स्मृति नाद
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फर्राटा दौड़ाक मिल्खा सिंह का जाना, धरती से उठकर आसमानों को छूने जैसा है। वे. पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशन्स के चलते जून 18 को जाते रहे। इसके पहले उनकी पत्नी भारत की वालीबॉल टीम की पूर्व कप्तान का भी कोरोना से ही निधन हो गया था। मिल्खा सिंह के खाते में सबसे बड़ी उपलब्धि पद्मश्री आई मगर, उन्होंने कुल 80 में से 77 मुकाबले जीते। यह एथलीट चाहता था कि आगामी टोक्यो ओलम्पिक में कोई भारतीय एथलीट सोने का तमगा हासिल करें। मजेदार बात यह थी कि एथेलेटिक्स में आने से पहले मिल्खा को एथेलेटिक्स की स्पेलिंग भी नही आती थी। उन्होंने अपने करियर में 1958 के एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ में सोना जीता। इसी साल के राष्ट्रमंडल खेलों में उन्हें गोल्ड से ही नवाजा गया। सोने की यह रथयात्रा 1962 के एशियाई खेलों तक चली, लेकिन रोम ओलम्पिक में स्वर्ण लेने का सपना वे अपनी आंखों में जलता हुआ ले गए। इसीलिए हिमा दास से उन्हें बहुत अपेक्षाएं थी। उनका मानना था कि यह लड़की उनके सपना पूरा कर देगी। इसीलिए हिमा को वे अक्सर टिप्स दिया करते थे।
वे अपने साथ यह खलिश भी ले गए कि क्रिकेट और हॉकी जैसी सुविधाएं एथलेटिक्स के लिए क्यो नही जुताई जाती। उनके जीवन और करियर पर एक फ़िल्म बनी है भाग मिल्खा भाग, मगर वे इससे भी पूरी तरह संतुष्ट नही थे। लेकिन कहा यह भी जाता है, कि दरअसल इस फ़िल्म में अपने संघर्षों के दिनों का पिक्चराइजेशन देखकर उन्हें पत्नी निर्मल के साथ रोना आ गया था। जान लें, कि वे बचते बचाते लाहौर से निकलकर जब दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे तब कूड़े करकट में से बीनकर उन्हें थोड़ा बहुत पेट भरना पड़ा था। इतना ही नहीं,फिर कभी उन्हें सिर्फ़ एक गिलास दूध के लिए सेना में एक मील दौड़ना पड़ा था। इस अंत तक फिट रहे दौड़ाक ने भी सेना की नोकरी की। इन्हें फ्लाइंग सिख का तमगा दिए जाने का किस्सा बहुत लोगों को तक नहीं पहुँचा होगा। दरअसल,1965 की जंग में हारे पाकिस्तान की सेना के मेजर अब्दुल खलिक भी बंदी बनाकर मेरठ की जेल में रखे गए थे । मेजर अब्दुल खलिक चूँकि अपने वतन के बड़े धावक थे, सो मिल्खा सिंह से मिलना चाहते थे। दोनों को मिलवाया गया। कहते हैं, इसी मुलाकात के चलतें मेजर अब्दुल को समय से पहले मुक्त कर दिया गया।
बाद में, पाकिस्तान के तत्कालीन फील्ड मार्शल जनरल अयूब खान ने मिल्खा को लाहौर बुलाकर मेजर अब्दुल खलिक के साथ प्रतियोगिता रखवा दी। स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। दर्शक हवाओं के सिर पर सवार होकर ज़िंदाबाद खलिक के आसमान फोड़ू नारे लगा रहे थे। दौड़ 200 मीटर की थी और मिल्खा ने आखिरी लाइन क्रॉस कर ही दी। इधर,खलिक को कुछ सुध बुध ही नहीं थी। वे जमीन पर उल्टे गिर गए तभी मिल्खा उनके पास जाकर बोले खेल में हार जीत, तो चलती रहती है। जनरल अयूब खान चीफ गैस्ट थे। उन्होंने मिल्खा सिंह को शाबाशी दी और कहा आज से तुम्हारा नाम हुआ उड़न सिख। मिल्खा को यह चुभन आखिर तक रही, कि एक ज़रा सी भूल ने उन्हें रोम ओलिम्पिक में गोल्ड से दूर रखा। जब मिल्खा सिंह को पहली जीत पर शाबाशी देने के लिए बुलाया और पूछा तोहफे में क्या चाहते हो, मिल्खा ने बच्चे की तरह कह दिया, पूरे देश मे कल के दिन के अवकाश की घोषणा कर दी दीजिए। नेहरुजी ने तत्काल आवश्यक निर्देश दे दिए। वे कहते रहे कि सेना के कोच ने उन्हें शानदार ट्रेंनिग दी। मिल्खा सिंह को 1959 में पदम् अवार्ड से सम्मनित किया था।
इसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया था, लेकिन हमारे मूर्ख खेल नीति नियंताओं का आप कुछ नहीं कर सकते। मिल्खा को 2001 में अर्जुन सम्मान से नवाजा जाना था, लेकिन मिल्खा ने इसे स्वीकारने से मना कर दिया। हो सकता है, उन्होंने ऐसा इसलिए किया हो,कि अर्जुन अवार्ड छोटा होता है। उन पर बनी फिल्म भाग मिल्खा भाग में यूँ, फरहान अख़्तर के साथ सोनम कपूर हैं, पर ऑस्ट्रेलिया की एक अभअदाकारा और थी। उसके साथ फरहान के एक अंतरंग दृश्य को लेकर मीडिया को मसाला मिल गया था। बावजूद इसके अपने बेटे फरहान अख़्तर की एक्टिंग देखकर, कहते हैं बी. टाउन की हस्ती जावेद अख़्तर फफक फफक रोए थे। यह खबर भी कम लोगोँ को मालूम होगी, कि जावेद अख़्तर ने, भी कभी मुम्बई की फुटपाथ पर भूखे पेट सोने की आदत डाल ली थी। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह को नमन और सेल्यूट दर सेल्यूट। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखक : नवीन जैन
वरिष्ठ पत्रकार, इंदौर