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गाज़ियाबाद। आज हम भले पाश्चात्य सभ्यता के वशीभूत हो फादर्स डे पर खुशियां मनायें लेकिन पिता के डंडे का प्रभाव इतना अहम था कि वह हमें सांसारिक, सामाजिक, व्यावहारिक और पारिवारिक दायित्वों का पूरी तरह अहसास करा देता था। इस तरह हमारे लिए रोज ही पितृ दिवस था और आज भी है। सच तो यह है कि आज भी वह अहसास उनके होने का बोध कराता है। यही हमारी थाती है।
जहां की खुशी का अहसास हमें तब होता है ,
जब हमारे सिर पर पिता का हाथ होता है।।
दुनिया तो कुछ भी कहती रहती है मेरे यार ,
सारी जिंदगी पिता का नाम ही साथ रहता है।।
ज्ञानेन्द्र रावत