(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक)
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अग्रेज़ी में एक कहावत है व्हाट इस इन दा नाम (नाम में क्या रखा है ?) लेकिन कर्नाटक की सीमा से लगते केरल के कुछ गाँव के कथित रूप से नाम बदलने को लेकर दोनों राज्यों में विवाद आरम्भ हो गया है। कर्नाटक के कुछ संगठनो का आरोप है इन गावों के सदियों पुराने कन्नड़ भाषी नामों को मलायम भाषा में बदलने के पीछे इस इलाके का इतिहास और विरासत बदलने का एक प्रयास है जिसे बर्दाशत नहीं किया जायेगा।
कर्नाटक के तटवर्ती जिले मंगलुरु की सीमा केरल के कासरगोड जिले से सटती है। ऐतिहासिक कारणों के काफी मलयाली मंगलुरु में रहते है और बड़ी संख्या में कन्नड़ भाषी लोग कासरगोड में रहते है। यह ठीक ऐसे है जैसे राजस्थान के उदयपुर के कुछ भाग गुजरात की सीमाँ से सटते है यह आज से नहीं आज़ादी की पूर्व से है। या यूँ कहिये टीपू सुल्तान काल से इस इलाके के बसावट ऐसी ही थी। कासरगोड जिले की कासरगोड और मंजेश्वर तहसीलों में बड़ी संख्या में न केवल कन्नड़ भाषी रहते है बल्कि तुलु भाशु आन्ध्र प्रदेश के लोग भी बसे हुए हैं। इन दोनों तहसीलों में कम से कम डेढ़ दर्ज़न गाँव ऐसे है जिनके नाम कन्नड़ या तुलु भाषा से आते है। इन दोनों इलाको सहित जिले के कई अन्य स्थानों पर आज भी बहुत से स्कूलों में कन्नड़ अथवा तुलु भाषा के माध्यम से पढाया जाता है।
कुछ समय पूर्व कर्नाटक बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट अथोरिटी के चेयरमैन सी सोमशेखर ने राज्य सरकार को लिखा कि कासरगोड के इन गाँवों के नाम बदलने का एक योजनाबद्ध अभियान चल रहा है। उन्होने मुख्यमत्री येद्दियुरप्पा को ज्ञापन देकर कहा कि वे इस मुद्दे को केरल के मुख्यमंत्री विजयन पनिराई के साथ उठाये क्योंकि इन मुद्दे को लेकर मंगलुरु के कई सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन आन्दोलन छेड़ने के तैयारी कर रहे है। उनके इस ज्ञापन के आधार पर येदियुरप्पा ने, बिना अधिकारिक जानकारी लिए विजयन को पत्र भी लिख दिया। उधर केरल सरकार ने तुरंत जवाब दिया कि गावों के नाम बदलने का कोई भी निर्णय किसी भी स्तर पर नहीं लिया गया है। कुछ जगह लोगों ने इन गाँव को मलायम में बोलना शुरू कर दिया है। हाँ, आज से लगभग एक दशक पूर्व एक गाँव का नाम जरूर बदला गया था। वह भी इस कारण से कि इस कन्नड़ भाषी नाम को लेकर स्थानीय लोगों और अधिकारिओं में ऐतराज़ था। इस गाँव का नाम मेअर था जो मलायम भाषा में एक गाली है। इसलिए अधिकारिक रूप से निर्णय लेकर इस गाँव का नाम शेनी कर दिया गया जो एक मलायम भाषा का शब्द है।
लेकिन पिछले कुछ सालों से कई गावों के कन्नड़ नाम स्थानीय लोगो दवारा खुद ही बदल लिए हैं तथा अब स्थानीय तौर पर इन्हें मलायम से मिलते जुलते नामों ही पुकारा जा रहा है। मंजेश्वर को बोलचाल की भाषा में मंजेश्वरम पुकारा जाता है। यहाँ तक जिले की अधिकारिक वेबसाईट और पंजीकरण संबंधी दस्तावेजों में यही नाम लिखे जाने के मामले भी सामने आये हैं। केरल सरकार का कहना है कि जब भी ऐसे मामले सामने आये तो सरकार की ओर से निदेश दिया गया कि दस्तावेजों में केवल अधिकारिक नाम ही लिखा जाए।
धीरे-धीरे यह बात सामने आई कि केवल मंजेश्वर ही नहीं बल्कि इन दो तहसीलों के डेढ़ दर्जन गांवों के नाम भी कुछ सरकारी कागजों और बोलचाल की भाषा में मलयाली हो गए हैं। सड़कों और दुकानों में बहुत जगह ये मलयाली नाम ही लिखे नज़र आते हैं।
सोमशेखर का कहना है कि नामों का यह परिवर्तन कुछ संगठनों की शह पर चल रहा है। ये संगठन इस बात की मांग भी कर रहे है की यहाँ कन्नड़ और तुलु माध्यम के स्कूलों में मलायम भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए। ये संगठन इन मुद्दों के लेकर काफी सक्रिय हैं और सरकार पर इसको लेकर लगातार दवाब बना रहे है। सोमशेखर का कहना है कि अगर इस मुहीम को रोका नहीं गया तो मंगलुरु इलाके में इसको लेकर आन्दोलन आरभ हो सकता है। उधर केरल सरकार ने साफ कर दिया है कि इस इलाके में कन्नड़ और तुलु भाषा वाले स्कूलों को किसी भी हालत में बंद नहीं किया जायेगा। उनकी सरकार की इस मुद्दे पर स्थिति और नीति बड़ी साफ़ है इसलिए कर्नाटक के संगठनों को आश्वस्त रहना चाहिए।