पड़ गयी थी। उनका पता है कि अगर वे बीजेपी के साथ अपने दोस्ताना संबध तोड़कर कांग्रेस के साथ जाते है तो ये केंद्रीय एजेंसियां अपनी जांच फिर तेज़ कर देंगी। उधर कांग्रेस दक्षिण में तमिलनाडु में द्रमुक की तरह एक ओर मजबूत राजनीतिक दल को अपने साथ लाना चाहती है, इसलिए फिलाहना इसका सारा जोर आंध्र प्रदेश के इस सत्तारूढ़ दल पर ही लगा हुआ है।
लेकिन अभी तक कोई सफलता मिलती नज़र नहीं आ रही है। पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं के बैठक बुलाई थी। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के अलावा वाईएसआर और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीजू जनता दल जैसे दो सत्तारूढ़ क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नेता इसमें शामिल नहीं हुए थे। हालाँकि आखरी क्षण तक यह उम्मीद थी कि जगन मोहन रेड्डी अपने दल के किसी नेता को इस बैठक में भेजेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)