लेखक : प्रेरणा की क़लम से
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कौन कहता हैं कि आसमाँ में सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों
दोस्तों आज मैं आपको मिलवाना चाहती हूँ "बसंती" जी से..जैसा इनके नाम से ही महसूस होता हैं कि ये एक बेहतरीन प्रसन्नचित एवं सबको आंनदित करने वाली महिला हैं.. बसंती जी से मैं "अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" के उपलक्ष में आयोजित एक ऑनलाइन टॉक शो "ड्राइव सेफर - मिशन पॉसिबल" में मिली थी, जिसे मैंने ही संचालित भी किया था।
वैसे तो इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी अतिथि अपने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहें हैं जैसे की कैप्टिन (से.नि.) वी. वी. रत्नपारखी, एक्सिक्यूटिव डायरेक्टर, एसोसिएशन ऑफ स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग (#ASRTU), भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी मिस रेमा राजेश्वरी, जिला पुलिस चीफ, तेलंगाना, माननीय सुप्रीम कोर्ट की अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एडवोकेट ऐश्वर्या भाटी एवं आर किशोर, निदेशक एएसआरटीयु, परंतु जो कार्य बसंती जी कर रहीं हैं वो हम सबसे कहीं ज्यादा संघर्षपूर्ण हैं और प्रेरणा देने वाला हैं।
बसंती जी इस कहावत को पूरी तरह से जीती हैं कि..
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।
यूँ ही किसी की जय जयकार नहीं होती।।
तो क्या हैं बसंती जी की कहानी जिसने मुझे ये सोचने पर मज़बूर कर दिया की वास्तव में मैंने तो कुछ भी ख़ास नहीं किया हैं अपने जीवन में और अभी तो बहुत कुछ करना बाकी हैं.. चलिये आपको ज्यादा इंतज़ार नहीं करवाते हैं।
बसंती जी राजस्थान में सवाई माधोपुर जिले के एक छोटे से गांव में पली बढ़ी हैं और अब उनका ससुराल कोटा में हैं और वो अपनी दो बेटियों का सहारा हैं। बचपन में ही शादी हो जाने से पांचवी कक्षा से ज्यादा पढ़ लिख नहीं पायीं.. शादी को लगभग 20 वर्ष हो गए हैं और करीब 11 वर्ष पहले उनके पति का देहांत हो गया था। तो आप समझ सकते हैं कि दो छोटी बेटियों को पालने और घर खर्च चलाने के लिए उन्हें कितना संघर्ष करना पड़ा होगा। उनके अनुसार उन्होंने कई सारे काम किये हैं पर अब पिछले दो साल से वो "टैक्सी कार" चला रही हैं और राजस्थान के अलग अलग जिलों में सवारियों (जिसमें महिला एवं पुरुष दोनों ही शामिल हैं) को उनके गंतव्य तक "सुरक्षित" पहुँचाने का काम बख़ूबी और "ख़ुशी" से कर रहीं हैं।
जब मैंने उनसे पूछा की उन्होंने यह काम (ड्राइविंग) क्यों चुना तो उनका जवाब ही हम सबके लिए ये समझने के लिए काफ़ी हैं कि क्यों हमारे प्यारे पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल क़लाम ने कहा था कि सपने वो नहीं हैं जो आप नींद में देखते हैं, सपने तो वो हैं जो आपको सोने ही ना दे।
बसंती जी ने मेरे प्रश्न के उत्तर में कहा कि बचपन में जब वो गांव में किसी "मोटर गाड़ी" को देखती थी तो सोचती थी की क्या वो कभी इसमें बैठ भी पाएंगी? और आज वो ख़ुद उस गाड़ी में ना केवल रोज़ाना बैठती हैं बल्कि वो उसके माध्यम से अपनी जीविका भी चला रही हैं अपनी दोनों बेटियों का लालन पालन भी कर पा रहीं हैं.. वो इस काम को करके इतनी "ख़ुश" हैं और मानती भी हैं कि यह उनके "सपने" के सच होने जैसा ही हैं..!
तो दोस्तों, आप भी सपने देखियें, उन्हें पूरा करने के लिए जो भी करना पड़े, करिए.. भगवान भोलेनाथ आप सबके सपने जरूर पूरे करेंगे, इसी शुभकामना के साथ, मिलेंगे एक और सारथि से अगले सफ़र में..!
तब तक स्वस्थ रहें सुरक्षित रहें...!