कोरोना का ईलाज, प्राइवेट अस्पताल : एक निजी अनुभव

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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अप्रैल के आखरी हफ्ते मुझे और मेरी पत्नी को कोरोना से बचाव के दोनों टीके लग चुके थे। मैं 79 वर्ष का हूँ और पत्नी 75 वर्ष की। इस ऊमर की वज़ह से हमें टीका लगवाने में प्राथमिकता मिली। दोनों टीके लगने के बाद हम आश्वस्त थे कि कोरोना बचने के टीकों के कवच के चलते हम दोनों बुजुर्ग अब पूरी तरह से सुरक्षित है। 

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दूसरा टीका लगने के दूसरे दिन मेरे को हल्का सा बुखार हुआ। टीका लगवाने गए जिस अस्पताल गए थे वहां के डॉक्टर ने आगाह किया था की टीका लगने के बाद हल्का बुखार हो सकता है इसलिए घबराने की बात नहीं है बस तीन दिन तक दिन में तीन बार पारासीटामोल खा लेना सब ठीक हो जाएगा। जब तीन दिन तक बुखार नहीं गया तो डॉक्टर से सलाह मशविरा किया। उनका कहना था की कई  मामलों दोनों टीके लगवाने के बाद भी कोरोना हो जाता है। इसके साथ ही उन्होंने पांच दिन की दवा लिख दी तथा हिदायत दी मैं घर एक कमरे में 14 दिन तक अलग-थलग रहूँ। चूँकि अगर मेरे को कोरोना पॉजिटिव है तो परिवार के अन्य किसी सदस्य को भी संकर्मित कर सकता है। चौथे दिन डॉक्टर ने कोरोना की जाँच करवाने को कहा। अगले दिन  जब रिपोर्ट मिली तो मेरे को कोरोना पॉजिटिव पाया गया। 

मेरे लिए यह एक शॉक जैसा था। शाम होते होते मेरी साँस उखड़ने लगी, शरीर कांपने लगा। डॉक्टर ने मेरी ढलती ऊमर देखते हुए तुरंत अस्पताल में दाखिल होने सलाह थी। उन दिनों बंगलुरु, जहाँ हम रहा रहे है, में अस्पताल कोरोना के मरीजों से  भरे पड़े थे। न तो कोई बेड और न ही ऑक्सीजन उपलब्ध थी। खैर एक छोटे प्राइवेट अस्पताल में बेड मिल गया। रात को 8 बजे वहां पहुंचा। सबसे पहले तो यह कहा गया कि कम से कम 50 हज़ार रूपये अग्रिम जमा करवाया जाये फिर उपचार शुरू होगा। ओन लाइन पर यह रकम दी गयी। एक हाल में जहाँ पहले से ही कोरोना के लगभग एक दर्ज़न मरीज़ इलाज करवा रहे थे, मेरे को भी एक बेड दे दिया गया। मेरा ऑक्सीजन लेवल सामान्य था फिर भी ऑक्सीजन दी जाने लगी। फिर एक-एक करके कई सारे इंजेक्शन दिये गए। अगले दिन खून आदि की जाँच हुयी। सीटी स्कैन भी किया गया। इसका मोटा बिल अलग से देना पड़ा। शाम को डॉक्टर ने कहाँ सब ठीक है लेकिन कम से कम पांच दिन अस्पताल में रहना ही होगा। अगले पांच दिनों में मेरे को वही सब दवाइयां दी गयी जो मैं अस्पताल में भरती होने से पहले ले रहा था। डॉक्टर को बताया तो जवाब मिला “हम अपने तरीके से इलाज करते हैं”। पांचवे दिन जब छुट्टी मिलने से पहले  डेढ़ लाख का बिल थमा दिया गया। 

इसी बीच पत्नी के टेस्ट की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ गई। उनको एक अन्य अस्पताल में दाखिल करवाया गया, जो विश्वस्तर का था। उन्हें दाखिल होने से पहले ही डेढ़ लाख रूपये जमा करवाने के लिए कहा गया। कोरोनो के मरीजों को अस्पताल में दाखिल होने के बाद घर का कोई सदस्य उनके साथ नहीं रहा सकता। यानि मरीज पूरी तरह डॉक्टरों और नर्सो पर निर्भर है। जैसी कि आशंका थी पाचवे दिन जब पत्नी को छुट्टी मिली तो उनका बिल ढाई लाख रूपये था, मजे के बात यह है कि हम दोनों को दोनों टीके लग चुके थे इसलिए डॉक्टरों ने बताया की हमारा कोरोना हलके प्रकार था। लेकिन इलाज तो फिर भी पूरा ही करना होगा। 

सरकारी अस्पताल में जब हलके कोरोना का मरीज़ जाता है तो डॉक्टर उसे दवाई देकर घर में 14 दिन के एकांतवास की सलाह देते है। उनका कहना होता है  अस्पताल में केवल गंभीर मरीजों को ही भरती किया जाता है। उधर प्राइवेट अस्पताल वाले तो जैसे मुर्गा फसने के इंतजार ही कर रहे होते है। इलाज वही हो रहा होता जो सरकारी अस्पताल में होता है लेकिन मरीज़ के परिजनों के हाथ लाखों का बिल थमा दिया जाता है जो खुले आम लूट से कम नहीं। (लेखक का अपना निजी अनुभव है)