पुत्र मोह या उसकी गलत सलाह में आकर कई बार राजा या रानी प्रजा के हितों के खिलाफ निर्णय ले बैठते है। इस तरह का ही प्रमाण था वर्ष 1975 के जून महीने की 25 और 26 तारीख की मध्यरात्रि। इस घड़ी से देश मे तकरीबन 19 महीने तक का आपातकाल लगा दिया गया था। आज भी कहा जाता है कि इसे लागू करने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी अंत तक कशमकश में थी, मगर आखिरकार वे अपने कनिष्ठ पुत्र स्वर्गीय संजय गांधी और चर्चित योग गुरु स्वर्गीय घीरेन्द्र बह्मचारी की जिद के आगे कुछ न कर सकी। आपातकाल लगाने का यह फैसला इंदिरा जी के लिए इतना आत्मघाती सिद्ध हुआ कि उन्हें 1977 के लोकसभा चुनावो में सत्ता गंवानी पड़ी। मतदाताओं ने इन्ही इंदिरा जी को चुनावों में सिर माथे बैठा रखा था और इन्हें लौह महिला तक कहा जाने लगा था, क्योकि 1971 की भारत पाक जंग में भारत न सिर्फ जीता, बल्कि लगे हाथ पाकिस्तान के दो टुकड़े करवा दिए गए। आज जो बंगलादेश है, उसका जन्म उक्त युद्ध की गोद में से ही हुआ था।
जानकार बताते हैं कि इन्दिराजी को उक्त युद्ध के बाद यस मैडम अफसरान जो बेसिर पैर के अपडेट्स दे रहे थे, कि देश में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। ऐसा स्व. संजय ब्रिगेड के कहने पर हो रहा था। स्वर्गीय संजय ब्रिगेड में स्व. विद्याचरण शुक्ला,स्व. अरुण नेहरू जैसे लोगों का जमावड़ा हुआ करता था। इसी दौरान दून स्कूल में संजय और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के साथी कमलनाथ भी थे। उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कमलनाथ को इन्दिराजी अपना तीसरा पुत्र तक मानने लगी थीं। सनद रहे, कि यही कमलनाथ करीब सवा साल पहले तक मध्यप्रदेश के सीएम और कई वर्ष पहले कांग्रेस के केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहे। कहा जाता रहा है कि इसी बीच इन्दिराजी की सत्ता पर पकड़ ढीली होने, लगी और सत्ता के सभी सूत्र संजय गांधी ने अपने हाथों में ले लिए। आवश्यक वस्तुओं के दामों में आग लगी हुई थी। जमाखोरी की वजह से भी महंगाई ने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए थे। ऐसे में भ्रष्टाचार को कैसे रोका जा सकता था। जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं था, इन सभी बातों के बावजूद इन्दिराजी अपने लोगों से सलाह मशविरा करने को तैयार नहीं थी।
उन्होंने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और, नामी वकील स्व. सिद्धार्थ शंकर रे को नई दिल्ली तलब किया। बताया जाता है कि रे ने तमाम कानूनी पेचीदगियों से उन्हें अवगत कराया। महंगाई, और भ्र्ष्टाचार की असलियत से तो इन्दिराजी व्यतिथ होने लगी थी, इसी बीच गुजरात के एक कॉलेज में इंजीनियरिंग के छात्रों की हॉस्टेल फ़ीस में इज़ाफा कर दिया गया। तब वहाँ कांग्रेस के चिमनभाई पटेल सरकार चला रहे थे। विरोध में छात्र नेता मनीष जानी ने नव निर्माण समिति बना दी। बेरोजगारी की समस्या से भी समाज बेहाल था। लोग नैराश्य में जा रहे थे। इसी दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, अंग्रेजों के खिलाफ सशस्र विद्रोह में शामिल भारत रत्न, लोकनायक, सर्वोदयी नेता, गांधीजी के अनुयायी, इन्दिराजी को लाड़ से इंदू सम्बोधन देने वाले स्व.जयप्रकाश नारायण को लगने लगा कि हालात फिर 1942 के जैसे हो रहे हैं। उधर, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रायबरेली से इन्दिराजी का चुनाव रद्द घोषित कर दिया। इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान हुई एक घटना से इन्दिरा गाँधी का आत्म सम्मान बोध छलनी छलनी हो गया था। तब की मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो कहना पड़ेगा कि इन्दिराजी को पूरी सुनवाई के दौरान न सिर्फ़ तकरीबन पाँच घण्टे तक कटघरे में कुर्सी पर बैठाए रखा गया लेकिन चूँकि वे प्रधानमंत्री होते हुए भी रायबरेली चुनाव में भ्रष्टाचार की आरोपी थी, इसलिए उनके सम्मान में कोर्ट रूम में उपस्थित लगभग 150 लोगों में से एक व्यक्ति उनके सम्मान में न तो उठा, न ही उनके रवाना होने पर कोर्ट हॉल में बैठे लोगों में कोई हरकत हुई।
बताते हैं कि यह मामला इतना संवेदनशील था कि इन्दिराजी के चुनाव को रद्द करने का फैसला सम्बंधित जस्टिस को अंडरग्राउंड होकर लिखना पड़ा। कहा जाता है कि इंदिराजी को जल्दी ही अपनी गलती का अहसास होने लगा था। वे पवनार जाकर विनोबा भावे से जाकर मिली। चूंकि जेपी को स्वास्थ्यगत कारणों से जेल से रिहा कर दिया गया था। इसलिए उन्हें भी विनोबा ने पवनार बुला लिया। जेपी और इंदिराजी की बात करवाई गई। बताते है कि इंदिराजी तो आपातकाल हटाने को तैयार हो गई थी मगर जेपी ने अपने पर पड़ सकने वाली लाठी को आत्मसम्मान से जोड़ लिया था। दरअसल, गुजरात की तरह बिहार की राजधानी पटना की सड़कों पर भी तत्कालीन छात्र नेता लालूप्रसाद यादव, सुशील कुमार मोदी आदि जेपी के नेतृत्व में रैली निकाल रहे थे। इसी बीच लाठीचार्ज हो गया एक दो लाठियां जेपी के सिर पर पढ़ते पढ़ते बची क्योकि उन्हें जनसंघ के नानाजी देशमुख ने हाथों में झेल लिया। उसके बाद तो आन्दोलन उग्र होना ही था।
उस वक्त बिहार में अबदुल गफूर कांग्रेस के सीएम थे। जेपी के अलावा मोरारजी देसाई, चन्द्रशेखर, अटलजी और आडवाणीजी जैसे बड़े विरोधी नेता, रजत शर्मा, कुलदीप नैयर जैसे पत्रकार जेलों में थे। आपातकाल के विरोधी आम लोगोँ को भी नहीं बख्शा गया। कहते हैं, तत्कालीन राष्ट्रपति स्व. फखरुद्दीन अली अहमद को नींद में से उठाकर इमरजेंसी के कागजात पर दस्तख करवाए गए। इन्दिराजी के 20 सूत्री कार्यक्रम में संजय ने अपने पाँच सूत्र और जिसमें दिल्ली स्थित तुर्कमान गेट बस्ती में जमकर अत्याचार हुए। सबसे खतरनाक बात यह बताई जाती है, कि स्व. संजय गाँधी आपातकाल 10 साल तक लगाए जाने के हक़ में थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
वरिष्ठ पत्रकार, इंदौर