लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी की राष्ट्रीय राजनीति कोई बड़ी अहमियत नहीं है। क्योंकि 30 विधानसभा सीटों वाला धुर दक्षिण में स्थित पुडुचेरी की कोई बड़ी पहचान राष्ट्रीय नहीं है। यहाँ जब दल बदल की के चलते नारायणसामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को भंग कर प्रदेश में राष्ट्रपति राज लागू कर दिया था, इसको लेकर यह छोटा सा राज्य कुछ दिन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अखबारों की सुर्ख़ियों में रहा था। कांग्रेस पार्टी ने यहाँ का चुनाव इसी मुद्दे को लेकर लड़ने की घोषणा की थी। लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। यहाँ पहली बार बीजेपी नीत एनडीए सत्ता में आने में सफल रही। यहाँ एनडीए में बीजेपी जूनियर पार्टनर है जबकि नई सरकार का नेतृत्व आल इंडिया एन. रंगास्वामी कांग्रेस के नेता रंगास्वामी के पास है जो एक लम्बी अवधि के बाद फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने है।
सरकार में भागीदार के चलते इस राज्य में पूरा कमल भले ही न खिला हो लेकिन बीजेपी इस तमिलभाषी राज्य में अपने विस्तार करने में सफल रही है। यही से वह तमिलनाडु में पैर पसारने की योजना शुरू कर सकती है। वैसे भी इन विधानसभा चुनावों में तमिलनाडु में बीजेपी पहली बार विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ली है। पार्टी ने अन्नाद्रमुक के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 4 सीटें जीतने में सफल रही। पार्टी के हिस्से में मात्र 20 सीटें ही आई थी। इनमें से एक चौथाई पर जीतना उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
वापिस लौटते हैं पुडुचेरी विधान सभा चुनावों के नतीजों पर। सीटों पर हुए समझोतों में रंगास्वामी कांग्रेस को 15 सीट मिली थी जबकि बीजेपी को 9 चार सीटें अन्नाद्रमुक को दी गयी थी 2 सीटें अन्यो के लिए छोड़ दी गयी थी। रंगास्वामी कांग्रेस ने 10 सीटें जीतीं। बीजेपी 6 सफल रही। जबकि अन्नाद्रमुक अपना खाता भी नहीं खोल पाई। इस केद्र शासित प्रदेश के बनाये गए कानून के अनुसार यहाँ का उप राज्यपाल विधानसभा में तीन सदस्य नामित करता है। जिन्हें सदन में मत देने का अधिकार है। चूँकि केंद में बीजेपी की सरकार हैं इसलिए वह अपनी पसंद के सदस्य नामित करेगी जो निश्चित रूप से सत्तारूढ़ दल का साथ देंगे।
अगर यहाँ के विधान सभा चुनावों को गहरी नज़र से देखा जाये तो यह बात साफ़ दिखती है कि कांग्रेस की गुटबंदी और गाँधी परिवार के वफादारों को तरजीह देने के कारण पार्टी यहाँ चुनाव हारी है। जिसके चलते बीजेपी को यहाँ पारी ज़माने का मौका मिल गया।
रंगास्वामी फ्रांस के इस पूर्व उपनिवेश में कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे है। उनके नेतृत्व में पार्टी यहाँ एक से अधिक बार सत्ता में आई। वे कुंवारे है तथा जमीन से जुड़े नेता के रूप में जाने जाते है। वह अपनी ढीली ढाली कमीज़ पहने अपने बाईक पर आम आदमी की तरह सड़कों घूमते देखे जा सकते है। सत्ता का उनमें जरासा भी गरूर नहीं है।
2011 के विधान सभा चुनावों के बाद गाँधी परिवार के वफादारों के चलते पार्टी आलाकमान ने उन्हें दर किनार करना शुरू कर दिया। आखिर उन्होंने अपनी अलग से कांग्रेस बनाली। 2016 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को अपना स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। उस समय रंगास्वामी कांग्रेस में लौटने के लिए तैयार थे। उनकी शर्त थी कि मुख्यमंत्री का पद उन्हें दिया जाये। उधर 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व मंत्री नारायणसामी जो गांधी परिवार के वफादार है, हर हालत में यह कुर्सी चाहते थे। पार्टी आलाकमान ने आखिर उनकी बात मानते हुए रंगास्वामी की पेशकश को ठुकरा दिया। इसके स्थान पर द्रमुक के समर्थन से सरकार बनाने का निर्णय किया गया जिसमें मुख्यमत्री का पद गाँधी परिवार के वफादार नारायणसामी को मिला।
लेकिन नारायणसामी की सरकार शुरू से ही विवादों में रही। इसका टकराव राज्य की उप राज्यपाल किरण बेदी से रहा इसलिए बीच-बीच में सुर्ख़ियों में आ जाता था। विधायकों में लगातार असंतोष पनप रहा था। पिछले साल के अंत में पार्टी विधायकों ने पार्टी छोड़ना शुरू कर दिया। इसके पीछे रंगास्वामी ने बड़ी भूमिका निभायी। वे कांग्रेस के केद्रीय नेतृत्व और नारायणसामी से अपना हिसाब चुकता करना चाहते थे। आखिर जनवरी में साफ़ हो गया कि सरकार अपना बहुमत खो चुकी है। नारायणसामी को पद छोड़ना पड़ा क्योंकि वे सदन में बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए। उस वक्त यह कहा गया था कि बीजेपी के तीन सदस्यों के समर्थन से रंगास्वामी सरकार बना सकते है। लेकिन बीजेपी का केद्रीय नेतृत्व इसके पक्ष में नहीं था। इसलिए यह तह हुआ की अगली सरकार चुनावों के बाद ही बनेगी। रंगास्वामी को पूरा विश्वास था की अगर बीजेपी उसके साथ हो जाये तो इन दोनों का गठबंधन सत्ता में आ सकता है। और यहीं से चुनाव जीतने का बिसात बिछनी शुरू हो गयी। उधर कांग्रेस की भीतरी गुटबंदी घटने का नाम ही नहीं रही थी। पार्टी ने फिर नारायणसामी को ही आगे बढाने का फैसला किया जो पार्टी को ले डूबा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)