ईद उत्स‍व और खुशियां लेकर आती है

ईद पर विशेष

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ईद के मायने खुशी से होते हैं। ईद उल फितर जिसे हम लोग मीठी ईद भी कहते हैं। इस ईद का महत्व बहुत बड़ा बताया गया है। फितर के मायने अपने शरीर का सदका ए फितर गरीब बेसहाराओं में बांटना, यानी घर में जितने लोग उन सभी पर यह लागू होता है। यहाँ तक कि यदि ईद की नमाज़ के पहले जो बच्चा-बच्ची जन्मा हो उसका भी सदका ए फितर देना होता है। इस ईद को यह प्रति व्यक्ति ₹45 होता है या इसके बराबर अनाज, आटा या चावल मुस्तहिक लोगों को दिया जाए।

ईद की नमाज़ से पहले ज़कात की भी अदाएगी कर देनी चाहिए। ज़कात अपने माल, दौलत, रुपये की 2.5 प्रतिशत देनी होती है जिसे जरूरतमंदों या जहां भी इसका फंडिंग बैतुलमाल के नाम से हो जमा किया जा सकता है, जिसे किसी आगज़नी के शिकार, मुफ़लिस, गरीब बच्चियों की शादी, गरीब बेसराओं के बच्चों को तालीम या अन्य ऐसी मद में खर्च किया जाए जहाँ ये पैसा लग सकता है।

ईद के पहले माहे रमजान होता है जिसमें रोज, इबादत और अनेक नेकियों के काम किये जाते हैं। सहर से लेकर इफ्तार तक रोजदार रोजा रखते हैं। जो दिन भर ना खाते हैं, ना पीते हैं, ना ही किसी खुशबू को जान बूझकर सूंघ सकते हैं, ना ही किसी प्रकार की दवा ले सकते हैं। कितना त्याग और सब्र कर रोजदार रोजे करते हैं। खुदा इन पाक बन्दों की इबादत और त्याग को कुबूल कर दुआएं कुबूल करे।



रमजान माह के रोजे पूरे होने पर ईद की नमाज़ चांद दिखने पर अगली सुबह पढ़ी जाती है। नमाज से पहले सदक़ा ए फितर, ज़कात ऐडा कर देनी चाहिए। ईद की नमाज़ के लिए अज़ान नहीं पढ़ी जाती। जो वक़्त मुकर्रर किया जाता है उसका एलान ईद की नमाज के पहले जुमे या अलविदा जुमे में कर दिया जाता है।   नमाज से पहले नमाजी गुस्ल करते हैं, मिस्वाक करते हैं, नए या साफ कपड़े पहनते हैं, खुशबू लगाते हैं, ईद की नमाज पर जाने से पहले घरों से कोई भी मीठी खाकर जाते हैं, रस्ते  आहिस्ता आहिस्ता जाना और वक़्त से पहले सफों में जाकर बैठ जाना, वक़्त होने पर नमाज की अदायगी इमाम साहब द्वारा कराई जाती है और सामूहिक तौर पर मुल्क की खुशहाली, बीमार लोगों को बीमारी में शफ़ाअत जैसी दुआएं खुदा से की जाती है। बाद नमाज आपस में गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं 

ईद की नमाज के लिए नमाजी ईदगाह या अपने नज़दीकी मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ते हैं। (पिछले साल से कोरोना महामारी के मद्देनजर इबादत से लेकर सभी नमाजों के साथ ईद की नमाज़ भी नमाजी घरों पर ही अता कर रहे हैं।) ये नमाज और इबादत करने के बाद सभी लोग हर वर्ष की भांति मुल्क में अमनों अमान और महामारी से देश दुनिया के लोगों को जल्द से जल्द राहत मिले की दुआएं खुदा से करते हैं।

सामान्य तौर पर ईद मनाने के लोग अपनी योजनाएं बनाते थे, इस ईद पर वहां जायेंगे, ये व्यंजन बनाएंगे, मेहमानों को ये खिलाएंगे, उनसे हमें ईदी मिलेगी, उन्हें हम अपनी नई ड्रेस बतायेंगे,  ईद आस्था रखने वाले उन सभी लोगों के लिये एक खास दिन होता है, जो पूरे महीने रोज़ा रखते हैं। घरों गृहणियां अपनी पसंद की अच्छी से डिशेस बनाकर मेहमानों और पनों को खिलाकर खुश होती दिखती हैं। हर ईद पर खूब सारी स्वांदिष्टे चीजें बनती हैं और लोग उनका जायका लेते हैं। दोस्तों, अजीजों और रिश्तेदारों को इंतजार रहता है ईद का। मेरा मानना है कि ईद उत्स‍व और खुशियों के लिये आती है। 

सामान्य हालातों में ईद के अवसर पर नमाज के बाद बच्चों के लिए मनोरंजन, झूले, मेले, खाने पीने की स्टाल्स और खिलौने वगैरह की खरीद फरोख्त की जाती है।

उपरोक्त सदका ए फितर और जकात शायद इसलिए ही इस्लाम के मानने वालों पर बताये गए ताकि कमजोर वर्ग व बेसहारा लोग भी ईद की खुशी में खुश होकर शरीक हो सके। फिर भी जिसका जैसा बजट हो उसको वैसे अंदाज़ में लोग ईद के पर्व को मनाते हैं। ईद का जश्न दिलों से मनाया जा जाए ना की कोरोना गाइड लाइन्स का उलंघन किया जाए। मास्क का इस्तेमाल, देह दूरी और दिनभर अपने हाथों को सुरक्षित रखने के लिए सेनेटाइजर का इस्तेमाल या साबुन से धोकर किया जाए। (लेखक ने सामान्य जानकारी लिखी है एवं अपने विचारों को व्यक्त किया है) 

लेखक : सद्दीक अहमद 

एडिटर (डेलाइफ.पेज)