(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और राजनितिक विश्लेषक)
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कभी कोरोना को फैलने से रोकने के लिए सबसे बेहतर प्रबंधन के लिए जाने जाना वाला केरल, पिछले लगभग दो हफ्ते से अखबारों की सुर्खिया में इसलिए आया हुआ क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर को रोकने में दक्षिण का यह राज्य रोकने में बुरी तरह असफल रहा है। हालत यह बन गई हैं कि जहाँ देश के सभी राज्यों में कोरोना के मामले घट रहे थे वहां “भगवान का अपना देश” कहे जाने वाले इस प्रदेश में कोरोना के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
पिछले साल के शुरू में चीन के वुहान प्रदेश में जब पहली बार कोरोना वायरस के मामले सामने आये तो तब उसी समय भारत में जो पहला मामला पाया गया वह केरल में ही था। इस प्रदेश का एक छात्र चीन के एक संस्थान में पढ़ता था तथा छुटिया बिताने अपने घर आया था। राज्य सरकार ने इस मामला में बड़ी त्वरित कार्यवाही की तथा उसे और परिवार के अन्य सदस्यों को अलग थलग रहने को पुख्ता किया। इसके बाद राज्य सरकार ने प्रदेश में कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए जो प्रभावी कदम उठाये उसकी प्रशंसा केंद्र सरकार ने भी की।
अन्य राज्यों को भी यह सलाह दी गयी कि वे अपने यहाँ कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए केरल मॉडल अपनाये। पहली लहर में राज्य में कोरोना के मामले राष्ट्रीय स्तर से कम रहे। नवम्बर में जब वहां विधान सभा चुनाव हो रहे थे तो यह आशंका व्यक्त की गयी थी कि रैलियों और जनसभाओ में कोरोना के सभी नियम कानून तोड़कर भीड़ आ रही है इससे कोरोना तेज़ी से फैलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका एक कारण यह भी था कि उस समय देश में कोरोना की पहली लहर लगभग खत्म हो चुकी थी।
मार्च में जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो सब यही उम्मीद कर रहे थे कि दोबारा सत्ता में आई वाम सरकार अपने पिछले अनुभव के आधार पर राज्य में कोरोना के फैलाव को रोकने लिए पिछले वर्ष की तुलना में और भी अधिक प्रभावी कदम उठायेगी। ऐसा मार्च, अप्रैल और मई के महीने हुआ भी। पर अचानक नए मामलों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी होनी शुरू हो गयी। जुलाई के दूसरे सप्ताह में जहां देश के सभी राज्यों में कोरोना के नए मामलों में गिरावट दर्ज की गयी वहीं महाराष्ट्र और केरल ऐसे दो राज्य थी जहाँ इस अवधि के दौरान कोरोना के मामलों में कोई गिरावट नहीं आई। केन्द्र सरकार ने इसको लेकर दोनों राज्यों को आगाह किया।
इसका असर महाराष्ट्र पर देखा गया लेकिन केरल में नहीं। हालांकि केरल सरकार बार-बार दावा करती रही कि स्थित पूरी तरह नियंत्रण में है और कोरोना के मामलों में जल्दी ही गिरावट आयेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसी बीच केरल सरकार ने एक ऐसा निर्णय किया जिसने सबको चौंका दिया। जुलाई के तीसरे हफ्ते में सरकार ने बकरीद को देखते हुआ राज्य में कोरोना प्रतिबंधो में बड़ी ढिलाई दी। यह फैसला ऐसे समय आया जब राज्य में कोरोनो के नए मामलों में कुछ बढ़ोतरी ही रही थी।
सभी विशेषज्ञों ने यह आशंका व्यक्त थी कि यह कदम राज्य में कोरोना की स्थिति को और ख़राब कर देगा। लेकिन केरल की वाम सरकार ने दावा किया कि ऐसा कुछ नहीं होगा। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर की गई। याचिका कर्ताओं को पूरा विश्वास था कि केवल कुछ दिन पूर्व न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को सावन के महीने में होने वाली कांवड़ यात्राओं को रद्द करने का आदेश दिया था उसी प्रकार केरल में बकरीद के दौरन तीन दिन तक प्रतिबंधो में ढीलाई दिए जाने के राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर देगी। लेकिन याचिका कर्ताओं को उस समय आश्चर्य हुआ जब न्यायलय ने कोई आदेश पारित करने की बजाये की राज्य सरकार को मात्र सलाह दी गयी कि वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे। न्यायालय ने आशंका व्यक्त की थी इस ढिलाई कोरोना के मामले बढ़ेगे। लेकिन राज्य सरकार ने बार-बार कहा की एतिहात के तौर पर सभी कदम उठए जायेंगे इसलिए कोरोना के मामले बढ़ने की कोई आशंका है।
हाँ न्यायालय ने इतना जरूर कहा कि अगर कोरोना के मामले बढे इसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार रहेगी। आखिर न्यायालय की आशंका सही साबित हुयी। बकरीद से पहले जहाँ रोजाना औसतन 12,000 मामले आ रहे थे बकरीद के बाद इनमें लगातार बढ़ोतरी होनी शुरू हो गयी। यह संख्या 20,000 तक पहुँच गयी। यह उस समय हुआ कब देश के कुल नए मामले 40,000 के आस पास थे। यानि देश कुल मामलों में से आधे एकेले केरल से थे। ऐसा माना जा रहा है की वाम सरकार ने बकरीद के दौरान प्रतिबंधो में ढील देकर अपने मुस्लिम मतदातों के खुश करना चाहती थी। विधान सभा चुनावों में वामदलों को मुस्लिम मतदाओं का समर्थन मिला था। राज्य में मुस्लिम आबादी कुल आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)