लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
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स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य दो शब्द है प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, बीमार होना कोई भी नहीं चाहता, एक स्वस्थ्य व्यक्ति ही सेवा परोपकारिता सहयोग आदि गुणों को विकसित कर समाज और देश के विकास में सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर सकता है। अस्वस्थ व्यक्ति न केवल स्वयं के लिए अपितु दूसरों के लिये भी भारभूत बन जाता है। स्वस्थता ही सुखी जीवन का रहस्य है। आज जितनी भी चिकित्सा पद्धतियों का विकास हुआ है। उन सब का एक ही लक्ष्य है- स्वास्थ्य की प्राप्ति।
योग स्वास्थ्य का पूरा विज्ञान है इसका संबंध शरीर के सारे अंगों के अच्छी तरह से काम करने, उनके बीच सही तरह से तालमेल के अलावा मन के सही रूप में काम करने की समझ से होता है। यह आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से इस तरह से अलग होता है कि इस प्रणाली का संबंध सिर्फ रोगों उनके उपचार और उनके ठीक करने से होता है। जबकि योग की पद्धतियां इस रूप से गठित हुई है कि वे न सिर्फ शरीर के अलग-अलग अंगों की ताकत को बनाये रखते है, बल्कि उन्हें बढ़ाते भी है। जिससे किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ और रोगमुक्त जीवन जीने को मिलता है। रोजाना योगासन करने से न सिर्फ शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है, बल्कि रोजाना के जीवन के अलग-अलग कारणों से होने वाले शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक असंतुलन का भी निरोध होता है। अपनी प्राकृतिक अवस्था में अगर शरीर के सारे अंग सही तरीके से काम करते है तो वैसी हालत को अच्छा स्वास्थ्य कहा जाता है। अगर शरीर के किसी अंग में कोई विसंगति या असामान्यता आ भी जाती है, तो वह भाग अच्छे स्वास्थ्य की कोशिश करता है। स्वास्थ्य प्राप्ति में मददगार कई उपकरण या तरीकों में योग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
आज की तेज रफ्तार भरी जिंदगी में हम सभी ने अपना ख्याल रखना तो जैसे छोड़ ही दिया है ना ही हम अपने खान-पान का सही से ख्याल रखते है और ना ही हमारे पास व्यायाम के लिए समय है। स्वास्थ्य का ठीक तरह से ख्याल न रखने के कारण कई तरह की बीमारियां जैसे तनाव, चिड़चिड़ापन, भय, चिन्ता एवं अनेक प्रकार की शारीरिक बीमारियों का शिकार हो जाते है। जिससे हमारी जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है। योग की खासीयत यह है कि इससे ना केवल हम शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते है बल्कि यह हमारे शरीर से कई तरह की बीमारियों को भी दूर करता है। हमारे शरीर में बहुत से रोग जन्म लेते है। जिनके बारे में वक्त पर हमें पता भी नहीं होता है। इसलिए योग करना हमारे शरीर के लिए किसी रामबाण औषधि से कम नहीं है। यह हमारे दिमाग को तनाव रहित तथा शरीर को फिट रखता है। इसलिए हम कह सकते है कि योग करने से जीवन को एक सेहतमंद रफ्तार मिल जाती है।
सभी स्वास्थ्य प्रेमी एक कसे हुए गठित सौष्ठव शरीर के स्वामी बनने के इच्छुक होते हैं जो इसके लिए प्रयास करते हैं, व बन भी जाते हैं, जो ढिलाई दिखाते हैं, वे रह जाते हैं। शरीर का गठन व बढ़ोतरी आम तौर से 28 वर्ष तक की आयु तक होती है। जो इस अवधि में चूक गया, वह जिन्दगी भर के लिए चूक जाता है। इसलिए इस उम्र में लड़कों को दौड़ने-कूदने-खेलने को प्रोत्साहित किया जाता है। मानव जीवन के स्वास्थ्य को मानव स्वयं और आधुनिक परिवेश दोनों ही प्रभावित कर रहे हैं। मनुष्य कृत्रिमता को अपनी जीवनशैली में लाकर अपने आहार, वेशभूषा और द्रुतगामी कार्य में व्यस्तता लाता जा रहा है। इधर जनंसख्या वृद्धि, यंत्रीकरण, प्रदूषण आदि के परिवेश से मनुष्य घिराा हुआ है। अतः शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में विकृतियां बढ़ती जा रही है। स्वस्थ जीवन के लिए व्यक्ति को विविध प्रकार के संतुलन स्थापित करने की प्रक्रियाओं को अपनाना होगा।
संतुलन बनाए रखने के लिए हमें किसी औषधि की आवश्यकता नहीं है, यही उद्देश्य है। व्यक्ति स्वस्थ एवं संतुलित जीवन हेतु विचारों, प्राणों, पंच तत्वों, आभामण्डल, कषायों, अध्यवसाय, व्यवहार, आहार आदि को गहराई से समझकर जीवन में उतारे तो स्वास्थ्य सभी प्रकार से ठीक रख सकता है। नमस्कार मुद्राएं और विशिष्ट मुद्राएं भी स्वस्थ्य जीवन में सहायक है। हास्य, प्राणायाम, आत्मविद्या-पराविद्या, भाव क्रिया आदि ऐसे कार्यक्षेत्र हैं, जिनके संतुलन से स्वास्थ्य को अनुकूल रखना सहज है। इसी प्रकार शरीर के लिए आहार और अनाहार के संतुलन की प्रक्रिया को भी यहां समझाया गया है। शरीर और मन का आपस में गहरा संबंध है। यह एक दूसरे को सदैव प्रभावित करते रहते हैं। किन्तु यदि शरीर और मन का गहराई से अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि मन शरीर पर पूरा नियंत्रण रखता है। योग शरीर को केवल यन्त्र नहीं मानता।
उसके भीतर चेतना का अस्तित्व स्वीकार करता है। रोग केवल विजातीय तत्व अथवा किसी वायरस का ही कारण नहीं है अपितु वह व्यक्ति के पूर्व संस्कार, मन, भाव एवं चेतना से भी प्रभावित होता है। योग व्यक्ति को समग्रता से देखता है। योग के यम, नियम, आसन, प्राणायाम द्वारा व्यवहार और शरीर प्रभावित होते हैं। प्रत्याहार से इन्द्रियों का नियमन कर धारणा, ध्यान, समाधि द्वारा मन, भाव एवं चेतना का परिष्कार कर समस्याओं को समाहित किया जाता है। जब व्यक्ति योग के किसी चरण का अभ्यास करता है तो उससे सम्पूर्ण शरीर, मन, भाव आदि प्रभावित होते हैं। जीवन में योग की नितान्त आवश्यकता है। जीवन-शैली में योग जुड़ने से स्वयं का परिष्कार और समाज का भला अपने आप ही हो जाता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)