काॅन्क्लेव में भारत और अन्य देशों के 800 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया
21वीं सदी में सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने के लिए जरूरी है
‘मैनेजिंग पोस्ट कोविड डेवलपमेंट ट्रांजिशन्स’ विषय पर आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी के नेशनल काॅन्क्लेव-2021 में विशेषज्ञों के बीच विचार-विमर्श
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जयपुर। सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित एक वैश्विक केंद्र आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने ‘मैनेजिंग पोस्ट कोविड डेवलपमेंट ट्रांजिशन्स- चैलेंजेस एंड अपाॅच्र्युनिटीज फाॅर मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स’ विषय पर नेशनल काॅन्क्लेव-2021 का आयोजन किया। इस काॅन्क्लेव में भारत और अन्य देशों के 800 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। अनेक विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा किए और कहा कि महामारी से बुरी तरह प्रभावित अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए निजीकरण अभियान आज के दौर की सबसे बड़ी जरूरत है।
आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंट डॉ. पी. आर. सोडानी ने कहा, मैं इस वेबिनार का हिस्सा बनने पर अपने आप को खुशकिस्मत समझता हूं, क्यांकि यहां मुझे देश के विकास वैज्ञानिकों के ज्ञान और अनुभव के बारे में जानने का अवसर मिला। मेरा मानना है कि विकास क्षेत्र का अंतिम उद्देश्य सभी प्रमुख हितधारकों यानी समाज के लाभ पर केंद्रित होना चाहिए। यह एक महान अवसर है जहां बहुत प्रसिद्ध शिक्षाविद और विशेषज्ञ अपनी विचारधारा और अनुभव साझा करने के लिए एक ही मंच पर एकत्र हुए हैं। उनका मानना है कि उनमें से प्रत्येक एक दूसरे से सीख सकते हैं और यह केवल समाज के लिए फायदेमंद है। हम राज्य और केंद्र सरकार के विकास भागीदारों के साथ काम कर रहे हैं। मैं यहां यह बताना चाहता हूं कि आईआईएचएमआर में हम जो कुछ भी करते हैं, उसके साथ शोध के परिणाम दरअसल हमारे समुदाय की बेहतरी के लिए ही उपयोगी साबित होते हैं।
उन्होंने आगे कहा, हम समुदाय के साथ और समुदाय के लिए बहुत गहराई से काम कर रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है कि केंद्र या राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रोजेक्ट्स और रिसर्च का फायदा समग्र रूप से समाज को मिलना चाहिए। जब भी मैं अपने भविष्य के वैज्ञानिकों को पढ़ाता हूं तो मुझे लगता है कि वे हमारे भविष्य के समाज के लिहाज से प्रमुख हितधारक हैं। हमें लगता है कि आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी से उन्हें जो भी ज्ञान प्राप्त होता है, वह भविष्य में उनके लिए लाभप्रद होना चाहिए। हम हमेशा अपने छात्रों को उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें लगता है कि उन्होंने जो शिक्षा प्राप्त की है वह उनके लिए बहुत उपयोगी है और वे समग्र रूप से समाज को लाभ पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम हैं। सोसाइटी के विकास को ध्यान में रखते हुए आईआईएचएमआर ने डेवलपमेंट मैनेजमेंट में एमबीए पाठ्यक्रम लॉन्च किया है, जो देश में अपनी तरह का पहला कोर्स है। दरअसल हमारा मानना है कि आने वाले समय में देश को आम राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में कुशल और विशेषज्ञ डेवलपमेंट प्रोफेशनल्स की जरूरत है।
डॉ. गौतम साधु, प्रोफेसर, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने इस काॅन्क्लेव का संचालन किया और कहा, ‘‘कोविड- 19 ने देश में संस्थानों की जिम्मेदारी को अप्रत्यक्ष सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव के साथ सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित किया है। आर्थिक मंदी ने हर इंसान के काम और सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बहुत प्रभावित किया है। विशेषज्ञों को साथ लेकर यह काॅन्क्लेव आयोजित करने के पीछे हमारा उद्देश्य यह समझना है कि सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए नई पीढ़ी किस तरह अपनी क्षमताओं को और विकसित करती है और किस तरह 21 वीं सदी की नई आवश्यकताओं के लिए वह खुद को तैयार करती है। यह सभी पेशेवरों के लिए एक चुनौती है चाहे वह विकास क्षेत्र या स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र, आजीविका, परामर्श, आदि से हो। यह समझने के लिए कि भविष्य के विकास का मसौदा कैसे तैयार किया जाए और कैसे प्रबंधन पेशेवर अपरिहार्य चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो सकते हैं, इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए हम इस कठिन समय में विशेषज्ञों की राय के अनुरूप आगे बढ़ना चाहते हैं।’’
प्रोफेसर और पाठ्यक्रम निदेशक (आरएम) एक्सआईएसएस, रांची डॉ. हिमाद्री सिन्हा ने कोविड के पहले और दूसरे चरण के दौरान विकास क्षेत्र की ओर से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं की चर्चा की। अपने विश्लेषण में उन्होंने तुर्की जैसे देश में कोविड- 19 के 15 महीनों के भीतर पर्यटन क्षेत्र को फिर से खोलने की चर्चा की और यह जानकारी भी दी कि कैसे दक्षिण कोरिया ने कम समय में कोविड- 19 को नियंत्रित किया। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि कैसे निजीकरण पूरी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर सकता है।
डूबती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए डॉ. हिमाद्री सिन्हा ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के साथ-साथ निजीकरण और डिजिटल विभाजन को कम करने पर भी ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया। उन्होंने चुनौतियों और उनके समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, भारत का मानव विकास सूचकांक 189 देशों में 131 है और हम 2020 में एसडीजी में 115वें स्थान पर हैं, जबकि 2019 में यह 113 था। दरअसल आज अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिहाज से निजीकरण अभियान चलाया जाना चाहिए। इस दिशा में विकास क्षेत्र के पेशेवर कृषि क्षेत्र सहित असंगठित क्षेत्रों के पुनरुद्धार को सुविधाजनक बनाने में मदद कर सकते हैं। ये पेशेवर सरकार की गैर-सरकारी संगठन विरोधी मानसिकता का भी विरोध कर सकते हैं और एचडीआई और एसडीजी लक्ष्य में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं। 2021 तक 70 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण करने के लिए, विकास पेशेवर कोविड- 19 से संबंधित एसबीसीसी और टीकाकरण अभियान को बढ़ावा देने और ब्लैक फंगस के बारे में जागरूकता पैदा करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। डिजिटल विभाजन को दूर करने के लिए, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की क्षमता निर्माण और लैंगिक समानता को सशक्त बनाना होगा और साथ ही, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध की आवाज की रक्षा के लिए, विकास पेशेवरों को आगे आना होगा। आज इस बात की भी आवश्यकता है कि संस्थाओं के क्षरण को रोका जाए और इस दिशा में भी शिक्षाविदों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
सेव द चिल्ड्रन इंडिया के सीईओ सुदर्शन सुची ने कहा, कोविड-19 ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कई चुनौतियां पैदा की हैं। हालाँकि, इसने संगठनों को प्रक्रियाओं को सरल और प्रभावी रखने के लिए बहुत अच्छा सबक सिखाया है क्योंकि इनमें से अधिकांश महामारी के दौरान ढह गए थे। विकास क्षेत्र से संबंधित लोगों के योगदान के कारण ही आज जीवन सामान्य रूप से चलने लगा है, और इस स्थिति को हासिल करने के लिए इन लोगांे ने ही अपनी जान जोखिम में डाली है। यह महत्वपूर्ण है कि लोग समझें कि विकास क्षेत्र के पेशेवरों ने अपनी पसंद से इस क्षेत्र में प्रवेश किया है। इन पेशेवरों ने लोगों को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियों से निपटने में मदद की है जो एक सामाजिक कलंक है। एक ऐसे समाज में जहां लोग काॅमन बाथरूम का उपयोग करते हैं, 6बाई8 कमरों की जगह साझा करते हैं और काॅमन यूटिलिटीज को साझा करते हैं, ऐसे समाज में यदि 8 लोगों के परिवार में से कोई भी सदस्य कोविड से पीड़ित हो जाता है, तो कैसे हालात होंगे, इसकी कल्पना की जा सकती है। यह विकास क्षेत्र और सीएसआर या एनजीओ के पेशेवर थे जो इन लोगों की मदद करने और समुदायों में निरंतरता बनाए रखने के लिए जागरूकता पैदा करने के मकसद के साथ आगे आए।
सुची ने आगे इस बात पर जोर दिया कि, समुदायों के भीतर क्षमता निर्माण करके और सरकारों को इन योजनाओं में शामिल करते हुए विधियों, प्रणालियों और प्रक्रियाओं को विकसित करना महत्वपूर्ण है। महामारी के दौरान नए तकनीकी शब्दों को सीखने की एक पूरी प्रक्रिया विकसित हुई है और पहली बार लोगांे ने ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, रेमडेविसर आदि नए शब्दजाल बुने। इस नई शब्दावली को लेकर भी लोगांे के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए प्रयास किए गए। अब हमें सबसे अधिक प्रत्याशित तीसरी लहर के लिए तैयार रहना चाहिए जो ग्रामीण क्षेत्रों में आने की आशंका है।
आईआईएम संबलपुर के पब्लिक पाॅलिसी एंड स्ट्रेटेजी के संकाय सदस्य डॉ. दीप्तिरंजन महापात्रा ने आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित अनिश्चितताओं और इसके प्रबंधन प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, सप्लाई चेन वास्तव में किसी भी संगठन के लिए मेरूदंड का काम करती है। महामारी के बाद संगठनों को कम से कम उन व्यवधानों की अपेक्षा करनी होगी जो प्राकृतिक हैं, जिनमें भूकंप, बाढ़, साइबर हमले और अकाल चार साल में कम से कम एक बार हो सकते हैं। इस दौर में ज्यादातर ऐसे उद्योग महामारी से प्रभावित हुए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं। यह स्थिति विकास क्षेत्र के लोगों को समय की आवश्यकता के अनुरूप रणनीति बनाने और पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करते हुए पूरी प्रणाली को नया रूप देती है। हालांकि इस व्यवधान ने बहुत मुश्किलें पैदा कर दी हैं, ऐसे में हम अर्थव्यवस्था में एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली के कारण इसे दूर करने में सक्षम हो सकते हैं।’’
डीएनआर फाउंडेशन के चेयरमैन और फिक्की के पूर्व सीएसआर हैड डॉ. के के उपाध्याय ने आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी में चर्चा का हिस्सा बनने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘सीएसआर किसी भी व्यवसाय का दिल है। यह कर्मचारियों को उत्पादक, स्वस्थ और परोपकारी बनाने के लिए बनाया गया था। कंपनी अधिनियम के तहत 17000 कंपनियों को 2013 में सीएसआर पर 2 प्रतिशत निवेश करना पड़ा। इससे 2013 में सीएसआर में 13,327 करोड रुपये का योगदान हुआ। विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। पिछला साल बहुत ही महत्वपूर्ण और घटनापूर्ण रहा है। 2019 में कानून के मुताबिक सीएसआर अनिवार्य हो गया था।
कोविड के दौरान सीएसआर मानदंडों में कई संशोधन हुए हैं। इन संशोधनों के बाद सीएसआर फंड का उपयोग अस्थायी या स्थायी अस्पतालों के निर्माण के लिए किया जा सकता है। सीएसआर विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न गतिविधियों और विकास में योगदान देने के लिए रीढ़ की हड्डी रहा है। समाज क्या चाहता है और क्या उम्मीद कर सकता है - इन स्थितियों के बीच सीएसआर सेतु का काम करता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में चुनौतियों से पार पाने के लिए निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत और सरकारी क्षेत्र को एक साथ आना चाहिए।
कम्युनिकेशन 4 डेवलपमेंट स्पेशलिस्ट, यूनिसेफ एमपी श्री संजय सिंह ने कहा, ‘‘कोविड -19 संकट के दौरान अपनाई गई संचार तकनीक बहुत जरूरी है। हमें कोविड-19 के दौरान सामने आने वाली संचार संबंधी चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए। इस दौरान जिन तीन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा, वे हैं- सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संबंधी संचार चुनौतियां, टीके से संबंधित मुद्दे और संचार से संबंधित परिचालन के मुद्दे। सोशल प्लेटफॉर्म को वैक्सीन के संबंध में सभी सवालों के स्पष्ट जवाब देने चाहिए जहां उनमें से ज्यादातर सवालों के कोई जवाब नहीं मिलते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों में मोबाइल ऐप के माध्यम से वैक्सीन के लिए पंजीकरण एक मुश्किल काम है इसलिए सरकार ने नामांकन के आसान तरीके बनाए हैं।
एक नकारात्मक संचार विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों के क्षेत्रों में जबरदस्त बाधा उत्पन्न कर सकता है। टीकाकरण के लिए सामाजिक जुड़ाव और सहकर्मी से सहकर्मी संचार गायब लगता है। लोगों के साथ संवाद करने का मुख्य क्षेत्र लोगों के व्यवहार को देखकर रणनीति बनाना था। सरकार द्वारा निरंतर संचार और जागरूकता शिविरों के माध्यम से लोगों को लगातार बदलते दिशा-निर्देशों से अवगत कराया गया। आज जरूरत इस बात की है कि संचार के चैनल को चैनलाइज किया जाना चाहिए। सामाजिक मंचों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य के सामाजिक कलंक को कम करने के लिए संचार चैनलों का उपयोग किया गया है और अब यह कहा जा सकता है कि संकट के दौरमें संचार को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया गया है।
प्रोफेसर राहुल घई, डीन - एसडीएस, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने अपनी समापन टिप्पणी में जन-केंद्रित विकास एजेंडा के महत्व को दोहराया और कहा, आम लोगों की बेहतरी के लिए अधिक मजबूत नागरिक जुड़ाव वर्तमान दौर की सबसे बड़ी जरूरत है। साथ ही, 21वीं सदी की आगामी चुनौतियों से निपटने के लिए निजी संस्थानों और उद्योग के साथ बेहतर भागीदारी जरूरी है, तभी हम सतत विकास के लक्ष्यों को आसानी से हासिल कर पाएंगे।
विशेषज्ञों के विचार व्यक्त करने के बाद इस नेशनल काॅन्क्लेव में सवाल-जवाब का सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने अपने सवालों के जवाब तलाशने का प्रयास किया।